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योग पर दोहे

योग जगत का सार है,सदगुण लिए हजार।

इसकी महिमा  से सदा,सुख पावत संसार।।

योग  सनातन   है  महा ,दूर  करे  सब रोग।

जिससे पाते सुख सदा,जीवनमें सब लोग।।

योग  अंग  जागृत  करी , लाता  रंग भरपूर।

चमके  तेज  ललाट पर,मिले खुशी का नूर।।

जीवन की हर जीत में ,योग  निराला जान।

स्वस्थ निरोग जीवन में ,है इसकी पहचान।।

योग अभय  कारी  सदा,अपनाता जो कोय।

जीवन निरोगी मिलता,नामअमर जग होय।।

नाश  समूल  रोग  करे  ,योग  अनूठा  ज्ञान।

मानव जीवन के लिए,  सबसे  उत्तम  जान।।

अति अनमोल अचूक  है,योग यतन कर यार।

जिससे  सुख  पाये  सदा ,देश  गांव परिवार।।

योग महा  महिमा बडी़,  जग  जीवन आधार ।

सर्व  सुख का  सार  यहीं,इसपर करो विचार ।।

आओ हम सब योग में,सतत लगा के ध्यान।

कायम  रखें  अनुप सदा, विश्वगुरू पहचान।।

जीवन  नरक योग बिना ,मिले  नहीं आराम।

योग  करें जग में सभी,सुचि  कवि बाबूराम।।

बाबूराम सिंह कवि,गोपालगंज,बिहार

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