सुमित्रा देवी आज दादी बन गई थी। उनकी पुत्रवधू ने एक परी जैसी बेटी को जन्म दिया था। उनकी खुशी का ठिकाना नहीं था। घर में सभी खुश थे लेकिन उनकी खुशी सबसे बढ़कर थी। पोती के जन्म लेते ही उन्हें महसूस हुआ जैसे उनका अकेलापन दूर करने वाले फरिश्ते ने घर में पैर रखा है। कहने को तो घर में कई लोग थे, उनके पति एडवोकेट धनराज, बेटा और बहू। बेटा भी एडवोकेट था। दोनों बाप बेटे या तो कचहरी में होते या घर पर अपने कार्यालय में व्यस्त रहते। बहू नौकरी नहीं करती थी इसलिए घर पर ही रहती थी। शादी के बाद घर को अपनाने में बहू ने अधिक समय नहीं लगाया था। घर के सभी काम वह कुशलता से कर लेती थी। सुमित्रा देवी को शुरू शुरू में बहुत अच्छा लगा लेकिन फिर उन्होंने महसूस किया कि धीरे धीरे वो सबसे दूर होती जा रही थी। पति और बेटे को किसी भी वस्तु की आवश्यकता होती तो बहू को ही पुकारते थे। सुमित्रा देवी को अब घर में अकेलापन महसूस होने लगा था। इसलिए वो पोती के आने से घर में सबसे ज्यादा खुश थी।
बहू के हस्पताल से घर आने पर कई महीने तक उन्होंने घर का काम संभाले रखा। जब छुटकी ने मां के दूध के अलावा भी कुछ खाना शुरू किया तब उन्होंने बहू को घर के काम करने की अनुमति दे दी और स्वयं पोती की जिम्मेदारी संभाल ली। पोती धीरे धीरे बड़ी हो रही थी। उसने सुमित्रा देवी को व्यस्त कर दिया था लेकिन कभी कभी उनके दिमाग में यह बात आ जाती कि जब छुटकी बड़ी हो जाएगी तो वो फिर से अकेली हो जाएंगी। इसलिए उनकी इच्छा थी कि जब तक पोती स्कूल जाना शुरू करे तब तक वो भी अपनी रुचि के किसी काम में व्यस्त हो जाएं।
शाम के समय रोज़ ही सुमित्रा देवी पोती को उसकी बग्घी में बिठाकर पार्क में चली जाती। बच्चों को खेलते देखकर छुटकी बहुत ही खुश होती। कभी खिलखिलाकर हंस पड़ती तो कभी ताली बजाने लगती। पार्क में सुमित्रा देवी और उनकी पोती सबके आकर्षण का केंद्र बन गए थे।
सुमित्रा देवी एक दिन पार्क में बेंच पर बैठी हुई थी और पोती अपनी बग्घी में बैठकर खेल रही थी तभी उनके घर पर काम करने वाली सुनीता अपनी बेटी के साथ वहां पर आ गई। सुनीता की बेटी रो रही थी। सुमित्रा देवी ने रोने का कारण पूछा तो उसने बताया कि उसको डांस सीखने के लिए डांस क्लास जाना है लेकिन फीस भरने के पैसे सुनीता के पास नहीं है। दिन भर काम करके वह इतना ही कमा पाती है कि बेटी को स्कूल भेज सके। सुमित्रा देवी बहुत परेशान हुई लेकिन उन्होंने इस समस्या का हल निकाल लिया।
उन्होंने छुटकी की बग्घी को डांस क्लास की ओर मोड़ लिया। डांस क्लास में उन्होंने डांस टीचर से सुनीता की बेटी को डांस सिखाने की सिफारिश की। उनसे बात करके टीचर ने जान लिया कि उन्हें नृत्य की गहरी समझ है। सुमित्रा देवी ने बताया कि बचपन में उन्होंने पढ़ाई के साथ साथ नृत्य भी सीखा था। घर गृहस्थी में उलझकर अपने शौंक को भुला दिया। टीचर ने उनसे प्रतिदिन डांस क्लास आकर बच्चों को डांस सिखाने की सलाह दी। उसकी सलाह मानकर सुमित्रा देवी प्रतिदिन शाम को छुटकी को लेकर डांस क्लास आने लगी। छुटकी बग्घी में बैठकर बच्चों को नृत्य करते देखती रहती।
छुटकी का जन्मदिन आ गया। आसपास के सभी लोगों को धनराज जी ने निमंत्रण दिया। डांस टीचर भी अाई हुई थी। केक काटने के बाद छुटकी को सबने उपहार दिए। सुमित्रा देवी चुपचाप सब देख रही थी। डांस टीचर ने उनसे पूछा ,” सुमित्राजी आपका उपहार कहां है ?” सुमित्रा जी ने कुछ सोचते हुए जवाब दिया ,” मैं अपनी नन्ही सी परी के पहले जन्मदिन पर घोषणा करती हूं कि मैं इसे तीन साल की होने पर नृत्य की शिक्षा देना प्रारम्भ करूंगी और अपनी डांस क्लास उसी दिन शुरू करूंगी।” परिवार वाले स्तब्ध थे। ये कब हुआ वो समझ ही नहीं पाए। पर सुमित्रा देवी के निर्णय से सब बहुत खुश थे। डांस टीचर के ताली बजाते देख छुटकी ने भी ताली बजानी प्रारम्भ कर दिया। हर तरफ तालियों की गड़गड़ाहट गुंज गई।
अर्चना त्यागी