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नए साल की नई सुबह : राजनीतिक सफरनामान

                                                                                                   कुशलेन्द्र श्रीवास्तव

नए कैलेण्डर के नए वर्ष के सुनहरे पन्ने पर दर्ज नए साल के भावो को अंगीकार कर सूरज की शीतल रष्मियों से आल्हादित आंगन की भोर में नया भले ही कुछ भी न हो पर मन में नएपन का उत्साह अवश्य होता है । चिड़ियों की सहक तो पुरानी ही है पर उसमें लनया गान सुनाई देने लगा है । नए साल के मुख्य पृष्ठ पर हमारी आंखों के सामने जनवरी माह की 22 ताीख को होने वाले रामलला की मूर्ति की प्राणप्रतिष्ठा का चित्र भी अंकित है जो जीवंत स्वरूप् लेने वाला है । अद्भुत है यह सारे देश में इसके प्रति उत्साह को नापने का कोई यंत्र नहीं है । खुशनसीब होता वातावरण इस बात की गवाही दे रहा है कि आने वाले समय में कुछ तो बहुत अच्छा होने वाला है । हर साल तो बदलते हैं पन्ने कैलेण्डर के हर साल ही तो कैलेएडर का नया पन्ना रंगीन और खूबसूरत दिखाई देता है और हर साल ही दिसम्बर आते-आते कैलेण्डर के पन्ने धुंधले हो जाते हैं । खैर पर अभी तो आज ही हमने बदला है कैलेण्डर और सोच रहे हैं कि क्या-क्या गुजरा 2023 में । बहुत कुछ हुआ है राष्ट्रीय स्तर पर विश्व पटल पर भारत अपने विश्व गुरू बनने के लक्ष्य के नजदीक पहुंचता दिखाई देने लगा है । । जी-20 का सम्मेलन भारत को नई ऊंचाईयां देकर गया है । विश्व के बड़े-बड़े नेता भारत की भूमि में आए और महात्मा गांधी की समाधी पर नंगे पैर पहुंचकर उन्ेिं श्रद्धांजली अर्पित करते हुए दिखाई दिए । मणिपुर की घटना से भी उद्वेलित हुआ है सकल समाज, कितना वीभत्स दृश्य था वो जब दो महिलाओं को नग्न कर उन्हें घसीटा गया और उन्के साथ अत्याचार किया गया । सारे देश ने उसकी निंदा की ।  राजीनीति की उठापटक का स्थाई चित्र भी दिखाई दिया है है इस साल । ससंद भवन के अंदर घुसे तथाकथित लोगों की घटना ने भी दहशत पैदा की । नए ससंद भवन का उदघाटन हुआ और उसमे ही ऐसी घटना भी हो गई । महिला आरक्षण बिल पारित हुआ और वो भी सर्वसम्मति से । कुछ राज्यांें की सत्ता बदली और सत्ताधीश भी बदल गए । गुमनाम नेता अब सत्ता की कुर्सी पर आसीन हो चुके हैं । विश्व पटल पर युद्ध का दौर प्रारंभ हुआ जो रूस-यूक्रेन से होता हुआ इजरायल-फिलीस्तीन पर आ टिका है । ये युद्ध कब खत्म होगें कोई नहीं जानता और कौन-कौन से देश इस युद्ध के सहायक बनेगें कोई नहीं जानता सुगबुगाहट का दौर जारी है और आम आदमी अपने दिलों की धड़कनों को दबाए आने वाले समय की प्रतीक्षा कर रहा है । घटनाऐं हुई और दुघर्टनाओं का ग्राफ भी तेजी से आगे बढ़ा है । उम्मीदों का लिबास पहनाकर खेतों की काली मिट्टी में अनाज के जो बीज दबाये हैं किसानों ने, वे बीज कितनी फसल दे पायेगें और वह फसल सुरक्षित बची रहेगी पाला और ओला से यह नहीं लिखा होता है कैलेण्डर में । किसान अनाज के बोरों को मंडी ले जाए और व्यापारी उसके उचित दाम लगाये रूपये पैसे समय पर दे दे, गन्ना मिलें उसका गन्ना, बांसों से भी कम मूल्य पर न खरीदे यह भी तो नहीं लिखा होता है कैलेण्डर में । किसान तो अभी अभी कर्जा मुक्त होने की नई सरकार की घोषणा के धरातलीय कार्यवाही की प्रतीक्षा में है । क्या सच में ही माफ हो रहा है उसका कर्जा अभी इसी उधेड़बुन में है । यूरिया की कृत्रिम त्राही त्राही खड़ी फसलों पर पाला की चेतावनी से भयभीत है किसान उसके सामने नये साल का जश्न मनाने का समय ही नहीं है ।  वचन पत्र के सम्मोहक वचनों से प्रभावित होकर उसने सरकार बदली है । बदली हुई सरकार, कैलेण्डर बदलने जैसी नीरसता तो नहीं दे जायेगी उसके सामने प्रश्नों का कोष्टक है । आनंद, प्रसन्नता और मुस्कान से अब आम आदमी का कोई रिश्ता बचा ही कहां है । हंसने के लिये उसे खुले मैदान में ‘‘हास्य योग’’ करना पड़ रहा है और बाबा रामदेव के ‘‘अनुलोम-विलोम’’ करते हुए गहरी सांसे अपनी कमतर होती छाती के अंदर भरनी पड़ रहीं हैं । दिन में जाने कितनी बार वह छोड़ता रहता है गहरी संासे पर वे योग के दायरे में कहां आती हैं । जी तोड़ मेहनत फटे कपडे से ढंके तन भी तो योग की परिधि में नहीं आते । आम आदमी भी विकास के दायरे में आने को तड़फ रहा है पर हर बार विकास का दायरा सिमट कर रह जाता है आम आदमी उसमें समाहित ही नहीं हो पाता । दरअसल आम आदमी की, विकास की अपनी परिभाषा है और सरकार की अपनी परिभाषा है । सरकार तो हर बार कहती है कि आम आदमी विकास के पथ पर अग्रसर है और आम आदमी विकास के इस पथ को ढ़ूढ़ता ही रहता है । आजादी के इतने सालों के बाबजूद वह अपने मौलिक अधिकारों से वंचित होता महसूस होता है । अस्पताल हैं पर दवायें नहीं, स्कूल हैं पर शिक्षक नहीं आफिस है पर वहां कर्मचारी नहीं, अधिकारी हैं पर काम होता नहीं । फाइलों के अम्बार गवाही दे जाते हैं कि आफिसों में कितना कुछ होना शेष है । इन फाइलों में जिनकी किस्मत कैद होती है उसकी पीड़ा का अहसास किसी को नहीं होता । ‘‘वजन’’ रखाउ प्रथा की चपेट में बना रहता है आम आदमी । ‘‘जिसकी लाठी उसकी भैंस’’ के तर्ज पर ‘‘समरथ को नहीं दोष गुर्सांई’’ के भावों के साथ वे लाभ ले लेते हैं जिनका वाकई अधिकार ही नहीं होता और जिसका अधिकार होता है वह केवल प्रतीक्षा करता रहता है । योजनाओें के मकड़जाल में घोषणाओं की गोदाम में वे काम भी गुम हो जाते हैं जिनको वाकई हो जाना चाहिये बगैर किसी के आदेश दिये । पर सब चलता है के भावों की खाई में कुछ नहीं हो पा रहा है की वास्तविकता को प्रदर्शित करता नजर आ रहा है सब कुछ ।  व्यवस्थाओं पर भी तो हथौडा चलाना आवश्यक है । ये व्यवस्थायें ंही तो विकास के लिये मील का पत्थर होती हैं । हर साल नया कैलेण्डर अपने घरों की कील पर लगाता हुआ आम आदमी बहुत कुछ ढूंढता है और नये उत्साह के साथ संक्राति के मेले में संगम तट पर डुबकी लगाता है ताकि उसके तन से लिपटी अधूरी इच्छायें नदी में विसर्जित हो जायें और वह झाकझक होकर अपने जीवन की नैया को खे सके । नई सरकार प्रदेश के आसमान में अपनी नई छवि बनाने आतुर है और आम आदमी उस आसमान में अपनी कल्पनाओं के इन्द्रधनुषीय रंग देखने का उच्वास लिये स्वागतरत है । लोकतंत्र के महापर्व में अपनी पवित्र आहुति डाल चुका आम आदमी अब सुगंधित विकास की राह देख रहा है जिसकी आहट उसे सुनाई दे रही है । उसे भरोसा है कि नई सरकार नये वर्ष में सौगातों का उपहार देगी और कम से कम इतना तो कर ही देगी ताकि उसका जीवन बगैर अवरोध के आगे बढ़ सके । यदि नई सरकार द्वारा केवल घोषणाओं का वियावान नहीं रचा गया यदि धरातलीय संभावनाओं का रेखाचित्र बनाकर अमल किया गया तो हो सकता है कि दो हजार उन्नीस का यह साल उसके लिये मील का पत्थर साबित हा,े वह प्रगति पथ का राही बन आगे बढ़ सके । अब हम सभी समझ चुके हैं कि प्रवचनोें के शाब्दिक जाल से और आदर्श वाक्यों की इबारत से गांधी की कल्पनाओं का भारत नहीं बन सकता जिनकी एक सौ पचासवीं ज्यंती मनाने का हमने सकंल्प लिया है । गांधी जी को विचारीधारा के रूप् में हमने स्वीकारा है । विचारधारा समग्र विकास की, समग्र उत्थान की, समग्र अवदान की । यदि रोजगार विहीन चेहरों पर नीरसता ही रहेगी और मध्यवर्गीय परिवार बिन सहायता के अपनी पहचान खोते जायेगें । पशुधन सड़कों पर बेमौत मरते रहेगें । कृषि भूमि सिकुड़ती जायेगी और किसान उपज के दामों के लिये परेशान होता रहेगा । तो फिर गंाधी के विचारों के साथ न्याय नहीं होगा और न ही उनकी एक सौ पचासवीं जयंति मनाने का कोई मायने होगा । हमें सोचना होगा और विकास के नये आयाम को उकेरना होगा । विकास के नये बिन्दु चुनने होगें उसका छोर मध्य से नहीं सिरे से ही पकड़ना होगा ताकि सारे लोग समाहित होते रहेगें उन आयामों में । नये साल में नई सरकार से इतनी उम्मीद तो बनती है आम नागरिकों की ।

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