संपादक मनमोहन शर्मा ‘शरण’
अक्टूबर माह का प्रारंभ भारत की दो महान विभूतियों की जयंती से हो रहा है। 2 अक्टूबर एक और राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जी की जयंती दूसरी ओर सादा जीवन उच्च विचार की सर्वोत्तम मिसाल भूतपूर्व प्रधानमंत्री लालबहादूर शास्त्री जी की भी। तिथि दो महानविभूतियाँ भी दो, जिन्होंने ना सिर्फ भारत अपितु विश्व में अपनी योग्यता सक्षमता और महानता का बिगुल बजाया जिन्हें विश्व नमन करता है।
अक्सर एक दृश्य सामने आता रहता है जब कोई बड़ा नेता-राष्ट्र के उच्च पदों पर आसीन नेतागण उनकी समाधि पर नमन करते हैं, पुष्पांजलि करती हैं, उअच्छा हो उनके जीवन आदशों को पठन-मनन करते हुए उस पर अमल करने का तनिक घात्र यत्न करें, तभी सार्थकता होगी। गाँधी जी सत्य, अहिंसा, न्याय का आधार, आध्यात्मिकता ज्ञान और प्रेरणा हैं, वहीं लालबहादुर शास्त्री ने सदैव सत्यनिष्ठा का पालन किया जिन्हें सादगी की मिसाल कहा जाता है, नमन करते हुए चित्र साझा हो जाता है, कितना सुखद हो कि उनका चरित्र भी हम अपनाकर साझा करें।
इन्हीं के साथ माँ के पावन नवरात्रे प्रारंभ हो रहे हैं, रामलीला का मंचन देश के अधिकांश भागों में होता है, यहां भी मानना वही है कि पात्रों का उनको अच्छाई बुराई का मंचन किया जाता है जिसका एकमात्र उद्देश्य होता है। होना चाहिए बुराई पर अच्छाई की विजय। किन्तु इस उद्देश्य को क्या सैंकड़ों सालों में हम प्राप्त कर पाए। रावण का पुतला जो प्रतिवर्ष ऊँचा और ऊँचा होता चला जा रहा है जो एक डरावनी हँसी हंसता है जब उसका दहन किया जाता है। जिसका भाव एकमात्र यही होता है इस लकड़ी कागज के पुतले को जलाकर कितना खुश हो रहे हो जबकि वास्तविक हजारों-लाखों रावण तुम्हारे अन्दर जीवित बैता है। न कोई घर, न कोई बालिका सुरक्षित फिर किस बात को खुशियाँ मना रहे हैं। सच कड़वा है, स्वीकार करना होगा और मिलकर इस पर कार्य करने को आवश्यकता है।
समाजसेवी संत मुनि महात्मा वर्ग एक गाने के बोल दुहरा रहे हैं ‘देख तेरे संसार की हालत क्या हो गई भगवान, कितना बदल गया इंसान’। कितना ? इतना कि राजनोति’ जिसमें नीति तो पहले ही दिखनी नगण्य सी हो गई है किन्तु अब भगवान को भी बीच में लाकर लाखों भक्तों-श्रद्धालुओं की भावना से खिलवाड़ करने से नहीं चूकते। तिरुपति बालाजी विशाल मंदिर, जिसके प्रति भक्तों में अटूट श्रद्धा-विश्वास एवं मान्यता है। लाखों की संख्या में वहाँ श्रद्धालु पहुँचते हैं और श्रद्धा भक्ति एवं आस्था के अनुसार दर्शन पूजा अर्चना करते हैं किन्तु जब उस दिव्य स्थान के प्रसाद पर ऐसी टिप्पणी आती है जिससे पूरे देश की राजनीति भक्तों की श्रद्धा-आस्था पर भूचाल आ जाता है और आखिर सुप्रीमकोर्ट को यह कहना ही पड़ता है कि भगवान को तो राजनीति में ना घसीटें। जो गलत है अवश्य आवाज उठानी चाहिए, न्याय भी मिलना चाहिए किन्तु कोई बयान घृणा एवं तुच्छ राजनीति से प्रेरित न हो। क्योंकि हमें समझना चाहिए कि भगवान की लाठी में आवाज नहीं होती किंतु जिस पर पड़ती है वह चिल्लाता ही रह जाता है। थोड़े में हो ज्यादा समझा जाए तो बेहतर है।