Latest Updates

राजनीतिक सफरनामा : मैया कर दो दुष्टों का संहार

कुशलेन्द्र श्रीवास्तव

नवरात्र तो आत्म जाग्रति का पर्व है । हर छैः माह बाद नवरात्रि पर हम माॅ की आराधना कर दुष्टों के संहार की प्रार्थना करते हैं । श्रद्धा, भक्ति से प्राप्त शक्ति हमें आगे बढ़ने की दिशा देती है । आज समूचे विश्व को ऐसी श्क्ति की आवश्यकता महसूस हो रही है । रूस और यूक्रेन के युद्ध ने भय पैदा कर रखा है । एक महिने से यु;द्ध चल रहा है और आम व्यक्ति टी.व्ही. के सामने बैठकर घट रही घटनाओं के उत्सुकता के साथ देख रहा है । विश्व में कहीं भी होने वाली हलचल का असर विश्व के हर व्यक्ति को महसूस होता ही है । तभी तो लगता है कि दुनिया बहुत बड़ी होने के बाबजूद भी बहुत छोटी है । हम भले ही रूस के नागरिकों को या यूके्रन के लोगों को नहीं जानते हों, नहीं पहचानते हों फिर भी उनके प्रति संवदेना के भाव तो हमारे दिलों में जन्म लेते ही है । एक अच्छा भला खूबसूरत कहा जाने वाला देश बमों के हमलों में तबाह हो रहा है । बड़ी-बड़ी इमारातों को ध्वस्त होते हुए हम टीवी में देख रहे हैं, रोते-बिलखते लोगों को देख रहे हैं और सही-गलत का चिन्तन कर रहे हैं । क्या ऐसा किया जाना उचित है या आवश्यक है, कई प्रश्न हमारे दिमागों में घूम रहे हैं । हमारे पास इनका कोई उत्तर नहीं है । हमारे पास अपने ही देश के अनेक प्रश्न है जिनका उत्तर भी हमारे पास नहीं है । डीजल-पट्रोल के दामों में प्रतिदिन वृद्धि होने लगी जो तो होना ही था । आम व्यक्ति इसके एि मानसिक रूप् से तैयार था भी पर आर्थिक रूप् से वह तैयार होने की स्थिति में नहीं है । कोरोना काल के लाकडाउन में उसकी अपनी अर्थ व्यवस्था चैपट हो चुकी है । आम आदमी की आर्थिक पूंजी थोड़ी सी ही होती है वह कितने दिनों तक चल सकती है । वह अपने परविार को दो जून की रोटी खिलाने का गणित तैयार करके रखे हुए है । गरीब वर्ग को तो सरकार से मुफ्त में कुछ राशन तो मिल रहा है पर बहुसख्ंयक मध्यवर्गीय परिवार असमंजस में है । उसके पास अपनी इज्जत बचाए रखने की चुनौती है । ऐसे में बढ़ती महंगाई उसके लिए सिरदर्द बन चुकी है । डीजल-पट्रोल के बढ़ते दामों से बाकी वस्तुओं के दामों में वृद्धि तो हो ही रही है फिर वह अपनी कम होती आमदनी के बीच कैसे पेट भर सकता है ? उसके दिमाग में अनेक प्रश्न हैं जिनके उत्तर उसके पास नहीं है । वह नवरात्रि की साधना में इस भीषण महंगाई से अपने आपको बचा लेने की प्रार्थना भी जोड़ चुका है ‘‘मैया इतनी शक्ति देना कि सुरसा सी बढ़ती महंगाई के बाबजूद भी अपने परविार को भूख से बचा सकें’’ । चुनाव निपट गए फिलहाल वैसे तो भारत मं चुनाव की निरंतर श्रृखला ही चलती रहती है । एक राज्य के चुनाव निपटते हैं तो दूसरे राज्य के चुनाव सिर पर आ जाते हैं । ढोल-मंजीरा लेकर नेता दूसरे चुनाव वाले राज्य में अपना प्रदर्शन करने लगते हैं । उनके मुंह में मुस्कान औार चेहरे पर दर्प दिखाई देने लगता है । वे अपनी शतरंजी चाल का नया मोहरा निकाल लेते हैं पर आम आदमी उदास चेहरा लिए समय के व्यतीत होते रहने की प्रतीक्षा करता है । पाचं राज्यों के चुनाव में जो जीता वी सिकंदर बनकर सत्ता पर काबिज हो गया और जो हारा वह अपना मुंह लटकाए अपने घरों में कैद हो गया । बड़े नेताओं को हार से उतना फर्क नहीं पड़ता जितना आम कार्यकर्ता को पड़ता है । वह जीती हुई पार्टी का दुश्मन नम्बर एक बन जाता है । वह टारगेट में आ जाता है ‘‘देख लूंगा तुम्हें’’ । वह पांच सालों तक भयभीत भी रहता है और दुश्मनी भी भागता रहता है । उत्तर प्रदेश में में तो बुलडोजर ऐसे दुश्मनों के घरों को पहचानकर स्वयं भी चल पड़ता है । राजनीतिक मतभेद अब दुश्मनी में बदल चुके हैं । उत्तरप्रदेश में योगी जी सत्ता में आ गए । बहुत विचार विमर्श के बाद उनका मंत्री मंडल भी बन गया जिनके पास अभी तक मंत्री की गाड़ी थी और ढेर सारे नौकर चाकर थे वे यकायक मंत्री पद से अगल होकर अपने छोटे से घर में सिमट कर रह गए । जिसकी कुर्सी जाती है उसके दर्द की तुलना किया जाना कठिन है । कोई और पार्टी होती तो ऐसे नेता विद्रोह कर देते पर इस समय तो सारे देश में एक ही पार्टी है भाजपा उसकी चोट खाए नेता विद्रोह भी नहीं कर सकते वे जायेगें कहां उनके पास कोई और ठौर है ही कहां । वे दिल में तूफान को समेटे मनमसोस कर रह गए । नए बने मंत्रियों ने नई शान-शौकत में अपने को ढालना प्रारंभ कर दिया । कुछ दिनों के बाद वे इस सत्ता के मद में बेहोश हो ही जायेगें । उत्तराखंड में भाजपा के ढेर सारे विधायक जीत गए पर मुख्यमंत्री चुनाव हार गए । होता है ऐसा जिसके सिर पर सारे प्रद्रेश की जबाबदारी होती है वह अपने क्षेत्र में वोट मांगने नहीं निकल पाता । आजकल मतदाता चाहता है कि प्रत्याशी उसके द्वार पर दस्तक दे वह उनके साथ फोटो खिचवा ले । पुष्करधामी के साथ सेल्फी लेने से वंचित उनकी ही विधानसभा के मतदाताओं ने उन्हें हरा दिया । कुछ दिन तो इसी मसक्कत में लग गए कि आखिर अब वहां मुख्यमंत्री कौन बनेगा । कई नेता अपना नया कुरता-पायजामा सिलवाकर मुख्यमंत्री की कुर्सी पर अपने आपको बैठा देखने भी लगे । पर अंत में हाईकमान ने कह दिया तो कह दिया । पुष्कर सिंह धामी नया कुरता-पायजामा पहने शपथ लेते दिखाई दिए । उधर गोवा में प्रमोद सांवत पर कृपा हो गई । सबकी अपनी-अपनी किस्मत है जिसके भाग्य में राजयोग लिखा होता है वह ऐसे ही देखते ही देखते राजा बन जाता है वरना कई नेता तो अपना पूरा जीवन इस कुर्सी को पाने के लिए लगा देने के बाद भी कुर्सी से दूर ही बने रहते हैं । भगवतं सिंह मान तो बेचारो दिन भर लोगों के विभिन्न प्रहसन कर हंसाते रहते थे । वे इस हालत में भी नहीं थे कि वे राजा का अभिनय भी कर सकें वे सा तो हवलदार की भूमिका में दिखाई देते या सत्ता से दुखी आम व्यक्ति की भूमिका में होते पर किस्मत ने ऐसा साथ दिया कि वे पंजाब के मुख्यमंत्री बन गए । पीली पगड़ी पहने वे लावलश्कर के साथ पंजाब की गलियों में घूमते दिखाई देने लगे । वैसे उनके ऊपर जबाबदारी बहुत है क्योंकि आम आदमी पार्टी के प्रति अभी लोगों की जो सोच बनी है उसे स्थाई बनाए रखना बेहद जरूरी है । छवि तलवार की धार की तरह होती है जरा से फिसलने से ही छवि खराब हो जाती है और एक बार खराब हुई छवि को फिर से न तो फेवीक्वि से जोड़ा जा सकता और न ही फेवीकाल की मजबूती वाले विज्ञापन के भरोसा रखा जा सकता । आप पार्टी को ता अभी बहुत आगे जाना है तो उसे अपनी छवि बचाए रखना जरूरी है वैसे भी आजकल राजनीतिक दलों की और उनके नेताओं की छवि आम मतदाता के दिमाग में बहुत बेहतर नहीं रह गई है । आप पार्टी कंे सामने अब बहुत सारे विकल्प खुल गए है । उसे लगने लगा है कि वे अब देश के हर एक राज्य में अपना झंडा बुलद कर सकते हें । पंजाब का च्यवनप्रास ने उन्हें नई ताकत दे दी है । अरविन्द केजरीवाल के चहरे पर भी ताजगी दिखाई देने गली है और उनके नेताओं को भी अपना भविष्य सुनहरा नजर आने लगा है । अगला लक्ष्य गुजरात है । गुजरात में चुनाव होने हैं । वहां तो वैसे भी विपक्ष बचा ही नहीं है । भाजपा निर्भक होकर वहां शासन कर रही है । अब उसे आप पार्टी चुनौती देगी । तैयारी उन्हें भी करनी होगी । मतलब अब मजमा गुजरात में लगेगा । सफेद टोपी, लाल टोपी केसरिया टोपी से गुजरात की सड़कें भर जायेगीं । तम्बू तनना प्रारंभ भी हो गया है । नेतगिरी में यही सबसे अधिक दुखद है कि नेता फुरसत रह ही नहीं पाता । वह जिस सत्ता के सुख के लिए दिन-रात एक करता हे उस पर बैठ जाने के बाद भी उसका सुख ले ही नहीं पाता । सुख तो पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरानखान भी नहीं ले पाए । उन्हें लगता था कि सत्ता क्रिेकट के खेल की तरह होती है । एक ओवळर फेंको और खिलाड़ी को आउट कर दो । पर जब वे सत्ता में बैठे तो उन्हें कहना ही पड़ा कि ‘‘वे कोई आलू-टमाटर के भाव जानने के लिए प्रधनमंत्री नहीं बने हैं’’ । वे जन्मजात नेता होते तो समझ जाते कि नेताओं को हर चीज का मौलिक ज्ञान रखना अनिवार्य है । नेता भले ही आम व्यक्ति की तरह हाथों में थैला लेकर बाजार न जाता हो पर फिर भी उसे इस बात का ज्ञान होना आवश्यक है कि तेल क्या भाव मिल रहा है और भटा के रेट क्या है । इमरानखान पांच सालों से पाकिस्तान को खेल का मैदान समझकर खलते रहे पर अब जब उन्हें घेरना प्रारंभ हुआ तो उनके माथे पर पसीने की बूंदे झलक आई । उनकी कुर्सी तो शायद ही बचे पर जो भी उनकी जबह कुर्सी पर बैठेगा उसके हाल भी ऐसे ही होना तय है ।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *