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राष्ट्रीयता के स्तम्भ है पण्डित दीनदयाल उपाध्याय !

जातिवाद से ऊपर उठकर पण्डित दीनदयाल उपाध्याय जी ने अंत्योदय उत्थान का जो प्रयास प्रारम्भ किया आज वो सबके लिए अनुकरणीय है । उत्तर प्रदेश में जहां एक तरफ जातिवाद चरम पर है वहीं दूसरी तरफ पढ़े लिखे वर्ग का प्रतिनिधित्व भी बढ़ा है किन्तु दुखद है कि आज भी कुछ लोग जातिवाद के नाम पर कम पढ़े लिखे लोगो को बरगलाकर अपनी राजनीति चमका रहें । खासकर यादव समाज के लोग इससे अधिक पीड़ित है । अभी एक लोकल छुटभैए नेता जो केवल चमचागिरी करते है फेसबुक पर उन यादव महोदय ने जारी हुए आई ए एस परिणाम में पच्चीस यादव भाइयों के अधिकारी बनने पर लिखा कि हमारे यादव भाइयों ने सलेक्ट होकर  सवर्णों के मुंह बंद कर दिए उन्हे मैंने जवाब दिया कि हम पंडित दीनदयाल उपाध्याय के अन्त्योदय उत्थान के समर्थक है जब कोई पढ़ा लिखा समाज का प्रतिनिधित्व करने योग्य बनता है तो वह किसी विशेष जाति का ना होकर केवल विकसित भारत का भविष्य होता है । महोदय चिढ़ गए। 

संगठन की शक्ति – “एकता का दुर्ग इतना सुरक्षित होता है कि इसके भीतर रहने वाले कभी भी दुःखी नहीं होते है ।” ये विचार था पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी का ।  एकात्म मानववाद और अंत्योदय दर्शन के प्रणेता पंडित दीनदयाल उपाध्याय की आज जयंती है, “हमारी राष्ट्रीयता का आधार भारत माता है केवल माता शब्द हटा दीजिए, तो भारत जमीन का टुकड़ा मात्र बनकर रह जाएगा” यह विचार हैं पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी के थे। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संगठनकर्ता और भारतीय जनसंघ के अध्यक्ष रहे पंडित दीनदयाल उपाध्याय का जन्म 105 साल पहले मथुरा में हुआ था, चंद्रभान नांगला नामक गांव के निवासी भगवती प्रसाद उपाध्याय रेलवे में कर्मचारी थे, वह अपनी गर्भवती पत्नी रामप्यारी के साथ ट्रेन से घर लौट रहे थे, जब स्टेशन पर ही विषम परिस्थितियों के बीच 25 सितंबर 1916 को दीनदयाल उपाध्याय जी का जन्म हुआ, उनका बचपन बहुत ही कष्टप्रद परिस्थितियों में बीता 3 साल की आयु में ही पिता की मौत हो गई इसके बाद मां का भी साथ केवल 7 वर्ष की अवस्था में छूट गया इसके बाद पालन-पोषण और पढ़ाई लिखाई ननिहाल में रहकर हुई, आगरा और प्रयागराज से शिक्षा हासिल करने के बाद उन्होंने नौकरी नहीं की और वह राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रचारक बन गए। राज्यमंत्री गिरीश चन्द्र यादव ने बताया कि देश की आजादी के बाद उन्होंने श्यामा प्रसाद मुखर्जी के साथ मिलकर भारतीय जनसंघ की नींव रखी 11 फरवरी 1968 की रात रेलवे यात्रा के दौरान मुगलसराय रेलवे जंक्शन के पास रहस्यमयी हालत में उनकी लाश मिली थी आज तक उनकी मौत को लेकर खुलासा नहीं हो सका है, उन्होंने कहा कि वह बचपन से ही मेधावी थे दीनदयाल जी परीक्षा में हमेशा प्रथम स्‍थान पर आते थे उन्‍हेंने मैट्रिक और इण्टरमीडिएट-दोनों ही परीक्षाओं में गोल्ड मैडल प्राप्‍त किया था इन परीक्षाआ को पास करने के बाद वे आगे की पढाई करने के लिए  कानपुर में प्रवेश लिया वहॉ उनकी मुलाकात श्री सुन्दरसिंह भण्डारी, बलवंत महासिंघे जैसे कई लोगों से हुआ इन लोंगों से मुलाकात होने के बाद दीनदयाल जी राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के कार्यक्रमों में रुचि लेने लगे। पूर्व विधायक सुरेन्द्र सिंह ने कहा कि भारतीय जनसंघ की स्थापना डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी द्वारा वर्ष 1951 में किये और दीनदयाल उपाध्याय को प्रथम महासचिव नियुक्त किये थे, वे लगातार  दिसंबर 1967 तक जनसंघ के महासचिव बने रहे उनकी कार्यक्षमता, खुफिया गतिधियों और परिपूर्णता के गुणों से प्रभावित होकर डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी उनके लिए गर्व से सम्मानपूर्वक कहते थे कि- “यदि मेरे पास दो दीनदयाल हों, तो मैं भारत का राजनीतिक चेहरा बदल सकता हूं”, परंतु अचानक वर्ष 1953 में डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी के असमय निधन से पूरे संगठन की जिम्मेदारी दीनदयाल उपाध्याय के युवा कंधों पर आ गयी इस प्रकार उन्होंने लगभग 15 वर्षों तक महासचिव के रूप में जनसंघ की सेवा की भारतीय जनसंघ के 14वें वार्षिक अधिवेशन में दीनदयाल उपाध्याय को दिसंबर 1967 में कालीकट में जनसंघ का अध्यक्ष निर्वाचित किया गया। आप ने कभी अंगीठी में जलते हुए कोयले को देखा है ? सभी कोयले एक साथ मिलकर कितने तेजस्वी हो जाते है। पर आपने कभी सोचा है जो कोयला अंगीठी में इतना तेजस्वी है अगर उसमें से किसी एक कोयले को अंगीठी से बाहर निकाल कर रख दें तो उस कोयले का क्या हश्र होगा ? जी हां वह अकेला पड़ने पर राख हो जाएगा। इंसान के साथ भी कुछ ऐसा ही होता है । जब तक व्यक्ति समुदाय या संगठन में रहता है तभी तक उसका अस्तित्व है संगठन से बाहर होने पर व्यक्ति का पतन निश्चित है ।संगठन से बड़ी कोई शक्ति नहीं होती है । “ संगठन की शक्ति से ही देश का विकास होता है ।” क्योंकि व्यक्ति से परिवार, परिवार से समुदाय और समुदाय से देश व समाज का निर्माण होता है। इसलिए संगठन के अभाव में व्यक्ति ही नहीं बल्कि देश व समाज भी सुचारू रूप से नहीं चल सकता है । अगर संगठन का देश के नागरिक में अभाव हो तो उस देश को परतंत्र होने में वक्त नहीं लगता और यह इसलिए भी जरुरी है क्योंकि किसी काम को करने के लिए जितने लोग जुटते है उस काम को करने के लिए उतनी ही ताकत बढ़ जाती है । आज इसी संगठन को भेद – भाव, भ्रष्टाचार, आतकंवाद आदि के खिलाफ लड़कर और भी मजबूत बनाना है क्योंकि संगठन और जातीय एकता किसी भी देश के लिए सुरक्षा का काम करती है । अगर हम सभी संगठित होकर रहें तो कोई भी बाहरी इस संगठन को भेद नहीं सकता है । जब तक हम संगठित है तब तक कोई हम सब का कुछ नहीं बिगाड़ सकता है । जहाँ संगठन की शक्ति होती है वहां सुख और शांति बना रहता है । एकात्म मानववाद के प्रणेता पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी को नमन ।

            — पंकज कुमार मिश्रा एडिटोरियल कॉलमिस्ट शिक्षक एवं पत्रकार केराकत जौनपुर ।

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