मैं जानता हूंँ
कि बड़े- बड़े चट्टान
हो जाते हैं मिट्टी- धूल।
जब मानुष अपनी आलस,
अपनी नाकामी को जाता है भूल।
मिल जाता है लक्ष्य उसे
बन जाता जब है वो कलाम।
जब नहीं भीत होता है काँटों से
बन जाता है मिसाल का नाम।
कामयाबी आ जाती है
दौड़े- दौड़े उसके पाँवों तक।
पार कर देने सागर को,
पहुँचाती है उसको नावों तक।
रचनाकार- अनुज पांडेय