किस्तूरी आज बहुत चिढी़ हुई थी अपनी पडोसिन कमला से। उसकी सारी पोलपट्टी खोल दी। वो भी बाल्कनी से। मोहल्ले के सब लोगों ने भी सुन लिया होगा। जब से लाकडाउन में थोडी छूट मिली है, सभी अपने घर के बाहर कुर्सी डालकर चुगलियों का दबा पिटारा खोलने लगती हैं। जो उस समय वहाँ नहीं होती, उसी को निशाना बनाकर चुगलेरिया रसपान किया जा रहा है। आजकल कमला उनकी मंडली में कम ही आ रही है। किस्तूरी उसी को लक्ष्य कर चबर -चबर किए जा रही थी। अचानक बाल्कनी से पानी की बूँदें उन पर पडी़ तो सबने ऊपर देखा । “ले लिया चुगलरस !मैं कुछ दिनों से देख रही हूँ किस्तूरी, तुम मेरे घर में कुछ ज्यादा ही टाँग अडा़ने लगी हो। अपना तो सँभाल लो। ना बेटे पर वश चलता है, ना बहू पर। दोनों देर रात तक महाभारत मचाए रहते हैं, उनके बापू की तो तुमने ऐसी -तैसी कर ही रखी है, बिचारा बैठक में अकेला पड़ा सड़ता रहता है। दस बार पानी माँगता है, तब एक गिलास मिलता है बेचारे को। मेरा मुँह मत खुलाओ। तुम्हारे घर में रोज क्या-क्या हो रहा है, उसकी पोल खोलने लगूँ तो सुबह से शाम हो जाए।” किस्तूरी को मानो साँप सूँघ गया। मोहल्ले में बडा़ नाम था उनका। लेकिन आज सब कुछ मटियामेट कर दिया कमली की बच्ची ने। मुझे क्या पता था कि यह बाल्कनी में खड़े होकर सब कुछ सुन लेती है।
उसने आँखों के कोरों से ऊपर देखा, कमला सूरज को पानी दे रही थी, मगर बातों ही बातों में उसका पानी उतार गई।
लेखिका : डा. कल्पना , भिवानी (हरियाणा)