घर में सेंध लगाने की वे फिर करते तैयारी,
पहरुये ! सावधान रहना।
पश्चिम सीमा पर खतरा है,पूरब में मत डोल,
अभी रात बाकी है कितनी धीरे- धीरे बोल,
कल जो हाल हुआ हम सबका,उसका दुख है भारी,
पहरुये ! सावधान रहना।
तुमने कितने धोखे खाए विश्वासों में पड़कर,
ये व्यापारी नहीं, न रहबर मात्र सियासी तस्कर
लूट लिए हैं अबतक कितने इनने महल-अटारी,
पहरुये ! सावधान रहना।
आधी सदी अभी बीती है फिर ये पैर बढ़ाए,
पहचानो खूनी चेहरों को जुल्म जिन्होंने ढाए,
आग लगाकर रहे बुझाते, बढ़े नहीं चिनगारी,
पहरुये ! सावधान रहना।
इनकी काली करतूतों से भरा हुआ इतिहास,
गाथा दुहराती हैं अब भी गंगा- यमुना- व्यास,
पर्वतराज हिमालय कहता आए फिर न बारी,
पहरुये ! सावधान रहना।
पाश्च्य -संस्कृति के आका, तुम पूरब के प्रहरी,
जागो! जागो! त्यागो तन्द्रा लगे नींद न गहरी,
इन दुभाषियों के सपने भी,दिखते हैं हत्यारी,
पहरुये ! सावधान रहना।
वहां आग का राग भरा है, यहाँ राग की आग,
फैल न जाए क्रांत हवा संग शुष्क ज़हर का झाग,
करुणा की काया में कातिल दिखता कभी दुखारी,
पहरुये ! सावधान रहना।
मोड़ हवा के रुख को उल्टे तुमने गाए गीत,
चाहे कितनी बाधा आए होती सच की जीत,
राम- कृष्ण- गौतम- गांधी की धरती पूज्य हमारी,
पहरुये ! सावधान रहना।
डॉ.राहुल, नयी दिल्ली