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मैं फकीर वो बादशाह

मैं फकीर हूँ सामने तेरे
तू जगत का बादशाह है।

मैं फकीर वो बादशाह है
सिजदे में सिर झुका मेरा।
सबकुछ तो तेरा ही दिया
जो भी यहाँ सब कुछ तेरा।
सब फकीर हैं तेरे सामने
तू जगत का बादशाह है।

तेरी रहमतें बरसें सभी पर
खुशहाली दिखे हर कहीं।
तू दूर कर दे गम सभी के
उदासियाँ दिखें कहीं नहीं।
तेरी कृपा मिल जाये तो
फूलों से भरी हर राह है।

कर दे गरीबी दूर जग की
आँसू नहीं नयनों से ढलकें।
खोल दे झोली तू अपनी
खुशहाली चहुँओर छलकें।
तेरे सिवा कुछ चाहिए कब
बस तेरे दरस की चाह है।

डाॅ सरला सिंह ‘स्निग्धा’
दिल्ली

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