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प्रकाश शिन्दे की ‘आस-प्रयास’ दिखाती है कि दुनिया में अच्छे लोग भी हैं

(ग्वालियर हलचल सम्पादक प्रदीप मांढरे से ‘आस प्रयास’ नाटक के लेखक श्री प्रकाश शिंदे की विशेष वार्ता)
प्रदीप मांढरे ग्वालियर हलचल ग्वालियर, 19 सितम्बर। 50 वर्षीय प्रकाश शिन्दे मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय ग्वालियर में कार्यरत हैं। पिछले 10 साल से वह अपनी कैंसर पीड़ित पत्नी के इलाज में दिन- रात एक कर रहे थे । दुर्भाग्य से अपने जीवन साथी को बचा नहीं सके। दो छोटे बच्चों के लिए वह पापा भी हैं और मम्मी भी। इन प्रतिकूल हालातों में इस नौजवान का लिखा हिंदी 5 नाटक आस-प्रयास पाठक जगत में आया है। प्रकाश को नौजवान कहना इसलिए भी उपयुक्त है, क्योंकि एक तो वह अधेड़ दिखते नहीं हैं, युवा ही नजर आते हैं और दूसरा, यह नाटक उन्होंने वर्षों पहले ही लिख दिया था अपनी जवानी के दिनों में। अभी कुछ समय मिला तो उसे अंतिम रूप दिया । अनुराधा प्रकाशन, 1193 पंखा रोड, नांगल राया, नई दिल्ली ने इसे प्रकाशित किया है।
आस-प्रयास प्रकाश शिंदे ‘अबोध’ का पहला प्रकाशित प्रयास है। आमतौर पर नामचीन लेखक ही नाटक लिखने का सफल प्रयास कर पाते हैं। क्योंकि यह उपन्यास, कहानी (शेष पेज 12 पर) मैने पढ़ा है। इसमें साहित्य, अध्यात्म और जीवन मूल्यों की झलक दिखाई पड़ती है। किताब में धार्मिक विवरण की भरमार है, इन्हें पढ़कर लगता है कि लेखक को हिन्दू धर्मशास्त्रों की कितनी गूढ़ जानकारी है। किताब में कविताओं-रचनाओं का बौध्दिक स्तर भी लेखक को बड़े लेखकों में शामिल करता है। उदाहरण के लिए जिंदगी का भी अजब फसाना है। सुबह आमद दोपहर तपिश शाम आराम रात रवाना है। एक और-
देखो कभी मां की गोद में किसी नादान को खुश बेखबर, समझना खुश हूं मैं अपनी कामयाबी के शिखर पर ।
मैने प्रकाश शिंदे से पूछा आस-प्रयास यानी ? उन्होंने बताया-हर व्यक्ति की आकांक्षा होती है, सपने होते हैं यानी आस और उसे पाने के लिए वह अपने हिसाब से प्रयास करता है।
लेखक प्रकाश शिन्दे ‘अबोध ‘अपनी नई किताब नाटक आस-प्रयास के मुख्य पात्र एक पेंटर हैं, चित्रकार। वह पेरिस में अपनी कला की प्रदर्शनी लगाना चाहते हैं। लम्बे समय से वह अपनी प्रवृष्टि भेज रहे हैं, लेकिन हर बार उन्हें निराशा हाथ लगती है। उनका एक ही लक्ष्य है पेंटिंग बनाओ और उस पेंटिंग को पेरिस भेजो। कभी तो वहां से ‘हां’ आएगी। लेकिन जीवन में और भी बहुत कुछ चाहिए। रहने के लिए अच्छा घर, भोजन, इलाज। और इन सबके लिए पर्याप्त पैसे, जो नौकरी करने या किसी अन्य साधन से ही आ सकते हैं। आर्टिस्ट इस व्यवहारिक पक्ष से मुंह मोड़ता है। इसलिए उसे खाने । के लाले पड़ जाते हैं।
दुर्भाग्य देखिए कि उसे पेरिस से निमंत्रण तब आता है, जब प्राण उसके 5 दिन से भूखे शरीर को हमेशा के लिए छोड़ देते हैं।
एक वाकया समझ में नहीं आया। आज के युग में जब मोबाइल फोन-ईमेल से संवाद होता है, ई-चिट्टी पत्री आती है। लेकिन, किताब में एक विदेशी पेंटर के घर पहुंचता है और बताता है कि “We are From Paris. We want to do an agreement with Mr.vineet. Here’s the advance Cheque.” विनीत का अंत समय आने पर विनीत को चाहने वाले एक साथ विनीत के घर पहुंच जाते हैं, और बताते हैं कि अंदर से इच्छा हो रही थी, आपसे मिला जाए। यह वाकया भी अविश्वसनीय लगा। हालांकि कई लोगों के साथ ऐसा हुआ भी है।
कुल मिलाकर प्रकाश शिन्दे ‘अबोध’ का यह नाटक लेखन इतना परिपक्व, इतना सधा हुआ, इतना साहित्यिक, उत्कृष्ट भाषा शैली से इतना समृध्द और इतना लयबध्द है कि लगता है वह कई किताबें लिख चुके हैं।
किताब का मूल्य है रुपये 275

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