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उम्मीद: नन्हे दीपों के उजियारे से

                                                                                                             कुशलेन्द्र श्रीवास्तव

तिमिर के नाश का पर्व दीपोत्सव द्वार पर दस्तक दे रहा है । हमें अमावश्या की गहन काली रात को नन्हें दीपों का उजियारा कर प्रकाशवान करना है । प्रकाश ही तो हमारे पथ को आलौकिक करता है । पर अंधियारा इतना फेल चुका है कि नन्हे-नन्हे दीपों का प्रकाश हमारा मार्ग प्रस्शत कर ही नहीं पा रहा है । हर साल हम अमावश्या के अंधेरे को उजयाले मे बदलने की कोशिश करते हैं और हर बार हमारे चारों ओर अंधियारा बढ़ता ही जा रहा है । त्यौहरों ने जाने क्यों हमें आनंद देना बंद कर दिया है । हमारे उदास चेहरों पर त्यौहरों की लालिमा दिखाई ही नहीं देती है । बढ़ती महंगाई, बढ़ते अपराध और बढ़ते मानसिक तनाव के बीच में हम नन्हे से दीपों के उजियारे की आश में कब तक बैठे रह सकते हैं । दशहरे पर रावण के पुतले के संग अपने अहंकार को जला देने के प्रहसन के बाद भी अमावश्या का कालिमा हमें प्रकाशवान कर ही नहीं रही है । हमारे पास तो दो बूंद तेल की है भी नहीं कि ताकि हम हर वर्या अपने आकार को छोटा कर रहे माटी के दीपों में भर लें इस उम्मीद के साथ कि अब यह उजियारा हमें नई उर्जा दे ही देगा । हम तो प्रकाश में भी छले जा रहे हैं और अंधियारें में भी । आमव्यक्ति की तिजोरी खाली है । वह खाली तिजोरी के ऊपर ही स्वास्तिक का पवित्र चिन्ह बनाकर पूज रहा है इस उम्मीद के साथ कि कभी चिल्लर से ही सही उसकी तिजोरी भर ही जायेगी । उसकी सीमित होती आय और बढ़ती महंगाई के बीच नित प्रति धर्म युद्ध चल रहा है उसके कानों में कृष्ण की गीता के उपदेश गूंज रहे हैं ‘‘तू क्या लेकर आया था और क्या लेकर जायेगा’’ । सचमुच वह तो कुछ भी नहीं लेकर आया था पिताजी की विरासत को सम्हालने का प्रयास किया पर वह भी दिन प्रति दिन कम होती चली गई अब तो वाकई वह खाली हाथ हो गया है । वह अभावों के आंगन में भावों की दीपशिखा कैसे प्रज्जवलित कर पायेगा । कोरोना ने भी तो बरबाद की है हमारी अर्थव्यवस्था । बंद शटरों में जड़े रहे ताले और जब ये ताले खुले तो उसकी निगाहें ग्राहकों को तलाशने लगीं । ग्राहक भी तब ही आयेगा न जब उसकी जेब में पैसा होगा, पैसा है ही नहीं फिर वह खरीदेगा क्या । आम आदमी भी तो चेहरे पर उदासी लिए अपने दिन काट रहा है । कोरोना ने किसी न किसी परिवार में अंधियारा तो किया ही है । बीमारों के इलाज में पैसे गए और जिसका इलाज करा रहे थे वह भी चला गया । वह तो ठगा कर ही रह गया । सरकार का लालीपाप उसे आंनद नहीं दे पा रहा है । वह अंतस में दर्द समेटे संघर्ष कर रहा हे स्वंय के अंदर फेल चुके अंधियारें के साथ । वह दीप जलाकर कैसे आनंद मना सकता है । सच में संक्रमणकाल के दौर से गुजर रहे हैं हम । महंगाई इतनी कि कभी प्याज के काटने से आंसू निकलते थे अब केवल उसके दाम सुनकर आंसू बह रहे हैं । तेल महगा, दाल महंगी, नकली चावल तक महंगा रसोई का सिलेंडर मंहगा, महंगाई का दौर है पर फिर भी मोबाईल में नेट पेक घर के कनस्तर में आटे से ज्यादा महत्वपूर्ण हो गया है । फिर भी दीपावली तो है ही हमें आनंदित होने का प्रहसन करना ही होगा, हमें अपने कांक्रीट के आंगन में दीपों की कतार लगाकर उजियारा तो करना ही होगा हम करेंगें भी, यही तो हमारी परंपरा है । अंधियारे से संघर्ष करना तो हमारी संस्कृति है । पर हमारी संस्कृति अब है कहां वह भी तो गुम हो गई है आधुनिकता के भंवर में कम उम्र के बच्चे सेवन करने लगे हैं मादक पदार्थों का । शाहरूखखान जैसे अभिनेता का बेटा बंद है जेल में मादक पदार्थ के चक्कर में । हमारा समाज तो फिल्मों से और फिल्म अभिनेताओं से प्रेरणा लेना चाहता है पर ऐसा प्रेरणा तो बिलकुल ही नहीं । पैसों की चमक इनकी ही पीढ़ीयों को बरबाद कर रही हैं और हमें सचेत की रूपहले परदे में दिखने वाले इनके सौन्दर्ययुक्त चेहरों के बहकावे में हम न आएं । विगत कुछ वर्याों से हमने बालबुड के उस चेहरे को देख लिया है जो अपनी कालिमा के घेरे को ब्युटीपार्लर जैसा चमका कर हमें भ्रमित करता रहा है । इस चहेरे से उतरने वालार नकाब अमावश की कालिमा से अधिक खतरनाक दिचाई देने लगा है ।  किसाना आन्दोलन को भी तो आवश्यकता है दीप के उजियारे की । वे ठहरे हुए है राजमार्ग पर अपना डेरा बांधे, वे कभी भारत बंद का आव्हान कर तो कभी रेल रोक कर अपनी उपस्थिति दर्ज कराने का प्रयास करते रहे हैं ।  आम आदमी को परेशान कर वे कुछ हासिल कर सकें यह तो संभव भी नहीं हैं और उचित भी नहीं है । सुप्रीम कोर्ट ने तो कह ही दिया है कि मार्ग के अवरोध खाली करा दिया जाये, मार्ग निवास करने के लिए नहीं होते वे आन-जाने के लिए होते हैं, पर इसमें दोष किसानों का कहां है, वे दिल्ली की गलियों में प्रवेश न कर सकें इसके लिए ही तो उनके सामने अवरोध लगा दिए गये और वे अवरोध हट जाने की आश लिए बैठे रह गए । अब क्या होगा, अवरोध हटाकर उन्हें दिल्ली की गलियों में प्रवेश करने दिया जायेगा । कोई न कोई रास्ता तो निकाला ही जाएगा । पर आंदोलन खत्म हो सके इस रास्ते को निकालने के ही प्रयास हों तो बेहतर है । कांग्रेस भी अपने चारों ओर फेल चुके अंधियारे को खत्म करने की कोशिश में लगी हुई है । वो भी तो नन्हें दीपों के सहारे उजियारे की आस लिए कदम बढ़ा रही है । उसके अस्तित्व के सामने भी चुनौती है, दीपों की तरह । कभी बेतहासा प्रकाश से प्रकाशवान रही कांग्रेस क्रमशः अंधियारे की ओर सिमटती चली गई । हाईकमान के अहंकसारी स्वरूप् ने उनकी बरबादी का गाथा को लिखा पर अब जब उन्हें अपने चारों ओर सिमटे अंधकार का अहसास होने लगा तो वे भी दीपों के भरोसे तिमिर नाश करने की आश लिए मैदान में आ गए । कन्हैया कुमार जैसे कुछ युवा नेताओं को अपने साथ कर वे अपने वजूद को बचाने का प्रयास करने लगे हें । वैसे उम्मीद तो की जा रही है कि अभी और भी दीप उनके आंगन में रोशनी बिखरने आ सकते हैं यदि ऐसा हुआ तो कांग्रेस को कुछ आश बंध ही जायेगी । प्रियंका गांधी तो उत्तर प्रदेश में जिस तरह से अपनी पूरी ताकत झौंक रहीं हैं उससे वहां के कार्यकर्ताओं में उत्साह तो दिखाई देने ही लगा है पर यह उत्साह वहां होने वाले चुनावों में सफलता दिल दे तब ही वह सार्थक माना जायेगा । उत्तर प्रदेश में चुनाव होने हैं और बहुत सारे राजनीतिक दल वहां अंधियारा होने का अहसास करा कर उजियारा फेला देने का वायदा करने लगे हैं । वोट तो आम जनता ही देती है न वो किसके बहकावे में आयेगी यह तो बाद में पता चलेगा पर इतना अवश्य है कि उसके पास अब विकल्प खड़ा दियााई देने लगा है । विकल्प अच्छे चयन में मदद करता है । चुनाव तो पांच राज्यों में होने हैं पर सबसे अधिक सुर्खियों में उत्तर प्रदेश ही है । पंजाब में तो अकल्पनीय ढंग से कैप्टन अमरेन्द्र सिंह को हटा कर उन्हें घर बैठा दिया गया है । ये अलग बात है कि वे अब भी ताल ठोक रहे हैं । उनके पास अपनी ही नई पार्टी बना लेने का विकल्प तो है पर इतना उन्हें समझ ही लेना होगा कि ऐसी जाने कितनी पार्टियां बन कर बिखर चुकी हैं । पर वे नन्हे दीप के माध्यम से अपने भविष्य को प्रकाशवान करने के लिए ललायित तो है ही । इसका भविष्य क्या होगा यह तो समय के साथ ही पता चलेगा । अभी तो हमें अपने दीपों में दो बूंद तेल की डाल कर उजियारा करना ही है । पर दीपावली है न दीपों के प्रकाश के बिना यह कैसे पूरी होगी, पटाखों की गर्जना के बिना कैसे जगजाहिर होगी । हम ने अभावों में मुस्कुराना सीख लिया है हमने तेल के बगैर बाती को जलाना सीख लिया है, तो आईये हम नये उत्साह के साथ स्वागत करें दीपावली का बगैर किसी आकांक्षा के । हम एक दूसरे को को शुभकामनायें अर्पित करें दीपोत्सव की ।

सभी को बहुत बहुत बधाई हमारी परंपरा के अनोखे दीपोत्सव की ।

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