प्रमाणपत्रों की फाइल उठाये सुधा रोज कहीं न कहीं, किसी न किसी आफिस में नौकरी मिलने के लिए चक्कर लगाती किंतु नौकरी की जगह उसे लोगों की नापती, तौलती, लिप्सा भरी नजरें हर जगह मिलती बिना पति के दो छोटे बच्चों के साथ पेट पालना कितना दुष्कर कार्य होता है यह उसने पिछले चार महीने में बहुत अच्छी तरह से जान समझ लिया था सुधा ने एक हफ्ते पहले समाचार पत्र के सेवायोजन विज्ञापन में रिक्त स्थान देखकर नौकरी के लिए आवेदन किया था | आज उसी नौकरी के साक्षात्कार के लिए जाना था | सुधा आफिस में साक्षात्कार के लिए पहुँची | प्रबन्धक महोदय ने काम से सम्बन्धित कुछ आवश्यक जानकारी ली | नौकरी मिलने की आस लगाये, सुधा की आँखें सजल हो रही थी | घर परिवार के बारे में विस्तार से पूछताछ करने के बाद बाद वह अपने असली मुद्दे और अंदाज पर उतर आये| सुधा की तरफ एक भरपूर नजर डालकर बोले ~” अरे, सुधा जी ! अब तुम हमारे पास आ गयी हो | तो देखिये, अब चिन्ता की कोई बात नहीं है | नौकरी भी तुमको मिल ही जायेगी | पैसों की खनखनाहट में खेलोगी अब तुम | बस ,अपना हफ्ते मे एक दिन हमारे नाम कर देना | हम तुम्हारा ख्याल रखेंगे तुम हमारा ख्याल रखना ” कहते, कहते उनकी आँखों से धूर्तता टपक रही थी |
✍ सीमा गर्ग मंजरी