जीवन के मधुर पल
जीवन की डोर थामते,
कटुता के पल से
ये ही तो हैं उबारते।
कांटो के ताज से
रेतीली गरम राह से
भीषण अंधेरे जंगलों में
वे ही तो इक सहारा हैं ।
जीवन के मधुर पल
जीवन की डोर थामते ।
कटुता से भरे क्षण से,
नैराश्य के गहन अंधेरों से
सफलताविहीन पलों से
ये ही तो हैं उबारते ।
अपनों के घात से ,
टूटे दिल के दर्द से
धोखेभरे क्षण की टीश से
कुछ कर न पाने के दर्द से
ये ही तो है उबारते ।
डॉ.सरला सिंह “स्निग्धा”, दिल्ली