खुला समाज कभी खुला नही होता, रैपर में बंद होता है। पैक्डनेस ही ओपन सोसाइटी है , अपनी पॉलिटिक्स है अपना रहन सहन है ।ओपन सोसाइटी में अभिव्यक्ति का खुलापन किसी मुखौटे को लगा कर ही पाया जाता है ताजा उदाहरण विधानसभा में अखिलेश यादव जी है । मुखौटा लगाने और उसे ही वास्तविक चरित्र मानने/ मनवाने की लड़ाई को ओपन सोसाइटी सभ्यता की लड़ाई मानता है। हर कार्य का उसके पास कारण होता है। ओपन सोसाइटी में अकारण, अनायास, सहज, सरल होना पाप /पिछड़ा माना जाता है। यहाँ हर क्षण के लिए अलग अलग मुखौटे प्रयोग किये जाते हैं। यही सभ्यता है, स्मार्टनेस है। जो यह नही कर पाता उसे स्मार्ट सोसाइटी अलग थलग कर देता, मनुष्य मानने से इनकार कर देता है। गांव गिरांव जिसे बंद समाज का तमगा प्रगतिशीलों ने दे रखा है वहां घर आंगन दुआर ओसार से लेकर सम्बन्धों में पर्याप्त व्यापकता रहती थी, यहाँ तक कि घर में दरवाजे बहुत कम होते थे, दुआर सबके लिए होता था। ओपन सोसाइटी के प्रभाव में आकर अब यह समाज भी दरवाजे को चार दीवारी से घेर रहा है। ताला लगा रहा है। आज समाज को ओपन बनाने के नाम पर पैक्ड फ़ूड से लेकर पैक्ड होम पैक्ड रिलेशन निर्मित हो रहे हैं। चेहरे पर जितने पैक लगे रहते व्यक्ति को उतना ओपन माना जाता है। एक खास विशेषता और भी आजकल देख रहा हूँ, सुरक्षा के नाम पर यह समाज जेल में परिवर्तित हो रहा है। बच्चे अकेले कहीं निरापद आ जा नही सकते, सामान से लेकर सम्बंध सब कुछ को सात तालों के भीतर रखा जा चुका है। चारो तरफ कैमरे लगे हुए हैं। लोग आशंका और भय में जीने के कब आदी हो गए पता नही चला। अब हर बात पर शंका और बहस उस समाज का लक्षण और अनिवार्यता है। पासवर्ड लगाकर प्राइवेसी के प्रति निश्चिंत होने का भ्रम इस समाज के हरेक व्यक्ति की पहचान है। उदाहरण के तौर पर सांस्कृतिक विरासत की धज्जियां इस प्रकार उड़ाई जा रही कि जब आप किसी महात्मा के पास कथा वाचन के आयोजन हेतु जाएंगे तब आपके ऊपर तमाम शर्ते बताई जाएंगी जैसे पांडाल भी उनके ही किसी फर्म का होगा कैटरिंग भी उनके ही किसी फर्म का होगा शामियाना कनात टेंट तंबू सब वह जहां से बताएंगे वही से करना होगा कथा स्थल पर एयर कंडीशन युक्त एक कुटिया जैसी बनवानी पड़ेगी जो बाहर से तो कुटिया दिखे लेकिन अंदर से उसमें ऐसो आराम के सारी चीजें लगी हुई हो… बिजनेस क्लास में आने जाने का भाड़ा …उनके तमाम संजीदो, करिंदों आर्केस्ट्रा बाजा पेटी वालों तबलचियो आदि को प्लेन में आने जाने का भाड़ा और कथा कराने की फीस सुनकर आपके पैरों तले जमीन खिसक जाएगी । एक मामूली आदमी की औकात नहीं होगी कि वह मुरारीलाल से राम कथा करवा सके ,बहुत बड़ी-बड़ी कंपनियां कथा करवाती हैं बकायदा कई तरह से कमाई होती है जैसे किसी चैनल पर टेलीकास्ट करके कमाई कथा स्थल पर लगे तमाम एडवर्टाइज से कमाई कथा स्थल पर कई लोगों को स्टॉल देकर कमाई और लोग कहते हैं कि सारे वारे न्यारे करने के बाद कंपनियों को ४० से ₹ ५० लाख का मुनाफा होता है और राम कथा के नाम पर आपको क्या परोसा जाएगा ?? अली मोला अली मोला या या अल्लाह या अल्लाह या सस्ती फुहड़ शायरी या फिल्मी गाने या फिर या हुसैन या हुसैन या फिर मोहम्मद की करुणा ।इससे अच्छा किसी साधारण पंडित जी को पकड़ो उनसे कथा सुनो उन्हें १०००,२०००,३०००,४००० जितनी क्षमता हो दक्षिणा दो और उन्हें विदा करो या फिर खुद ही रामचरितमानस और भागवत गीता खरीदो और उसे पढ़ो । इन लोगों ने धर्म को व्यापार बना लिया है लेकिन उस पर मुझे कोई आपत्ति नहीं है क्योंकि पैसा कमाना हमारा संविधान सबको हक देता है । राजनीतिक गरिमा के धज्जियो भी उड़ रही जैसे की उत्तर प्रदेश विधान सभा ने इस सत्र जो कुछ देखा सुना वह शायद ही पहले कभी सुना देखा हो । नेता प्रतिपक्ष अखिलेश यादव ने की और बार बार अभद्र टिप्पणी, तंज, आरोप करते नजर आए । तू तड़ाक इनके पालन पोषण का परिचय दे रहा था ।ऐसा लगा सड़क का कोई असामान्य आदमी विधान सभा मे घुस आया हो ।भाजपा के बड़े कामों का श्रेय लेते हुए उन्होंने उप मुख्यमंत्री श्री केशव प्रसाद मौर्य से पूछा कि ये सब आपने किया या हमने किया? केशव जी ने कहा लगता है घर की ज़मीने बेंच कर सब किया आपने । सुनते ही अखिलेश जी आपे से बाहर हो गए और तू तडाक, बाप दादों तक जाते हुए एकदम गुंडों जैसी अदा दिखाने लगे. जिसने भी यह देखा वह स्तब्ध हो गया, कौन कहता है ये आदमी विदेश का तालीम याफ्ता है, इसे तो सामान्य राजनैतिक शिष्टाचार भी नही मालूम । योगी जी ने तुरंत प्रतिवाद किया और शालीनता, चेतावनी और अनुशासन का जो पाठ पढ़ाया उसको अखिलेश भूल नही पाएंगे जल्दी । पर मजा अभी बाकी था. केशव प्रसाद मौर्य ने जिस तरह क्रम बद्ध ढंग से अपनी बात रखी वह प्रशंसनीय थी । एक एक बात का सटीक और ताकतवर जवाब जिस तरह दिया उन्होंने वह सबको चकित कर गया । सपाई गुंडागर्दी, भ्र्ष्टाचार, शोषण, सब याद दिलवाए उन्होंने, सारे आरोपों को बिंदुवार अखिलेश पर दे मारा. सुनने वालों को निश्चित आनंद आया होगाक्योंकि सारी बातें सच बोली उन्होंने । किसी भी प्रतिवाद से न परहेज किया न ही बक्शा अखिलेश को, पर पूरे संयम और शालीनता से और सबका दिल जीत लिया. चुनाव के पूर्व और बड़ा, भव्य राम मंदिर बनवाने का वादा करने वाले इस नेता ने जिस तरह भगवान शिव का अपमान किया कि किसी पेड़ के नीचे पत्थर रख शिव की स्थापना हो जाती है हिन्दुओं के बारे मे अपनी सोच की असलियत खोल दी।। लगता है अगले दस सालों तक इनके नेता रहते सपा सत्ता को स्पर्श तक नही कर सकेगी क्योंकि उसका नेता अखिलेश जी की तरह आत्म मुग्ध, अराजक भाषा और आचरण का धनी है । उस दिन का पूरा विधान सभा सत्र केवल दो लोगो के वक्तव्य तक सीमित रहा एक तो योगी जी और दूसरे केशव प्रसाद मौर्य । इन्होने अपनी बातों से सबके दिल जीते और अखिलेश ड्रामा करते बीच बीच मे नियम विरुद्ध खड़े हो हो कर नजारा पेश करते रहे अपनी नासमझी का । एक बार भी नही लगा कि यही आदमी पांच सालों तक प्रदेश का मुखिया रहा है, विदेश मे पढ़ा हुआ है, शालीन है, सीख रहा है ।अगर ऐसे ही चलता रहा तो तय है सपा कभी वापसी नही कर सकेगी सत्ता मे फिर से जीतने के लिए ईमानदारी, समर्पण और श्रम चाहिए है जो सपा के किसी भी नेता के पास नही है । ___ पंकज कुमार मिश्रा एडिटोरियल कॉलमिस्ट शिक्षक एवं पत्रकार केराकत जौनपुर।