विधा:-कुंडलियाॅं छंद
मोबाइल लाया क्रांति, शुक्रिया खोज वाले।
धन्य मूर्त रूप दाता, नेट जोड़़ने वाले॥
नेट जोड़़ने वाले, टीवी घडी़ कंप्यूटर।
इसमें ही गैजेट, बुक टाॅर्च केलकुलेटर॥
कहें ‘लक्ष्य’समझाय, कलयुगी ज्ञान समाया।
काग़ज़ कलम विहाय, क्रांति मोबाइल लाया॥
गूगल ज्ञान की पुतली, मोबाइल की शान।
जानी अनजानी करे, समस्या समाधान॥
समस्या समाधान, निरख यूट्यूब उपदेश।
बेब साइटों पढो़, विस्तृत लायक संदेश॥
‘लक्ष्य’ वीडियो काॅल, नेट बैंकिंग लो जान।
सुविधाओं के संग, उत्तम है गूगल ज्ञान॥
मोबाइल उपयोग है, लाभ हानि का मेल।
ज्ञानी खुश करते जिन्न, हानि अज्ञानी खेल॥
हानि अज्ञानी खेल, लुटें मृत्यु तक हो जाय।
बाल युवा दिग्भ्रमित,यदि लत उनको लग जाय॥
कहें “लक्ष्य” करजोर, जगत है इसका पागल।
नजरें नहीं चुराय, तभी दे वर मोबाइल॥ मौलिक रचनाकार- उमाकांत भरद्वाज सविता “लक्ष्य”, भिंड (म.प्र.)