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जो बाल्कनी हमें मिली थी

जो बाल्कनी हमें मिली थी हमनें कमरा बनवा डाला। परिपूर्ण हों आशाएं छोटा एसी लगवा डाला। बहुत खुश थे हम बिटिया को नया रूम मिलेगा उसका भोला भाला चहेरा अब खुशी से झूम खिलेगा। इसी कल्पना में खोए थे इतने में बिटिया आईं कमरा उसने भी देखा पर ना वो मुस्काई। कुछ संजीदा भाव उसके…

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पायल

कहीं सीमा का बंधन देखो कहीं रात अलबेली है  पैरों की पायल है मेरी  या जंजीर की बेडी है रुके रुके कदमों से देखो अठखेली ये करती है  रुनझुन रुनझुन करते करते  सांझ सलोनी कटती है छम छम करता बचपन बीता  झनक झनक करते यौवन छनक छनक सी बीती उमरिया खनक खनक बरसे बादल  एक…

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शुद्धिमंत्र बनें जो सदियों तक दोहराया जाएगा

कविता मल्होत्रा (स्थायी स्तंभकार, संरक्षक) बालक हो या शावक सबकी पालिका एक भेदभाव इंसानी कुंठा प्रकृति का इरादा नेक ✍️ हम सभी अपनी माँ की गोद पर तो अपना स्वामित्व समझने लगते हैं लेकिन उस मातृत्व की गरिमा को बनाए रखने के सब दायित्व नज़रअंदाज़ कर देते हैं।परिवार और समाज से मिलने वाली शिक्षा को हम…

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ताइवान पर तनाव, अमेरिका का चाव, भारत के भाव

अमेरिका और चीन के बीच तनाव के जो मुद्दे हैं वो बने हुए हैं, चाहें वो ताइवान हों, दक्षिण चीन सागर में बढ़ता चीन का प्रभाव हो या फिर दोनों देशों के बीच चल रहा ट्रेड वॉर हो इन सभी से परे ताइवान चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की भी साख का सवाल बनता जा…

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आलोचना की प्रासंगिकता

 डॉ. अवधेश कुमार ‘अवध’ आलोचना, समीक्षा या समालोचना का एक ही आशय है, समुचित तरीके से देखना जिसके लिए अंग्रेजी में ‘क्रिटिसिज़्म’ शब्द का प्रयोग होता है। साहित्य में इसकी शुरुआत रीतिकाल में हो गई थी किन्तु सही मायने में भारतेन्दु काल में यह विकसित हुई। आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी का इसमें महती योगदान है…

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कार्बन न्यूट्रल कार्बन फुटप्रिंट के समाधान में वृक्षारोपण एक महत्वपूर्ण तत्व है।

 हम अपने दैनिक जीवन में कितना CO2 का उत्पादन करते हैं, आप जितनी अधिक ऊर्जा का उपयोग करेंगे, कार्बन फुटप्रिंट उतना ही बड़ा होगा। चिमनी का धुआं और बिजली संयंत्र जीवाश्म ईंधन जलाते हैं। जैसे-जैसे प्रदूषण की मात्रा बढ़ती है। जैसे-जैसे वातावरण में कार्बन उत्सर्जन बढ़ता है। उस समय कार्बन फुटप्रिंट को कम करना मुश्किल…

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हम हैं तुलसीदास

किसी ने मुझे दरवाजे से आवाज दी, भीतर कोउ है का..? मैंने अंदर से ही पूछा कौन है भाई ? दरवाजे से फिर आवाज आई, हम हैं तुलसीदास। मैंने दरवाजा खोला और उनसे वहीं खड़े-खड़े पूछा क्या चाहिए ? वे बोले कुछ नहीं। मैंने फिर जिज्ञासा से पूछा तो क्या? वे बड़े ही कातर स्वर…

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फ़क़ीर (कविता)

श्वेत वसन दाढ़ी सफ़ेद खाली दिखते हाथ चेहरे पर हैं झुर्रियां दीखे मलिन सी गात काम क्रोध मोह लोभ से इसका क्या सरोकार ये तो एक फ़क़ीर है जग इसका परिवार पाकर चंद सिक्के ही दे झोली भर आशीष ये दुनिया तो फ़ानी है देता सबको ये सीख सब धरा रह जाएगा मोह न किसी…

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बादलों का बनना

लक्ष्मी कानोडिया         जब कभी हमें भगवान की जरूरत होती है तब हम ऊपर देखते हैं। परंतु हमें केवल बादल दिखाई देते हैं छोटे बड़े  गोल अनियमित गुच्छों की तरह और कभी-कभी पंखों की तरह  यह धरती का तापमान बनाए रखने में सहायता करते हैं और पूरे विश्व को जीवनदायिनी बारिश  से भिगो देते हैं।…

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भ्रष्टाचार

भ्रष्टाचार हमारे देश में इस तरह सर्वव्यापी बन गया है कि बिना भ्रष्टाचार के हम कोई भी भी सरकारी काम कर सकते है | जहां कहीं भी सरकारी काम होता है | वहां भ्रष्टाचार शुरू हो जाता है | हमारे देश में भ्रष्टाचार बहुत ही खतरनाक समस्या है | भ्रष्टाचार बहुत सी समस्याएं उत्पन्न करता…

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