तूने अपने घूंघट को आसमां बना लिया
ऊँची थी उड़ाने पर घूंघट में थाम लिया
पलके झुकी और हुनर को हाथों में सजा लिया
और अपने सपनों का आसमां खुद ही बना लिया।
अकेले नही सबको साथ लेकर चली वो
स्त्रीत्व का मकसद सबको समझा दिया।
आई थी मुसीबत,राह में अनेको
देख तेरा ओज उन्होने ठिकाना बदल लिया।
बना ली है नई राहे तूने,
देख तेरी प्रज्ञा अंचम्भित है ये समाज
लाज घूंघट का छोड़
सफलता की दहलीज में खड़ी है आज।
नही रही अब वो बेचारी
अपने स्वाभिमान से उसने दायरा बदल दिया।
नारी देखो तुमने अथक परिश्रम से
युगो-युगो का इतिहास रच दिया।
ललिता पाण्डेय
दिल्ली