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भारत के सांस्कृतिक पुनरूत्थान के विश्वकर्मा हैं नरेन्द्र मोदी

यह सुखद संयोग है कि आज देवशिल्पी भगवान विश्वकर्मा जी व राष्ट्रशिल्पी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी का जन्मदिन एक साथ है। पिछले वर्ष प्रधानमंत्री मोदी ने मन की बात में अपने संबोधन में कहा था कि हुनरमंद ही आज के युग के विश्वकर्मा हैं। प्रधानमंत्री स्वयं भी इसी दायरे में आते हैं। भगवान विश्वकर्मा ने मानव को सुख-सुविधाएँ प्रदान करने के लिए अनेक यंत्रों व शक्ति संपन्न भौतिक साधनों का निर्माण किया। इनके द्वारा मानव समाज भौतिक चरमोत्कर्ष को प्राप्त करता रहा है। वहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सांस्कृतिक विरासत के उत्थान द्वारा चारित्रिक समृद्धता का निर्माण किया। भारतीय चिंतन के श्रीमदूर्जितमेव विभूतिमत्सत्त्व भगवान विश्वकर्मा व नरेंद्र मोदी सृजन के सहकर्मी हैं। जिनकी प्रतिभा समग्र ऋतम्भरा मानवीय प्रज्ञा की कालजयी ऊर्जा का सास्वत सन्दोह है।

पूर्व में मोदी संघ के प्रचारक रहे हैं, अब इसके कहीं आगे निकलकर अपने असाध्य प्रयासों से वह भारतीय संस्कृति के प्रचारक और उद्भट प्रस्तोता बनकर उभरे हैं। जो न केवल देश में अपितु विश्वभर में भारतीय गौरव के पुनर्स्थापन का स्वरगान कर रहे हैं। राष्ट्र की स्वात्रंत्य चेतना के उद्घोषक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी के जीवन का एक-एक क्षण भारत के प्राच्य वैभव के पुनर्स्थापन के प्रयासों को समर्पित है।

भारत का मूल हमारी सनातन संस्कृति है। षड्यंत्रपूर्वक भारतीय संस्कृति के मानबिन्दुओं को धूमिल कर गौरव स्थानों के वैभव को नष्ट करने के प्रयास देश में शताब्दियों से होते रहे हैं। लेकिन शत्-शत् आघातों को सहकर भी यह अक्षुण्ण बनी है। आज इतिहास करवट ले रहा है। देश अपना इतिहास खुद लिख रहा है। अतीत की गलतियों को सुधार भविष्य की नई नींव गढ़ रहा है। नियति ने इस महत्वपूर्ण कार्य के क्रियान्वयन के लिए एक ऐसा राष्ट्र नायक चुना है जिसने अपना संपूर्ण जीवन भारतीयता के यशगान में समर्पित कर दिया।

नरेंद्र मोदी जी के नेतृत्व में हमने हमारी सभ्यता के उन मानबिन्दुओं के उत्थान के स्वप्न को साकार होते देखा। उस विराट वैभव को, उस चेतना को फलीभूत होते देखा जिसके महाप्रकाश से दिग्दिगंत उदभासित हो रहे थे। मोदी जी के नेतृत्व में आज इतने बरस बाद भारत पुनः पुनर्जीवित हो रहा है। शताब्दियों के बाद यह देश अँगड़ाई लेकर उठ खड़ा हुआ है। अपने खोए हुए गौरव को पुनः पाने और जगत् में स्थापित करने का पुरजोर प्रयास कर रहा है। आज समाज दिव्य राष्ट्रीय चेतना से मुखरित और अनुप्राणित हो रहा है। भारत का सांस्कृतिक सूर्य विश्व पटल पर फिर से चमकने लगा है।

चाहे अहम् ब्रह्मास्मि का उद्घोष करने वाले, सांस्कृतिक, आध्यात्मिक और भौगोलिक सभी स्तरों पर आधुनिक अर्थों में भारतीय एकता का सूत्रपात करने वाले आद्य शंकराचार्य जी की ओंकालेश्वर में बनने वाली प्रतिमा ‘स्टैच्यू ऑफ वननेस’ हो या आजादी बाद भारत को एकता के सूत्र में बांधने वाले सरदार वल्लभ भाई पटेल की प्रतिमा ‘स्टैच्यू ऑफ यूनिटी’ सभी के निर्माण में जो श्रद्धा और रूचि मोदी जी ने दिखाई, वह प्रशंसनीय है। बाबा विश्वनाथ की काशी का दिव्य वैभव देखकर ऐसा लगता है, मानों साक्षात भगवान विश्वकर्मा जी ने इन नगरों को दोबारा संवारा हो।

नरेंद्र मोदी सांस्कृतिक इंफ्रास्ट्रक्चर के पुनर्स्थापक हैं। मोदी से पहले शायद ही कोई प्रधानमंत्री होगा जिसने अपने कार्यकाल में सांस्कृतिक स्थलों के पुनर्निमाण में इतनी रुचि दिखाई होगी, सोमनाथ, काशी, अयोध्या, केदारनाथ के उदाहरण हमारे सामने है। आज बाबा महाकाल की नगरी उज्जैन में बने महाकाल कॉरिडोर की अलौकिक छटा देख प्राच्य पुराणों में वर्णित भव्य नगर की अनुभूति होती है।

तमाम रक्तरंजित आक्रमणों के बावजूद भी हमारा देश जीवंत है, इसका इतिहास शाश्वत हैं। हमारा इतिहास बार-बार जीवंतता और भाव-बोध के साथ पुनः उठ खड़ा होता है। हम भारतीय पुनः अपने गौरवमयी इतिहास को देखने के साक्षी बन रहे हैं। वर्ष 1193 में दुर्दांत आक्रमणकारी बख्तियार खिलजी ने कभी भारत के गौरव के प्रतीक ‘नालंदा विश्वविद्यालय’ को नेस्तनाबूत कर दिया था। तब से यह अपूर्व विरासत खंडहर के रुप में तब्दील होता रहा। समय बदला, सोच बदली और मोदी सरकार ने नालंदा विश्वविद्यालय के गौरवशाली इतिहास को नए संकल्प के साथ स्थापित करने के लिए नालंदा विश्वविद्यालय का पुनर्निर्माण कराया।

मोदी जी नेतृत्व में आज हम एक ऐसे भारत को देख रहे हैं जिसकी सोच और एप्रोच दोनों नई हैं। उनका समावेशी व्यक्तित्व सिंधु से महासिंध पर्यंत विस्तीर्ण भूखंड में राष्ट्रीय चेतना को मुखरित और अनुप्राणित कर रहा है। विश्व के गगन मंडल पर हमारी कलित कीर्ति के असंख्य दीप जल रहे हैं। देश की चेतना जागृत हो रही है। उनके नेतृत्व में भारत विश्व गुरु बनने की राह में सुदृढ़ता से आगे बढ़ रहा है। राष्ट्रनायक के भारतीय अस्मिता को नव-चैतन्य प्रदान करने वाले समस्त मनोरथ सिद्ध हों।

शिवसंकल्पमस्तु।

लेखक – अंशुल तिवारी, भोपाल।

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