करता है जिसकी खातिर दिन-रात पिता मेहनत।
ढोता सिर पर बोझा, देता है मिटा सेहत।
आदर्श ,संस्कार ,व्यवहार सिखाता।
सच्चाई की हमेशा ही राह दिखाता।
तुम समय के साथ बदल जाओगे कभी,
लेकिन कभी पिता की बदलती नहीं फितरत,,,,,,,
जन्म से ही पाल पोश, जवान कर दिया।
शिक्षा हुनर देकर गुणवान कर दिया।
पूछा नहीं कहां से भोजन मिला हमें,
मुस्का के परिवार की चुरा लेता है जहमत,,,,,,,,,,,
जो कुछ भी हैं हम आज बस पिता की बदौलत।
है पिता जो पास तो उनके पास बड़ी दौलत।
पूछो जरा तो उनसे जिनके पिता नहीं,
क्या खेल खेलती है उनके साथ ये कुदरत,,,,,,,,,
आंखों से आंसू उनकी कभी आने ना देना।
उम्मीदों पर पानी कभी फिरने न देना।
उसने गरीबी में भी तेरे पूरे किये अरमां,
फिर क्यों चुरा के नजरें लुटवा रहे असमत,,,,,,,,,,,,
बढ़ाकर पिता से कोई भी भगवान नहीं है।
हृदय विशाल इतना कि आसमान नहीं है।
तेरी बुराइयों पर बनता है आवरण,
मधुकर के आशियां में बरसा रहा रहमत,,,,,,,,,, रचनाकार✍ रामगोपाल श्रीवास मधुकर