वक़्त लेता है परीक्षा वक़्त से आलाप कर लो,
कार्य जो भी है अधूरा पूर्ण सारा कार्य कर लो,
व्यर्थ कि क्यों है निराशा ख़ुद जलो दीपक की भांति,
मिल न पायेगा तुम्हें कोई भी जग में तुम सा साथी!
मौन सद्वृत्ति से पोषित है अगर अन्तःकरण में,
हो नहीं सकती समस्या देह के जीवन -मरण में,
तुम निराशा की कहानी मत लिखो जीवन में अपने,
इक नया इतिहास तुझमें पल रहा सदियों से साथी!
सृष्टि संचालित है जग में उस विधाता के बदौलत,
ज़िन्दगी इतनी व्यथित क्यों,क्यों नहीं करते मोहब्बत,
है नहीं कोई जगत में पूर्णतया सुख से सुसज्जित,
क्लेश पाले क्यों पड़े हो अब उठो इक बार साथी!
है जो झोका आंधियों का कुछ नहीं अस्तित्व इनका,
बिन प्रभु की प्रेरणा से हिल नहीं सकता है तिनका,
अविराम छलके अश्रु जो हैं थी कोई नेत्रों से अनबन,
यूं नहीं कीमत गवाओं हारकर जीवन में साथी!
कवियित्री: प्रियंका सिंह
सुलतानपुर उत्तर प्रदेश