गीत-
ऐसा मेरा भारत है
अवतारों की जन्मभूमि है,
वेदभूमि की ताकत है,
कण-कण में ईश्वर बसते हैं
हर जीवन शरणागत है
मातृभूमि है, कर्मभूमि है, ऐसा मेरा भारत है।
सप्त पुरी हैं चारधाम हैं,
भिन्न-भिन्न संस्कृतियाँ हैं
महाभारत रामायण वेद-
पुराणों जैसी निधियाँ हैं,
सर्वधर्म समभाव सहेजे, ऐसा मेरा भारत है ।
मस्तक है प्राचीर हिमालय,
भरी सभ्यता बाहों में,
बने मार्ग अवतारों के
पदचिह्नों से हर राहों में
करता सागर चरण वंदना, ऐसा मेरा भारत है ।
एक अलौकिक धर्मध्वजा के
तले सुशोभित है धरती,
गले मिलें नदियाँ संगम है
गंगा-जमना-सरस्वती,
तीर्थ सभी नदियों के तट पर, ऐसा मेरा भारत है ।
करते सब मन वचन कर्म से
‘सत्यमेव जयते’ का घोष,
सत्यं-शिवं-सुंदरं गूँजे
प्रणव नाद से मिटते दोष,
पर्वोत्सव नित धूम मचाते, ऐसा मेरा भारत है।
–डॉ. गोपाल कृष्ण भट्ट ‘आकुल’, कोटा