कोरोना काल में मैं दावतों को तरस गया था।वैसे एक साल में लगभग बीस दावतों का आनंद ले लेता था । जिस दिन दावत होती थी, उस दिन मेरे चेहरे पर रौनक आ जाती थी । दिन भर व्यंजनों के सपनों में खोया रहता था। उस दिन मैं कुछ भी नही खाता था। शाम को दवात का असली आनंद लेता था।
कोरोना काल ने मेरी दावतों को छीन लिया था । अरे मैं तो यह भी कहता हूँ कि नरक में भी जगह ना मिले कोरोना के वायरस को । सरकार को इतनी जल्दी मार्च में लोकडॉन लगाने की क्या जल्दी थी ? अरे कम से कम दो चार दावतों का आंनद ले लेने देते फिर लोकडॉन लगाते । खैर अपनी जेब से दावतें करना मेरे खून में नही था ।
तभी कुछ महीने बाद उड़ती हुई खबर आई कि कुछ प्रतिबंधों के साथ शादी का समारोह आयोजन किया जा सकता है। इन प्रतिबंधों के तहत वर और वधू पक्ष के अधिकतम 50,-60लोग ही समारोह में भाग लेंगे ।
मेरी तो जैसे लॉटरी ही निकल गयी थी। वही पुरानी दावतें याद आने लगी ।. परन्त निराशा ही हाथ लगी। एक भी दावतनामा नही आया । मै अपने स्टाफ के कई लोगों को दावतों की बातें करते सुना करता था .कोई कहता आज मेरी रॉयल होटल में दावत है तो कोई कहता दीपशिखा होटल मे. ।यह सभी मुझे दुश्मन के तरह लगने लगे थे ।
मैं सुना करता था कि भगवान से प्रसाद बोल दो तो मनोकामना पूरी होती है। मैंने हिसाब लगाया कि इक्यावन रुपए का प्रसाद बोलने के किसी भी प्रकार का घाटा नही हैऔर यह भी कहा जाता है कि बगैर घूस के कोई काम समय से नही बनता.सो मैने भगवान से 51रुपए का प्रसाद बोल दिया।
रिश्वत का नाम लेते ही काम पूरे होने के चांस बनने लगे.। एक दिन मैं और मेरे सहायक अध्यापक धूप का आनंद ले रहे थे कि देवरूपी महेश दुबे जी आ धमके।
महेश जी पास के बगल के स्कूल में अध्यापक थे .उन्होंने अपने बैग से निमंत्रण पत्र निकाल कर कहा-“मेरे पुत्र की शादी है आप सहित समस्त स्टाफ को दवात में आना है.मैंने तुरंत ही खाने का मीनू भी पूंछ लिया ।
फिर क्या था मैंने दावत की खबर सभी को सुना दी। मुझे यह विश्वास हो गया था की पूरे काम कराने के लिए भगवान को भी घूस देनी पड़ती है.।शादी 10 अक्टूबर को श्री हरि होटल में थी । मुझे एक -एक दिन भारी लग रहा था।
इसी दौरान मेरे मकान में राजमिस्त्री काम कर रहा । उसने मुझसे इतनी भाग दौड़ करा ली कि मैं कई ज़रूरी बातें भूल गया । माह में जाने वाले पावने में दो दिन के हस्ताक्षर करना भूल गया , जिससे दो दिन का वेतन भी काट गया।
इसी उठापटक में में शादी की तारीख भी भूल गया ।मेरे दिमाग मे शादी की दवात 11तारीख फिक्स हो गई । 11अक्टूबर को मैंने सुबह से ही ब्रत धारण कर लिया.
पुराना कोट निकाला सेविंग की। .बाल काले किये .श्रीमती जी समझ चुकी थी कि आज शाम को दावत है। मैं शाम का बेसब्री से इंतजार करने लगा।
आखिर वो घड़ी भी आ गयी।. मैने मोटरसाइकिल निकली और श्रीहरि होटल के लिए दौड़ा दी।पर यह क्या? वहां मेरे परचित का कोई भी नही दिखाई दे रहा था । मोबाइल में टावर ना आने के कारण किसी से संपर्क भी नही कर पा रहा था ।पता करने पर मालूम हुआ कि यहां चौहान परिवार की शादी है
मैं कोरोना काल की पहली शादी के निमंत्रण को हाथ से नही जाने देना चाहता था । मेरे दिमाग मे आया क्यो ना इसी दावत का आनंद ले लिया जाए ।. वैसे भी इलाहाबाद में कॉम्पिटिशन की तैयारी के दौरान बगैर दावतनामा के दावत का आनंद ले लिया करता था । परंतु वो स्टूडेंट लाइफ थी अब यह सब उचित नही होगा. तभी मेरे दिमाग में विचार कौंधा कि ऐसा ना हो कि यह शादी श्रीहरि गार्डन में हो,? मैने तुरंत ही अपनी गाड़ी श्रीहरि गार्डन की ओर मोड़ दी ।
श्रीहरि गार्डन में भी कोई अपना नही दिखाई दे रहा था। मालूम करने पर पता चला कि दुबे परिवार की शादी है। बारात अभी नहीं आई है। मैं निश्चिंत हो गया था के अब मैं सही जगह आया हूँ।
चूंकि मैं लड़का पक्ष का था। अतः मुझे बारात के आने का इंतजार करना चाहिए था.।परंतु मेरी जीभ इंतजार नही करना चाहती थी। फिर क्या में व्यजनों पर टूट पड़ा। मैने सभी व्यंजनों का जम कर आनंद लिया. तब तक बारात भी आ चुकी थी। पर महेश दुबे जी का कहीं अता पता नही था।.अब मुझे संदेह होने लगा ।तभी मोबाइल के टावर भी आ चुके थे।. मैंने अपने सहायक अध्यापक को फ़ोन किया तो पता चला कि शादी तो 10तारीख को श्री हरि होटल में हो चुकी है।
किसी के टोकने से पहले ही मैं धीरे से वहाँ से खिसक गया।
प्रस्तुत रचना मौलिक और स्वरचित है कृपया अपने समूह की किसी भी पत्र पत्रिका में प्रकाशित करने की कृपा करेँ .रचना लिखने की तिथि30 जनवरी2021
Dr. कमलेंद्र कुमार श्रीवास्तव
रॉवगंज कालपी जालौन
पिन कोड 285204उत्तर प्रदेश