“रंगों “में सद्भावना
“रंगों “में मुस्कान ।
रंग; देव लोक का
सृष्टि को वरदान ।।
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रंगों में उल्लास छिपा
और गुंथा है प्यार।
रंग पिरोय फूल हैं
जो फूलों का हार ।।
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रंगों में अनुराग भरा
रंगो में विश्वास।
रंग दिलों के पास का
एक पावन एहसास ।।
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रंगों में इस धरा की
सौंधी-सौंधी गंध।
रंग हृदय से देखते
करके आंखें बंद।।
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रंगो में वो मीठा पन
मुख में ज्यो मकरंद ।
जो सुरीली तान का
बंशी से अनुबंध।।
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रंगों में तरुणाई भी
और छिपी मनुहार।
रिश्तो को दे ताजगी
यह अनुपम त्यौहार।।
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रंगों में ही पल रहा
जीवन का मधुमास ।
रंग दर्द को बांटते
पी लेते संत्रास।।
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रंगो मे सुर- ताल है
रंगो मे संगीत।
जैसे कृष्ण कन्हाई का
राधा से है प्रीत।।
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रंगों में झंकार है
ज्यो वीणा के तार ।
इसमें दर्शन “कर्म “के
और गीता का सार।।
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रंगों में किलकारियां
निश्चल है अंदाज ।
रंग बांधने आए हैं
रिश्तो के सर ताज ।।
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रंगों में ही फूटते
संबंधों के बीज।
नूतन पल्लव जग रहे
अपनी आंखें मींच।।
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रंगों में ही बंधे हुए
जग के सभी विधान ।
मर्म वही तो जानता
जो है चतुर सुजान।।।
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रंगों में न धुंध है
न छद्म है भेष।
रंगों के आलिंगन से
मिट जाते हैं क्लेश।।
—
सतीश उपाध्याय
अग्रवाल लाज के पास
मनेंद्रगढ़
जिला कोरिया
छत्तीसगढ़