राजनीतिक सफरनामा
चुनावी पतंगों से सज चुका आसमान
कुशलेन्द्र श्रीवास्तव
लोहड़ी पर्व पर पतंगबाजी होती है । पहले अपनी पतंग को हवा में ऊंचा उड़ाओ और फिर हवा में उड़ रही दूसरी पतंग को काट डालो । राजनीति में भी ऐसा ही होता है । आवश्वासनों से भरी रंगबिरंगी पतंगें आसमान में उड़ती रहती हैं और चुनाव के आते ही एक दूसरे की पतंग को काटने की होड़ लग जाती है । वे अपने देशी मंजे से हवा भरी पतंगों को काटने का हुनर जानते हैं । जो जितना अच्छा हुनरबाज होता है वह राजनीति का सितारा बन जाता है । यह अलग बात है कि राजनीति में कोई लम्बे समय तक सितारा बना नहीं रह पाता, जिस दिन उसकी पतंग कट जाती है वह पतंग के साथ खुद भी धरातल पर आ जाता है । पर वह फिर भी हार नहीं मानता । वह फिर उठता है, खड़ा होता है और नई पतंग उड़ाने लगता है । उत्तर प्रदेश की सीमाओं में भी पतंगें उड़ रही हैं । ये चुनावी पतंगें हैं । नए कुरता-पायजाम पहने नेता अपना देशी मंजा लगी डोरी से पतंगों को आसमान की ओर उड़ा रहे हैं । वे एक दूसरे की पतंगों को काटकर विजयी होना चाहते हैं । आम मतदाता तो हमेशा की तरह केवल ताली बजाने के काम ही आ रहा है । विभिन्न रंगों की ये पतंगें मतदान होने तक उड़ती रहेगीं । कभी किसी की पतंग कट जायेगी तो कभी किसी की । आखिर में किसकी पतंग सलामत रहती है यह 10 मार्च को पता चलेगा । नेताओं की आत्मायें भी चुनाव आते ही झकझोरने लगती हैं । वे उनसे बात करने लगती हैं । वे उनसे कहने लगती हैं कि तुम इस पार्टी में क्या कर रहे हो जाओ दूसरी पार्टी में शामिल हो जाओ । नेता अपनी आत्मा की आवाज सुनकर नया कुरता-पायजामा पहनकर दूसरी पार्टी का गमछा गले में और टोपी सिर पर रखकर दलबदल लेता है । वह पूरे आत्मविश्वास के साथ अपनी आत्मा की आवाज का ढिंढोरा पीटता है । अब वह उस पार्टी के बारे में भला बुरा कहने लगता है जिसमें वह था और उसका गुणगान करता था । चुनावी राज्यों में ‘‘दलबदल-महोत्सव’’ प्रारंभ हो चुका है । उत्तरप्रदेश इसमें अग्रणी भूमिका में है । ‘‘तू चल मैं आया’’ के भाव-भंगिमा के साथ नेता रोज दल बदल रहे हैं । वे दिल नहीं बदलत,े वे केवल दल बदलते हैं ताकि जब फिर से उन्हें वापिस अपने पूराने दल में आना हो तो उन्हें वहां अपना दिल सुरक्षित रख मिल जाए । राजनीति में दिल की कोई आवश्यकता नहीं होती । उसमें केवल दिमाग चाहिए जो चैकन्ना हो, जो किस की पतंग कटने वाली है को सूंघ ले । उत्तर प्रदेष में नेताओं की अदला-बदली चल रही है । कुछ नेता भाजपा से बाहर आकर दूसरे दल में समा रहे हैं तो दूसरे दलों के नेता भाजपा में आ रहे हैं । अभी तो समझ में नहीं आ रहा है कि किसका पलड़ा भारी हो रहा है । पांच राज्यों में विधानसभा के चुनाव है पर सबसे अधिक चर्चाओं में उत्तर प्रदेश है फिर पंजाब । पंजाब में प्रधानमंत्री जी की सुरक्षा में जो चूक हुई उसको लेकर राजनीति गर्माई हुई है, जब तक चुनाव नहीं हो जाते तब तक वह गरमाई ही रहेगी । पंजाब में भाजपा को अपना स्थान सुरक्षित करना है अभी तक तो वह अकालीदल के कांधे के सहारे आगे बढ़ रही थी पर अकालीदल का कांधा तो किसान आंदोलन की भेंट चढ़ गया । यदि किसानों की मांगों को पहले ही मान लिया जाता तो अकालीदल का कांधां बना रहता दूसरे पंजाब के जो बहुसंख्यक किसान हैं वे भी नाराज नहीं होते । भाजपा को किसान आन्दोलन से दोहरा नुकसान हुआ है इसे वह महसूस तो कर रही है पर व्यक्त नहीं कर पा रही है । ऐन चुनाव के पूर्व किसानों की मांगें मानकर कृषि सुधार कानूनों को वापिस लेकर वह इस नुकसान की भरपाई की उम्मीद कर रही है पर इसके नतीजे तो चुनावी नतीजों के बाद ही महसूस किए जा सकेगें । भाजपा को पंजाब में कैप्टन अमरेन्द्रसिंह ने जरूर अपना हल्का सा कांधो उन्हें दे दिया है । कैप्टन अमरेन्द्र सिंह खुद इस समय अपनी जमीन तलाश रहे हैं । वे कांग्रेस छोड़ देगें इसकी उम्मीद उन्हें कभी नहीं रही होगी इसलिए वे इन परिस्थितियों के लिए तैयार नहीं थे । पंजाब में यह तो माना जाता रहा है कि वहां कैप्टन अमरेन्द्र सिंह के मायने ही कांग्रेस है पर उसकी असल परीक्षा तो अब होगी जब वे कांग्रेस से अलग होकर कांग्रेस के खिलाफ ही प्रचार करेगंें पर वे बोलेगें क्या ? जो बोलेगंें वह उनके खिलाफ ही जायेगा क्योंकि इतने वर्षों तक तो वे ही वहां के कांग्रेसी मुख्यमंत्री रहे, यदि सब सही नहीं हुआ तो उनकी गलती है और सब सही हुआ तो कांग्रेस को इसका श्रेय जाएगा । उनके लिए वाकई कठिनाई है । ऐसी ही कठिनाई भाजपा के लिए भी है वह अमरेन्द्र सिंह के साथ है तो जाहिर है कि वह पंजाब में कांग्रेस ने कुछ नहीं किया का राग नहीं अलाप सकती, फिर वह भी क्या बोलकर वोट मागेंगी यह देखना दिलचस्प होगा । कांग्रेस के लिए ‘‘आप’’ पार्टी सबसे बड़ी प्रतिद्वन्दी बनकर उभर रही है । आप पार्टी भी पंजाब पर ही पूरा फोकस किए हुए है उसे लग रहा है कि यदि वह मेहनत करेगी तो दिल्ली के बाद पंजाब में भी सत्तारूढ हो सकती है । वह मेहनत कर भी रही है । अरविन्द केजरीवाल दिल्ली से पंजाब के लिए अपडाउन कर रहे हैं । उन्होने अपनी पतंग को देशी मंजे से चमका रखा है । यह अलग बात है कि चंडीगढ़ नगरनिगम में वह पर्याप्त संख्याबल होने के बाद भी अपना महापौर नहीं बिठा पाई । भाजपा ऐसी तिकडमों में माहिर है । वह शून्य में भी सत्ता पर काबिज हो जाने का महारथ रखती है । कई राज्य इसके उदाहरण हैं । केजरीवाल अभी अनुभवी नहीं हुए हेंै, जिस दिन वे अनुभवी हो जायेगें वे भी हवा से काजू पैदा करने लगेगें । भाजपा के लिए प्रधानमंत्री की सुरक्षा में हुई चूक का मामला करिष्मा कर देने की उम्मीद लेकर आया है । वैसे तो यह है भी गंभीर मामला । राजनीतिक प्रतिद्वन्दता के बाबजूद भी कभी ऐसी घटना कहीं भी घटित नहीं हुई है । ऐसा होना भी नहीं चाहिए । सुप्रीम कोर्ट ने एक कमेटी बना दी है जो यह बतायेगी कि आखिर चूक कैसे हुई । बहरहाल पंजाब की राजनीति अभी इसके ही इर्द-गिर्द घूम रही है और चुनाव में भी यह गूंजती रहेगी । उत्तरप्रदेश में स्थितियां अलग हैं । यहां जो पतंगें उड़ रही हैं वे कई रंगों में रंगी हुईं हैं । वहां कई पतंगों को काट कर ही अपनी पतंग को बचाया जा सकता है । कांग्रेस के पास खोने के लिए कुछ नहीं है, इसलिए वह निश्चिंत भाव से अपनी पतंग उड़ा रही है । उसे अपनी पतंग के कट जाने का भय नहीं है । नीली पतंग भी अभी चमक पैदा नहीं कर पा रही है । नीली पतंग शांत है पर लाल पतंग, गेरूआ पतंग को कड़ी टक्कर दे रही है । सारा भय लाल पतंग और लाल टोपी का ही है । नेताओं की अदला-बदली भी इन्हीं दो पार्टियों में सबसे अधिक हो रही है । नारायण प्रसाद जैसे बड़े नेता भाजपा को छोड़कर चले गए । उन्होने पांच सालों में सत्ता का पूरा सुख भोगा अब वे सुख को दूसरे दलों में तलाशेंगें । लालटोपी में सुख को खोजने निकल पड़े हैं । उनके साथ करीब एक दर्जन नेता भी हैं । वे अपनी इस सेना के साथ भाजपा की जड़ों को हिलायेगें । राजनीति में ऐसा ही होता है । खुद मजबूत करो और खुद ही मठा डालो । उत्तराख्ंाड भले ही उत्तरप्रदेश से अलग होकर राज्य बना हो पर वहां की परिस्थितियां उत्तर प्रदेश से अलग हैं । कांग्रेस मजबूत है और भाजपा एक साल में तीन मुख्यमंत्री बदलकर अपनी पतंग को हवा में लहरा रही है । यहां के कुछ नेताओं की आत्मा दूसरे दल में जाने को प्रेरित कर रही है पर विकल्प सीमति हें । ‘‘इस घर या उस घर’’ के बीच में फंसे हैं । जो पिछली बार अपना घर बदल चुके हैं उन्हें अब अपना पुराना घर अच्छा लगने लगा है वे अपने घर वापिस आ रहे हैं और राहत की सांस ले रहे हैं हो सकता है अगली बार वे फिर घर बदल लें । उत्तराखंड का चुनाव उतना रंग नहीं जमा पा रहा है । सारा कुछ तो उत्तरपद्रेश और पंजाब में ही दांव पर लगा है । मणिपुर जैसे राज्यों का चुनाव तो शांति से गुजर जाएगा । चुनाव के बीच में कोराना भी विघ्न डालने आ चुका है । एक बार फिर से लाखों मरीज रोज सामने आने लगे हैं । कोराना ने आम आदमी के जीवन को संकट में डाल रखा है । वह जरा सा मुस्कुरान की कोशिश करता है कि कोराना फिर से उसकी मुस्कुराहट पर ताला डाल देता है । विगत दो सालों से इस महामारी को झेल रहा आम व्यक्ति असहाय हो चुका है । वह घर में कैद होकर नहीं रह सकता, उसे अपने रोजगार पर तो जाना ही होगा । शुक्र है कि देश में वैक्सीन का डोज युद्ध स्तर पर लगा दिया गया है और अधिकांश व्यक्ति इसे लगवा चुके हैं । उनके लिए कोरोना की तीसरी लहर ज्यादा नुकसान नहीं कर रही है । बूस्टर डोज भी लगने लगे हैें । आम व्यक्तियों को अपनी जागरूकता का परिचय देकर वैक्सीन लगवा ही लेना चाहिए । सभी को उम्मीद है कि कोराना की यह तीसरी लहर ज्यादा खतरनाक साबित नहीं होगी ।