हम सभी व्यक्तिगत अनुभव तथा समाचार संचार माध्यमों के द्वारा नित्यप्रति कोरोना महारोग के बढ़ते प्रकोप , भयावहता तथा घातकता से परिचित है. इसकी विस्तृत विवेचना की आवश्यकता नहीं है. देश का विशाल भूखण्ड इस महदापदा से ग्रस्त है. जीवन का प्रत्येक क्षेत्र तथा क्रिया कलाप अस्त व्यस्त तथा बाधित हैं. इस अभूतपूर्व विकराल संकट ने मानव जीवन के अस्तित्व पर ही प्रश्न.चिह्न लगा रखा है. कुछ सबल इच्छा शक्ति युक्त व्यक्तियों के अतिरिक्त सभी त्रस्त तथा भयाक्रांत हैं. मेरे विचार से इस मारक संसर्गज रोग का मुख्य कारण देश का बढ़ता जनसंख्या घनत्व है क्योंकि कोरोना संक्रमण जनाकीर्ण तथा जन संकुल महानगरीय क्षेत्रों में तीव्रता से अपने पैर पसार रहा है. हम देश का भूक्षेत्र तो बढ़ा नहीं सकते ,अतः विकल्प के रूप में बहुखण्डीय गगनचुम्बी भवनों का निर्माण कर हम बढ़ती जनसंख्या का समायोजन कर रहे हैं. इस प्रकार केआवासीय सदन तथा उपनिवेश बनाकर जनसंकीर्णता बढ़ा रहे हैं जो कि कोरोना रोग के प्रसार का मूल कारण है.
मेरे विचार से जन समूहन तथा भीड़ एकत्र होने पर नियन्त्रण करके कराल कोरोना व्याधि पर काफ़ी सीमा तक विजय पायी जा सकती है, पर यह हो कैसे, प्रश्न तो यह है. देश में मौलिक चिन्तकों धीमानों, समस्या निवारण प्रवीणों तथा संकट मोचकों की कमी नहीं है. देश हितैषियों को राजनीतिक संकीर्ण विचारधाराओं तथा स्वार्थो से ऊपर उठ कर इस पर सामूहिक चिन्तन करके जनसंख्या नियन्त्रण के सुझाव प्रस्तुत करना चाहिये तथा प्रशासन को इन सुझावों का सख्ती तथा निष्ठा के साथ क्रियान्वयन करना चाहिए.
एक सरलतम उपाय तो यह है कि बिना जाति, वर्ग, धर्म , सम्प्रदाय तथा क्षेत्र के भेदभाव के अखिल देश में एक सन्तान का सिद्धान्त लागू किया जाना चाहिए. नियम उल्लंघन करने वालों के लिए कठोर दण्ड तथा उनको मूलभूत नागरिक सुविधाओं से वंचित करने का प्रावधान किया जाना चाहिए.आपत्काल में आपद्धर्म का सिद्धान्त अपनाया जाना चाहिए.
हम भारतवासी उत्सवप्रिय तथा सामूहिक आनन्दप्रदायक क्रिया कलापों में भाग लेने वाले लोग हैं.विभिन्न धार्मिक पर्व,तीर्थ यात्रायें तथा अनुष्ठान हम भारतीयों के दैनन्दिन जीवन के अविभाज्य अंग रहे हैं. संगीत, ललित कलाएँ , विभिन्न शैलियों के नृत्य तथा लोक गीत तथा नाना प्रकार के साहित्यिक आयोजन आदि हमारे समृद्ध सांस्कृतिक जीवन को परिभाषित करते रहे हैं. इनके बिना जीवन सूने अरण्य की तरह है पर क्या किया जाए. कराल कोरोना के कवल होने से बचने लिए इन पर पूर्ण प्रतिबन्ध लगाने का हमें अप्रिय निर्णय लेना ही होगा. इसी प्रकार हमारे यहाँ कई सामाजिक अनुष्ठान जैसे पाणिग्रहण संस्कार, विवाह वर्षगांठ, जन्मोत्सव तथा अभिनन्दन.समारोह तथा होली,दशहरा,दीपावली, वैशाखी तथा ईद आदि पर्व होते हैं जिन्हें लोग सोल्लास तथा सास्था मनाते हैं. ये सब जीवन में नवीन उत्साह का संचार करते हैं. निराशा के तमस में आशा के दीप जलाते हैं. इन सब आयोजनों में लोग एक साथ एकत्र होकर सह आनन्द लेते हैं.अब हमें करोना से अपनीप्रतिरक्षा करनी है तो हमें इनसे दूर रहना होगा या फिर अपरिहार्य स्थिति मेंं सीमित लोगों की उपस्थति में इनका आयोजन करना होगा. अन्त्येष्ठि में भी भाग लेने वाले शोकाकुलों की संख्या कम से कम रखनी होगी.
अब कुछ ऐसे क्षेत्र ह़ै जहाँ लोगों के समूहन को नियन्त्रित करना कठिन है जैसे बाजार, क्रय-विक्रय केन्द्र,चिकित्सालय, शिक्षालय ,प्रशासकीय कार्यालय, जनप्रतिनिधि सदन आदि. यहाँ लोगों की संख्या को नियन्त्रित करना प्रयोगतः असम्भव प्रतीत होता है. इन स्थलों में प्रभावी क्रियाकलाप को अबाधित रखते हुए सेवा की गुणवत्ता बनाए रखने की महती.आवश्यकता है. सभी को मिल कर सोचना है कि कैसे इन संस्थानों के कार्य सुचारु ढङ्ग से संचालित होते रहे.हम सभी देशवासियों का गुरु दायित्व है कि हम अपने स्तर पर प्रशासन के सम्मुख ठोस, रचनात्मक तथा क्रियान्वयन योग्य सुझाव प्रस्तुत करें तथा प्रशासन जनता के परामर्श तथा सुझावों पर ध्यान दे. इलेक्ट्रानिक उपकरण तथा डिजिटल टेक्नालॉजी इस दिशा में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं. इसमें दक्ष,प्रवीण लोगों को अपनी प्रतिभा का प्रयोग देश सेवा मे करके सच्चा पुण्य संचय करना चाहिए.
राज नारायण गुप्त सेवा निवृत्त गणित अध्यापक कालिन्दी कूल, कालपी जिला-जालौन (उ०प्र०)