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जनगण मन अधिनायक जय है…. !

— कुशलेन्द्र श्रीवास्तव

सूरज की उदित होती किरणों के साथ लहर लहर लहरा रहा है हमारा तिरंगा……..हम हुए थे स्वतंत्र 15 अगस्त 1947 को इसे याद दिलाने के लिए । वैसे भी हम भारतवासी कहां विस्मृत कर पाते हैं आजादी की लड़ाई को और अंग्रेजों की तानाषाही को । हर पल याद रहता है हमें हमारे आजादी के पल और शान से लहराते तिरंगे के गौरव का मान । हमारे अदंर समाहित है राष्ट्र भावना जिसे नहीं है आवष्यकता प्रदर्षित करने की । हमें सदैव याद रहती हैं इस तिरंगे के लिए बलिदान हुए हमारे स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों का बलिदान । हमने तो तब गाए देषभक्ति के गीत जब गीत की हर पंक्ति पर मारे जाते थे कोड़े और बरसाई जातीं थी लाठियां । हम भारतवासी डरे कहां…., वे झुके भी नहीं…..वे अपना सीना तानकर खड़े रहे अंग्रेजों की क्रूरता के सामने । उनकी आंखों में सपने थे स्वतंत्र भारत के, उनकी आंखों के सामने झांकी थी भारत माता की, उनकी आंखों के सामने लहराता था तिरंगा । माता अपने बच्चों को सहर्ष भेज देती थी क्रूरता के खिलाफ अपना आक्रोष व्यक्त करने, बहिने अपने भाईयों की कलाईयों पर राखी बांध कर वचन लेती थीं देष को गुलामी की जकड़ से बाहर निकालने की, सुहागनें माथे पर रोली का तिलक लगाकर विदा करती थीं अपने पतियों को ताकि वे अंग्रेजों के अत्याचार के खिलाफ बुलंद कर सकें अपनी आवाज । हजारों-हजारों युवाओं की टोली सर पर कफन बांध कर निकल पड़ती थी बगैर डरे, बगैर भय खाए । कितने अत्याचार सहे, कितनों ने गोलियां अपनी छाती पर झेली हैं, कितनी कराहों की आवाजों से गूंजा है इस धरा का आकाष……पर कभी सिर नहीं, पर कभी झंडा नहीं झुका….पर झुकना ही पड़ा अंग्रेजी शासकों को, झुकना ही पड़ा अतातियों को  और वह दिन भी आया जब अंग्रेजों ने अलविदा कह दिया भारत की भूमि को, सौंप दी कमान भारत के नागरिकों को…..तब शान से फहराया तिरंगा अर्धरात्रि को पं. जवाहरलाल नेहरू ने । 15 अगस्त की सुबह लाल किले की प्राचीर से उदित होते सूरज की रष्मियों के सुनहरे आवरण में अपने दर्प को समेट कर शान से लहराया तिरंगा । हमने ली सुकून की सांस और बुनने प्रारंभ कर दिए अपने सपने । हमारी मंजिल अपना पुराना वैभव पाने की थी, हमारी मंजिल विष्व गुरू बनने की थी, हमारी मंजिल हर भारतवासी के उन्नत और विकसित भारत की तस्वीर बनाने की थी । हमने अपने कदम आगे भी बढ़ाए पर, कहीं चूक हो गई हमसे । हम शून्य पर खड़े थे हमारे सामने दो जून की रोटी का संकट था हमारे खेत खलिहान खाली पड़े थे । हमारे पास खेती करने के उपकरण नहीं थे, हमारे पास खेतों को सिचित करने के साधन नहीं थे, हमारे पास टैक्नालाजी नहीं थी । सब कुछ तो बिखरा सा था हमारे चारों ओर जिसे समेटना था, जिसे एकत्रित करना था और साथ ही मनोबल भी बढ़ाना था देषवासियों का ताकि वे अब निर्भीक होकर ओग बढ़ सकें, वे भयरहित वातावरण में अपने आपको आगे बढ़ा सकें । भाखड़ानांगल बांध ने रास्ते खोले सिंचाई के, हरित क्रांति ने मार्ग दिखाया कृषि का । हमारा देष तो कृषि प्रधान देष ही है न तो हमें तो फोकस करना था कृषि पर, साधन जटाने थे खेतिहर लोगों के लिए । कृषि के साथ ही जुड़ा है पषुधन तो दुग्ध क्रांति का आव्हान हुआ और हम एक साथ दोनों पथ पर आगे बढ़ते चले गए । लालबहादुर शास्त्री जी ने कृषि के विकास के मार्ग खोले और हरित क्रांति ने फसलों की पैदावार बढ़ा दी । हमें गेहूं जैसा अनाज दूसरे देषों से बुलाने की आवष्यकता नहीं रही । उन्नत होने लगी हमारी खेती और भरने लगे खलिहान अनाजों के भंडार से । षिक्षा पर भी जोर दिया गया और प्राथमिक षिक्षा को अनिवार्य षिक्षा बनाकर बच्चों को स्कूल जाने के लिए प्रेरित किया गया । साक्षरता का स्तर बढ़ा तो टैक्नालाजी भी बढ़ी । हम चांद पर पहुंचे, हम सूरज के नजदीक अपने यान को भेजने में सफल रहे ।  पर हम नियंत्रण नहीं कर पाए जनसंख्या को । हमारा विकास बढ़ती जनसंख्या के दबे कराहने लगा । विकास बढ़ा पर हर बार कम होता दिखाई दिया । कुछ राजनीति ने भी हमारे विकास को कमतर किया या ऐसे कहें कि विकास को चहुंदिषि न कर उसे बांट दिया । हमारा देष तो बहुजातियों से, बहु भाषाओं से बहुरंगों से सराबोर रहा है, हमारी बालियां अलग-अलग रहीं है, हमारी संस्कृति विस्तृत रही है, हमार परंपराऐं विविध रही है हम अनेकता में एकता के सूत्र को अपनाते चले पर कभी राजनीति ने इस पर अल्प विराम लगाया तो कभी अतिउत्साह ने दूरियां बढ़ाई । राजनीति समाजसेवा से अलग होकर वोटों तक आकर थम गया । हमारी सारी सोच वोटों के गणित पर आकर टिक गई, हमारी सारी योजनायें वोटों के गणित में उलझने लगीं । हमारे जनप्रतिनिधि नैतिकता के मूल्यों के षिखर पर खड़े नहीं दिख पा रहे हैं । सत्ता को कभी देष के विकास की ध्ुरी मानी जाती थी पर अब ऐसा नहीं रहा ऐसा महसूस होने लगा है । हम आगे तो बढ़े, वर्तमान सत्ताकेन्द्र ने देष को विष्व पटल की ऊंचाईयों पर खड़ा तो किया, वसुधैव कुटंबंक की परिभाषा को प्रदर्षित करने की कोषिष तो की पर शायद सफलता के लिए और मापदंड अपेक्षित थे । हमारे जीवनस्तर  ऊंचा तो उठा पर अपेक्षा और आगे जाने की थी । हम मंहगाई के गरल को विकास के नाम पर पीने लगे, हम सामाजिक सौहार्द के भावना से अलग दिखाई देने लगे, हम वर्तमान में जीकर अतीत की परछाई का सहारा लेने लगे । हमने दोष मढ़कर अपने असफलताओं को कम करने का प्रयास किया, हमने अपने दर्प में रहकर सर्वजन हिताय की भावनाओं को विकृत करने का प्रयास किया, हमने सर्वे भवन्तु सुखिनः के सूत्र को अपने हिसाब से उपयोग करना शुरू कर दिया । कहीं तो चूक हो गई हमसे । सभी हमारे हैं और सभी की उन्नति हमारी उन्नति है के भावों के धीमे पड़ते होते स्वरों की ध्वनि अब सुनाई देनी बंद हो गई है । कहीं तो चूक हुई है हमसे । चिन्तन तो करना पड़ेगा, मनन तो करना पड़ेगा और कोई तो रास्ता निकालना पड़ेगा । सत्ता आम भारतवासी के हितार्थ होती है, सत्ता आम व्यक्ति और प्रषासन के बीच कड़ी का काम करती है, सत्ता केवल चारपहिया वाहनों में बैठकर ‘‘जी सर’’ कहलवानें के लिए नहीं होती इस बात को समझना होगा । बढ़ती मंहगाई, बढ़ती बेरोजगारी, बढ़ती आपसी वैमनस्यता, बढ़ता आतंकवाद कुछ हल तो निकालना होगा हमें । देषभक्ति के गीत की तरह हमें अपने दायित्वों का भान करना होगा, लहराते तिरंगे की छत्रछाया में हमें अपने गौरवषाली इतिहास का स्मरण करना होगा । हम तो सिरमौर हें……हर भारतीय देषभक्त है, वह अपने वतन के लिए मर मिटने को तैयार है, हमारे सैनिक अपने परिवार से दूर रह, हर पल चौकन्ना रहकर सीमा के बार्डरों पर करते हैं निगरानी हमारी नसों में देष के लिए बहता है रक्त । हर साल पन्द्रह अगस्त को जब हम आजादी के गीत गाते हें, जब हम जनगणमन अधिनायक गाते हैं, हम अपने तिरंगे का सलामी देते हैं तब हमारा सीना और चौड़ा हो जाता है । हमारे पास हमारी आजादी के लिए दी गई कुर्बानियों का इतिहास है जिसे हम किसी धार्मिक भावों के साथ सुनाते हें, हमारे पास रोते-बिलखते, अत्याचार सहते हमारे पूर्वजों की दास्तां है जिसे हम विस्मृत नहीं होने देते । हमें गर्व है हमारी आजादी पर, हमें गर्व है हमारे तिरंगे पर, हमें गर्व है हमारी भारत माता की सौम्यता पर, हमें गर्व है हमारे भारतवासी होने पर । फिर पन्द्रह अगस्त, फिर घ्वज वंदना फिर उसके सामने झुकता हमारा सिर । तिरंगा तो जब तक धरा है तब तक ऐसे ही लहराता रहेगा और हर बार हम अपने भारतवासी होनेपर गर्व करते रहेगें ।

सभी को पन्द्रह अगस्त की बहुत बहुत शुभकामनाएं….

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