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अडानी के चक्कर में रणभूमि बनती संसद   

सभी को महाशिपरात्रि पर्व की बहुत-बहुत शुभकामनाएं । शिवजी विषपान करते है वे अपने गले मे विषधारी नाग को लपेटे दिखाई देते हैं, वे सारी वस्तुएं जिन्हें आमतौर पर हम वर्जित मानते हैं, वे उनके पास होती हैं । हमने सदियों से उनके इस स्वरूप् को ही देखा है । उनका यह रूप हमें विचार करने का अवसर देता है । वे अपनी शादी में भी वो ही परिधान पहने रहते हैं जिसे देखकर आमतौर पर हमें भय पैदा होता है । वे नाचते-कूदते मस्तती में दिखाई देते हैं । हमारे दूल्हा-दुल्हन के परिधान तो मंहगे होते जा रहे हैं । शादी-ब्याह का सीजन चल रहा है और इस सीजन में जिस तरह की फैशन दिखाई दे रही है वह चिंता पैदा करने वाली है । महंगे होते मैरिज गार्डन, मंहगे होते व्यंजन और महंगे होते वर-वधु के परिधान, आम व्यक्ति इन्हें देखकर ही परेशान हो जाता है । हमारी संस्कृति में शादियों की अपनी परंपरा होती है, जो शालीनता और धार्मिक रीतिरिवाजों को प्रदर्शित करती रहीं हैं । जो अब हो रही शादियां फिल्मी शूटिंग के केन्द्र में परिवर्तित हो चुकी हैं । दूल्हा-दुल्हन किसी फिल्मी ऐक्टर की भांति अपने आपको सजा-संवार कर अपने पैसे वाले होने का विज्ञापन करते हैं । पैसे हैं उनके पास, इस तरह बरबाद करने को पर जिनके पास नहीं है, वे इस नई बनती जा रही परंपरा से भयभीत हैं । प्रीबेडिंग के नाम पर अब फूहड़ता परोसी जा रही है । बुजुर्ग अपना सिर नीचा किए बैठे रहते हैं या वे भी बेशर्म हो जाने को मजबूर दिखाई देने लगे हैं । महाशिवरात्रि का पर्व भोले शंकर के ब्याह का पर्व है, हम इस पर्व को पूरी धार्मिकता से मनाते तो हैं पर उससे शिक्षा नहीं लेते । विषपान करने वाले भोलेनाथ मंद-मंद मुस्कान से हमें देख रहे होते होगें । जब हमको अपनी परंपराओं को मानना ही नहीं है, जब हमें अपनी संस्कृति से दूरी बनाना ही है तो फिर धार्मिकता का लबादा क्यों ओढ़ रहे हैं हम । जरा-जरा सी बात पर अपनी धार्मिकता की आढ़ लेने वाला समाज इन बेहूदी होती परंपरा पर मौन रहना भी घातक हो रहा है । पर इस समय तो पूरा देश अडानी के आरसपास घूमता दिखाई दे रहा है । जिन्हें अडानी से कोई मतलब नहीं है, जिन्हें राजनीति से कोई मतलब नहीं है वे भी अडानी की चर्चा कर रहे हैं, पानी की दुकानों से लेकर ससंद तक में अडानी मौजूद नजर आ रहे हैं । लगभग सभी अडानी के गिरते शेयरों से  हतप्रभ है, बहुत सारे लोग तो उनकी बढ़ती अमीरी से भी हतप्रभ रहे होगें । कदम-कदम से नापी गई दूरी से प्राप्त मंजिल स्थाई होती है, पर जब भी दौड़-कूद कर हाॅफते हुए मंजिल पर पहुंचा जाता है, उसका आयु अल्प ही हो जाती है । अडानी चचाओं में है, संसद से लेकर सड़क तक । कई आरोपों के दौर चल रहे हैं । आरोपों की सच्चाई किसी को नहीं मालूम पर इस बहाने अपने तरकश के तीर तो चला ही लिए जा रहे हैं । संसद में भी बहुत हंगामा हुआ । संसद में बजट रखा गया था, इसमें क्या कमी रह गई, इसमें और क्या जोड़ा जा सकता था इस पर विचार किया जाना ज्यादा आवश्यक था । देश का बजट आने वाले साल का आईना होता है, इसके कारण इस पर सभी की निगाहें भी रहती हैं, पर निगाहें घूम गई वे बजट की बजाए अडानी के चारों ओर घूमती दिखाई देने लगी । अडानी देश का भविष्य नहीं है, देश का भविष्य तो बजट तय करेगा । कोरोना काल की विपदा को झेल चुके देशवासियों के सामने आने वाले कल की चुनौतियां हैं, हर चुनौती में उसे अपने आपको समाहित कर देखना होगा । महंगाई बढ़ रही है तो इसका प्रभाव भी दिखाई दे रहा है । आय कम और खर्चे अधिक, इससे हताशा और निराशा बढ़ रही है । ससंद में रखा गया बजट से भले ही आम लोगों को समझ में न आता हो पर वे इसमें होने वाली बहस से इसके अच्छा या खराब होने का मतलब तो निकाल ही लेते हैं । आम आदमी जानता है कि अप्रेल से बाजार में परिवर्तन आता है, पर यह परिवर्तन उसके लिए कितना फायदे वाला अथवा नुकसान देने वाला है यह वह नहीं जानता । ससंद में बहस वैसी नहीं हो पाई जैसी अपेक्षित थी । बहस अड़ानी पर भी नहीं हो पाई जिसके प्रति आमलोगों मंे जिज्ञासा बढ़ चुकी है, संसद प्रारंभ होकर स्थिगित होती रही अंत में वह सब कुठ हो ही जायेगा जो तय किया गया केवल आम आदमी नसमझ बना रहेगा । भोलेनाथ विषपान करते हैं उन्होने समुद्र मंथन से निकले विष को पान किया था जिसे और कोई पान नहीं करना चाह रहा था । विष हर कोई नहीं पीना चाहता, पर विष जैसा सब कुछ तो हर कोई पी ही रहा है । आम आदमी अपने आपको उन्हीं परिस्थितियों में खड़ा पाता है जहां वह भले ही विषपान न कर रहा हो पर विष जैसा सबकुछ पान कर रहा है । अडानी से लेकर ससंद के न चलने से उपजे वातावरण का विष भी तो उसके ही हिस्से में आ रहा है । राजनीति के बदलते मायने अब विकास और विनाश के भावों के बीच आकर खड़े हो गए हैं । विकास तो चाहिए ही, उसके बिना अब चल पाना कठिन है, पर विनाश न हो इसका साूिहितक प्रयास भी आवश्यक है । तुर्की में आया भूकंप विनाश का ट्रेलर है । लाखों जिन्दगियां पल भर में काल में समा गई । साल में ऐसी कितनी घटनायें होती हैं जो अकाल मृत्यु का कारण बनती हैं । भूकंप आता है, ज्वालामुखी धधकता है और अचानक भयानक बाढ़ आती है, जो अपने साथ बहुत सारा बहाकर ले जाती है ।  तुर्की और सीरिया की धरा हिल गई, इस धरती का कंपन ने पूरे विश्व को कंपायमान कर गया । क्या यह विनाश विकास के गलत तरीकों के कारण आया, इस पर चिन्तन किया जाना जरूरी है । पर चिन्तन हो नहीं रहा है । वे विशेषज्ञ जो इस विकास से उपज रहे खतरे की ओर इंगित भी करते हैं, उनकी आवाज अनसुनी रह जाती है । हमारे देश में भी तो बड़े-बड़े पहाड़ दरक रहे है, पहाड़ों को चीरकर विकास किया जा रहा है, तो पहाड़ कब तक अपने ही बोझ को असंतुलित ढंग से अपने सिर पर उठाए रखेगें । पहाड़ों की हिम्मत जबाव देने लगी है, वे भी कांप जाते हैं तो भूस्खलन होने लगता है । पहाड़ों के सहारे बसे घरों में दरारें आ रही है, जोशी मठ बहुत बड़ा उदाहरण है ।  । मकान धंसकने लगे हैं पर बावजूद इसके विकास जारी है । वर्षों से प्रकृति और विकास के बीच यह संघर्ष चल रहा है । साल में जाने कितनी बार भूस्खलन होता है । सड़क से मलबा हटाकर फिर वही प्रक्रिया को दोहराया जाता है । विकास के और रास्ते नहीं खोजे जा रहे हैं । विकास तो रोका नहीं जा सकता, औार न ही  विनाश को रोका जा सकता है, पर इसके अंतर को कम किया जा सकता है । ऐसा किवास किए जा सकता है जो विनाश न होने दे अथवा कम विनाश हो । हमारी टैक्नाॅलजी बहुत आगे बढ़ चुकी है तो उसका प्रयोग और उपयोग किया जाना चाहिए । मध्यप्रदेश के बाद उत्तर प्रदेश में भी इनवेस्टर मीट का आयोजन किया ताकि उद्योगपति आयें और अपने उद्योग यहां लगायें । उद्योग लगना जरूरी है जो विकास भी देगें और रोजगार भी । रोजगार बहुत जरूरी है, करोड़ों युवा अभी भी सड़कों के सारे अपने दिन व्यतीत कर रहे हैं । हम जिसे युवा शक्ति कहते हैं वह निराशा के दौर से गुजर रही है । उस काम चाहिए जो है नहीं । थोड़ा बहुत जो रोजगार निकलता भी है वह पर्याप्त साबित नहीं होता, नौकरियां कम हैं और नौकरी पाने वालों की संख्या अधिक है । खुलने वाला हर नया उद्योग रोजगार की संभावना को बताता है । देश के अलग-अलग राज्य उद्वोगपतियों को बुलाकर उनसे अपने राज्य में उद्योग लगान की गुहार करते हैं । उत्त्र प्रदेश को इससे कितना लाभ होगा अभी कोई नहीं जानता, पर प्रक्रिया तो चल ही रही है ।बालीबुड भी तो बड़ा उद्योग है जिस पर अभी खतरे के बादल मंडरा रहे हैं । पछले कुछ सालों में जाने कितनी नई बनी फिल्मों को बहिष्कार के दौर से गुजरना पड़ा है । इनमें से कुछ फिल्में तो बक्सें के अंदर रख दी गई हैं, पर पठान जैसी फिल्म जिसका विरोध सारे देश में हुआ , वह अपनी कमाई में लहीं है । फिल्मों को बंद कराने से इस उद्योग पर भी खतरा दिखाई देने लगा है । पठान फिल्म ने इस गुरूर को तोड़ा है कि फिल्म न चलने देने की धमकी बेअसर की जा सकती है । इस बीच एक ओर फिल्म रिलीज हुई ‘‘को अहम्’’ । कम लागत होने के बाबवूजद भी  नवोदित डायरेक्टर शिरीष खेमरिया की मेहनत ने इस फिल्म को आमजन के बीच अपनी बेहतरीन उपस्थिति दर्ज कराई । मध्यप्रदेश में नर्मदा नदी का बहुत महत्व है, इस नदी से केन्द्र में पूरी फिल्म घूमती है । पूरी फिल्म आत्म चिंतन और आत्म मंथन को प्रदर्शित करते हुए रोचक ढंग से आगे बढ़ती है । यही इस फिल्म की खूबसूरती भी है । इस फिल्म को नर्मदा नदी के तट पर ही शूट किया है । छोटे-छोटे शाॅट और शानदार डायलाग डिलेवरी ने फिल्म में रोचकता दी है । हमारे देश में ऐसी फिल्में देखने और उन्हें पसंद करने वालों की संख्या पर्याप्त है यही कारण है कि यह फिल्म चली भी और चल भी रही है । । वैसे भी इसने विदेशों में अपनी सफलता के झंडे गाड़े ही हैं । 22 वर्षीय श्रििष खेमरिया गाडरवारा जैसे छोटे शहर से निकलकर बालीबुड में अपना स्थान बना रहा है और इतनी बड़ी फिल्म को डायरेक्ट कर रहे है, यह उनके भविष्य के लिए मील का पत्थर साबित होगी, शिरीष को बहुत बहुत बधाई ।

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