सेवानिवृत्ति या रिटायरमेंट
जीवन का एक अनमोल क्षण होता है।सर्विस के
शुरू में ही रिटायरमेंट की
तिथि तो तय ही होती है।
पर हम पचास नहीं बल्कि
पचपन वर्ष की उम्र के बाद ही थोड़े से सावधान होते हैं कि कैसे समय बिताएंगे,कैसे रहेंगे,क्या करेंगे। कुछ तो रिटायरमेंट के बाद ही सजग होते हैं।चाहे कुछ भी हो,कैसी भी परिस्थिति हो,रिटायर्ड को
अपने पास एक पर्याप्त सुरक्षित निधि रखनी ही
चाहिए, जिसके ब्याज से वह सुखद जीवन जी सके।बहुत इमरजेंसी में सुरक्षित निधि ही सहारा होती है।पेंशन की राशि तो रोजमर्रा के खर्च में लग जाती है।निजी क्षेत्र
में तो पेंशन है ही नहीं, कुछ सरकारी उपक्रमों व प्राइवेट फैक्टरियों में पेंशन बहुत ही कम है। फण्ड व ग्रेच्यूटी ही सहारा होती है।भावुकता या आवेश में कोई भी निर्णय नहीं लेना चाहिए।
रोज़गार के सिलसिले में सन्तान अधिकतर परिवार सहित बाहर ही चली जाती हैं।एकाकी जीवन तो बुढ़ापे का पर्याय बन गया है। सन्तान साथ भी हो तो,आजकल पत्नी व उसके परिवार में वो इतने मशगूल होते हैं,स्वयं के माँ बाप तो उपेक्षित सा महसूस करते हैं।
सब से बड़ी बात सेवानिवृत्ति से पहले व बाद में तन को स्वस्थ और
निरोग रखना है, तभी आप लम्बे समय तक सक्रिय रह पाएंगे। जो शौक व अभिरुचियाँ तब
व्यस्त रूटीन के कारण नहीं कर पाये, उनको पूरा
करने का स्वर्णिम अवसर है।
सेवानिवृत्ति के बाद जीवनसाथी का आपस में
मधुर व्यवहार, सामंजस्य का होना,जीवन को सरल,आनंदमय व उज्ज्वल बना देता है।
एक बात तो यह आम ही है, दम्पति दोनों ही नौकरी पेशा हों,पति के सेवानिवृत्त होने पर पत्नी के कुछ साल बाकी होते हैं, तो पति को बैठे बिठाए हाउस हसबैंड की
नौकरी मिल जाती हैं और
कुछ प्रकृति से ऐसे ही होते हैं।ऐसे में पत्नी आराम व आनन्द का अनुभव तो करती ही है।
यदि पत्नी नौकरीपेशा नहीं है तो दोनों
का समय शुरू में बड़ा खुशनुमा गुजरता है,पर फिर उनके पूरा दिन घर रहने से बच्चे,बहुएँ,यहाँ तक कि पत्नी भी घुटन
महसूस करती हैं, ‘जाओ
कहीं बाहर घूम आओ,
शाम तक आ जाना’-यह
सुनने को मिलता है।ऐसे
पति एकाएक धार्मिक हो
जाते हैं, किसी मंदिर संस्था से जुड़ जाते हैं
पाठ पूजा में जुट जाते हैं,
तीर्थयात्रा भी कर लेते हैं।
सेवानिवृत्त होते ही कुछ पहले समाजसेवा में जुटते हैं, कई जगह पदाधिकारी व अध्यक्ष बन जाते हैं, फिर राजनीति में फंस कर जमा पूंजी भी गंवा बैठते हैं, कोई भाग्यशाली ही विजयी हो पाता है।
लेखन का शौक रखने वाले कुछ लोग सेवानिवृत्त होते ही एकाएक साहित्य सृजन के अखाड़े में कूद पड़ते हैं।धड़ाधड़ रचनायें जड़, थोड़ी वाहवाही पा कर प्रायोजित मंच व सोशल मीडिया पर स्वयं को परोस किसी राष्ट्रीय या अंतराष्ट्रीय कवि से कम नहीं समझते।
अधिकतर सेवानिवृत्त व्यक्ति स्वयं को पोते, दोहते की देखभाल ,
सब्ज़ी व घरेलू सामान की खरीदारी में खपा देते हैं।मेरा अपना मानना है,
यदि शरीर स्वस्थ हो,घर
की परिस्थिति अनुकूल हो
तो निश्चय ही कम से कम पांच-सात साल तो रोज़गार या व्यवसाय करना ही चाहिए।
सब से बड़ी बात स्वयं को
मस्त व्यस्त और स्वस्थ रख,इस जीवन को सुखद
व आनंदमय बनाते हुए हर हालात में व्यवस्थित
रहने की है।
पर एक परिस्थिति और भी विकट आती है, जब
जीवनसाथी में से एक चला जाता है तो बच्चों पर निर्भरता बहुधा अवसाद का कारण बन
जाती है, ऐसे में स्वयं का
मानसिक व शारीरिक रूप से ठीक रहना बहुत
जरूरी है।
हर हालत में,हर हालात में
स्वयं को यह एहसास कराना होगा–
” याद रहे,तुम बूढ़े नहीं हो,भूतपूर्व नौजवान हो।
स्वयं को हर हालात में
ढालना,तुम्हारी पहचान हो।।
सच में ये जीवन तो है,
सतरंगी फूलों की माला।
मस्त,व्यस्त रह सजाते रहो, नित नई मस्ती की
पाठशाला।।
-राजकुमार अरोड़ा’गाइड’ कवि,लेखक व स्वतंत्र पत्रकार