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आज़ादी का दिन ( लघु कथा )

        सुबह लक्ष्मी काम पर जल्दी आ गई थी। वह बड़ी शीघ्रता से काम निपटा कर जाना चाहती थी। आज स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर उसके विकलांग पुत्र राहुल को जिलाध्यक्ष महोदय की ओर से उत्कृष्टता का पुरस्कार मिलने वाला था। इस वर्ष उसने राष्ट्रीय स्तर की निबंध प्रतियोगिता में प्रथम स्थान पाकर जिले का नाम रोशन किया था। स्कूल के प्रिंसिपल ने राहुल से अपने अभिभावकों को साथ लाने कहा था। लक्ष्मी के सिवा राहुल का कोई और नहीं था अत: उसने लक्ष्मी से ज़िद कर अपने साथ चलने के लिए राजी कर लिया था। लक्ष्मी बहुत उत्साहित थी। वह अपने पुत्र को सम्मानित होता देखने की कल्पना से ही रोमांचित हो रही थी। आज वह स्वयं को बहुत ही गौरवांवित महसूस कर रही थी। अपने विचारों में खोई हुई लक्ष्मी के हाथ बड़ी फुर्ती से चल रहे थे। जल्दी जल्दी काम समाप्त करके लक्ष्मी ने मिसेज़ भाटिया से छुट्टी माँगी।

        मिसेज़ भाटिया का आज अपनी सहेलियों के साथ छुट्टी मनाने का कार्यक्रम था। आज वे सब मॉल में मौज मस्ती करने वाली थीं। उन्होंने घड़ी की ओर देखा।

    “इतनी जल्दी? अभी तो आठ भी नहीं बजा है।”

    “दीदी, मैं आज जल्दी भी तो आ गई थी।”

    “तो कौन सा मुझ पर एहसान कर दिया तूने?” आज आजादी का दिन है। मुझे अपनी सखियों के साथ जरूरी काम से जाना है। साहब और बच्चे आ जाएं तो उनके लिए नाश्ता वाश्ता बना देना और उन्हें खिलाने के बाद ही तू जाना।” मिसेज़ भाटिया ने आदेश सुना दिया। लक्ष्मी ने सहमते हुए अपने बेटे को स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर मिलने वाले सम्मान के विषय में बताना चाहा किंतु मिसेज़ भाटिया उसकी किसी भी बात सुनने के मूड में नहीं थीं। वे तैयार होने के लिए अपने कमरे में चली गईं।

        लक्ष्मी ने राहुल से कह रखा था कि वह आज जल्दी आकर उसे अपने साथ ले चलेगी। वह भी कितना उत्साहित था। बिना बैसाखी के वह स्वयं तो चल भी नहीं सकता था। लक्ष्मी उसे तैयार कर के अपने साथ ले जाने वाली थी। उसे मिसेज़ भाटिया ने साफ़ मना कर दिया। वह सोचने लगी। आज़ादी का दिन क्या सिर्फ़ बड़े लोगों के लिए ही है? वे अपने मन से जिस तरह चाहें आज़ादी से छुट्टी मनाएं। वह मन मसोस कर रह गई। एक ओर राहुल का मासूम और उत्साहित उसकी राह देखता चेहरा और दूसरी ओर मिसेज़ भाटिया का दबंगई अंदाज़। एक ओर ममता, दूसरी ओर कर्तव्य और अपनी नौकरी जाने का भय। वह बड़े असमंजस में पड़ी हुई थी। यदि आज वह मिसेज़ भाटिया की बात नहीं मानती है तो निश्चित ही कल से उसे फिर नौकरी के लिए दर दर भटकना पड़ेगा। बेबस लक्ष्मी की आँखों से आँसुओं की धार बह निकली। 

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अजय कुमार पाण्डेय

सी-402, वॉलफोर्ट सफायर, सरोना 

 जिला रायपुर (छ.ग.)

492010

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