Latest Updates

शक्ति नहीं, शक्ति पुँज हैं हम

मनुष्य की शक्ति का एहसास स्वयं उसके सिवा और कौन कर सकता है?अपने अन्दर की ऊर्जा को तभी  जान  पायेंगे,जब  आप उमंग से भर कर कुछ नया करने की ठान लेंगे।विभिन्न वैज्ञानिकों ने बहुमूल्य खोजों से जहाँ जीवन को इतना आसान बना दिया उसके पीछे उनके अंतर्मन की शक्ति थी,जो एक शक्ति पुंज के रूप में उभरी और वो कर दिखाया जो कभी सबकी कल्पना से परे की बात थी।आज जल,थल,नभ, अंतरिक्ष पूरे ब्रह्मांड में मनुष्य ने अपना अधिपत्य सा जमा लिया है। यह सब तभी तो सम्भव हुआ जब उसने अपने अन्दर की उस शक्ति को पहचाना,जिसे केन्द्रबिन्दु में रख कर परमात्मा ने मनुष्य का निर्माण किया था।

शक्ति एक एहसास है, एक आभास है, अपने सम्पूर्ण होने के गर्व का,अधूरापन तो टूटन का ही प्रतीक है, उसको हर हाल में,पूरा करने के प्रयास में जुटे रहकर विजय पा कर ही दम लेना है। हम में से कोई भी अपनी आंतरिक शक्ति के बल पर दिखने  में अशक्त होते हुए भी बड़ी चुनौती को पार कर एक अलग ही नया इतिहास रच सकता है। अधिक दूर क्योँ जायें,हमें तो हमारे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने इसी आंतरिक  शक्ति के बल पर ब्रिटिश साम्राज्य से  टक्कर ले भारतमाता को स्वाधीनता की बेड़ियों से मुक्त कराया।

हमें स्वयं को सदा यही विश्वास दिलाना है कि हमें समस्याओं के सही समाधान हेतू व आजीवन सुखी रह कर,अद्भुत,अभूतपूर्व,आसाधारण जिन्दगी जीने के लिये बनाया गया है।अपने विचारों व भावनाओं के द्वारा ही हम अपने आसपास सकारात्मकता या नकारात्मकता का वातावरण बना देते हैं।

केवल एक शब्द  ही हमें जीवन के सारे बोझ व दर्द से मुक्ति दिला देता है,वह शब्द है-प्रेम,हमारे मन मे जो भी बनने, करने या पाने की प्रबल इच्छा है, वह प्रेम की वजह से ही उतपन्न होती है।यह प्रेम व्यक्तिगत या आपसी भी हो सकता है,देश या धर्म के प्रति भी।यही प्रेम ही तो शक्ति के रूप में स्फुटित होता है। यही  कुछ कर गुजरने के हमारे इरादे को मज़बूत कर हर हाल में सफलता की ओर अग्रसर करता है-

“बांधे जाते इंसान कभी,तूफान न बांधे जाते हैं। काया जरूर बांधी जाती, बांधे न इरादे जाते हैं।।

यही इरादा ही मंजिल तक ही पहुंचा देता है।कामयाबी की नई इबारत लिख देता है।

हमें तो बस यही करना है,जटिलता में सरलता खोजें,विवाद में सद्भाव खोजें,अवसर तो वास्तव में मुश्किलों के बीच में ही छिपा होता है।यदि हम अनावश्यक छोटी छोटी  बातों को ज्यादा महत्व देंगें तो न अच्छा महसूस कर पाएंगे,न ही कुछ नया रच पायेंगे।कोई भी चीज़ अच्छी या बुरी नहीं होती,सिर्फ हमारी सोच ही उसे वैसा बना देती है।हमें तो अपनी सोच  में परिवर्तन कर स्वयं को शक्ति का प्रतीक बन यह एहसास कराना है–

“हम उफनती  नदो हैं, हमको अपना  कमाल मालूम है।

जिधर भी चल देंगे,रस्ता अपने आप बन जायेगा।जायेगा।”

रूद्रावतार संकटमोचक हनुमानजी को विशाल शक्ति पुंज होते हुए भी,हज़ार योजन का समुन्द्र लांघने के समय नल नील जामवंत आदि को उनकी महान शक्तियों का,जो किसी श्राप के कारण उनको विस्मृत थीं, याद दिलानी पड़ी थी।आज हम भारतीयों को फिर से अपने प्राचीन गौरव को अक्षुण्ण बनाये रखने के लिये अक्षुण्ण बनाये रखने के लिये अपनी शक्तियों का स्मरण करना होगा ,ऐसे हालात में जब पूरा विश्व एक महामारी के संकट से जूझ रहा है।

विश्व में अब पौने पांच करोड़ से ऊपर संक्रमित हैं,12लाख से अधिक  काल के गाल में समा चुके हैं।चीन से उपजी इस महामारी के आगे अमेरिका,रूस,स्पेन,जापान,ब्रिटेन,फ्रांस,जर्मनी,ब्राज़ील आदि महाशक्तियों ने  इस के आगे घुटने टेक दिये हैं। भारत में भी यह संख्या संक्रमितों की संख्या 83 लाख को भी पार कर गई है। मरने वालों की संख्या भी सवा लाख के लगभग है। राहत की बात यही है कि मृत्यु दर 11 प्रतिशत केआसपास ही है। विदेशों में भी कुछ समय संक्रमितों की संख्या में कमी आने के बाद फिर बढ़ रही है। ऐसा ही अब भारत में भी हो रहा है। शीतकाल में इसमें और वृद्धि की आशंका जताई जा रही है।

कोई निदान न मिलने के कारण पहले  सब अपने अपने घरों में पूरी तरह कैद थे,अब अनलॉक की स्थिति में व्यापारिक गतिविधियां,आवागमन,कार्यस्थल आदि खुलने से राहत मिली है तो थोड़ी सी लापरवाही से आफ़त बढ़ने की भी पूरी उम्मीद है।कुछ असुर प्रवर्ति के लोगों की नासमझी के कारण हालात भयावह होते जा रहे हैं,प्रशासन पूरी ताकत व ऊर्जा के साथ सामना करने में जुटा है,अतीत में,भारत ने विश्वगुरू बन कर पहले भी गौरव अर्जित किया है,अब भी कुछ वैसा ही करना होगा!

अब सभी को एक शक्ति का स्त्रोत बन कर जूझते हुए विजय पानी है,अपनी शक्तियों का फिर नये सिरे से स्मरण कर,शक्तिपुंज बन,नया इतिहास ही रच देना है,हम में वो शक्ति है,हम में वो शक्ति है,हम ऐसा कर सकते हैं,कर के रहेंगे,करना ही है।

“कौन कहता है,आसमां में छेद नहीं हो सकता, एक  पत्थर  तो तबीयत से  उछालो  यारो!”

तबीयत से उछाला गया यह पत्थर एक नए युग का सूत्रपात करेगा।उठो,जागो,इस बार युद्ध क्षेत्र में नहीं, कर्तव्य निर्वाह के लिये बहुत जरूरी होने के अतिरिक्त घर में ही डटे रह कर,आने वाली पीढ़ियों के लिये एक नया विलक्षण और अनुपम इतिहास रच दो!

-राजकुमार अरोड़ा’गाइड’

कवि,लेखक व स्वतंत्र पत्रकार

सेक्टर 2,बहादुरगढ़(हरि०)

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *