डा.सर्वेश कुमार मिश्र
सुबह से शाम हो गई
किंतु कोई हलचल ना हुई
कोई मनचल ना हुई
कोई हिला भी नहीं
कोई डुला भी नहीं
कोई देखा भी नहीं
कोई ताका भी नहीं।
सच है खुद की लड़ाई
खुद से लड़नी चाहिए
बधाइयों के शहर में
ना दुखड़े गाना चाहिए।
खुद के मन की व्यथा
खुद ही गुन गुना ले
ए दरिया में डूबते नाविक!
जमाने बदल गए हैं
उसूल बदल गये हैं,
इमदाद और मदद के अल्फाज़ सब
वे किताबी हो गए हैं अब,
खुद को बचाने के लिए
लड़ दरिया की लहरों से
इमदाद मदद के लद गए जमाने अब
अफसोस के तराने भी सारे
ख़ामोश हो गए हैं अब।
पहले हर डूबने वाले पर
साहिल के तमाशाई
अफसोस और इमदाद किया करते थे,
जमाना बदला केवल अफसोस किया करते थे,
मदद शून्य सब हो गए थे,
जमाना अब अफसोस और इमदाद भी खा गया ,
शेष रह गईं केवल फीकी बधाईयां
बधाईयां बधाईयां और केवल बधाईयां