बाजार में बिक जाते गर यदि
गम सारे बेच देते
खुशियों की दुकान होती गर यदि
थोड़ी सी खरीद लेते।
सोने से थकान मिट सकती है
दर्द नहीं मिटते
नीदों में आने वाले स्वप्न
हमेशा साकार नहीं होते।
बिछड़ जाएं मुसाफिर गर यदि
वापिस नहीं मिलते
रास्ते सैकड़ों हैं जाने के लेकिन
सब मंजिल पर नहीं खुलते।
अपना ही वजूद संभालते गर यदि
तो रिश्ते ना निभते
दूसरों को अहमियत देने से
नजरिये हैं बदलते।
— जयति जैन “नूतन” —