रूपा के काॅलेज की छुट्टियाँ चल रही थीं। उसने सोचा की खाली समय में खाली बैठने से अच्छा है की कुछ काम ही कर लिया जाये।एक
सहेली से बात करके दोनों ने एक प्राइवेट स्कूल में
बात की और फिर इन्टरव्यू के बाद दोनों का ही उसी स्कूल में सैलेक्शन हो गया। दोनों ने ही वहाँ पढ़ाना चालू कर दिया ।अकेले से भले दो होते हैं
कम से कम कहीं आने जाने में डर तो नहीं लगता है। एक दिन स्कूल से घर आते वक्त उनकी एक सहेली मीना की भाभी रास्ते में मिल गयीं।उसको
देखकर पूछने लगीं,
” अरे रूपा इस समय क्या कर रही है ?”
“नमस्ते भाभी जी ,कुछ नहीं भाभी जी एम.ए.भी कर रही हूँ और खाली समय में प्राइवेट स्कूलों में पढ़ा लेती हूँ ।” रूपा ने कहा
“खाली बी.ए.,एम.ए.करके कुछ भी नहीं होगा। एम.ए करने के साथ साथ बी एड. भी कर लो। कहीं किसी सरकारी स्कूल में अच्छी नौकरी मिल जाएगी। ” भाभी जी ने उसे समझाते हुए कहा ।
रूपा मीना की भाभी के साथ उनके घर तक गयी बस इसी प्रलोभनवश की उसे बीएड के बारे में पूरी जानकारी मिल जायेगी । नीरा भाभी ने घर पहुँच कर पूरे इत्मीनान के साथ उसे सारी जानकारी दी की कब बीएड का फार्म निकलता है ,उसकी कैसे तैयारी करनी है। एंट्रेंस निकालने के बाद बीएड में एडमिशन मिलता है तथा
बीएड करने में कितना खर्च आता है सब कुछ। उसकी सहेली मीना ने भी बी.ए.के बाद बी.एड कर लिया था और वह नौकरी की तैयारी कर रही थी ।
घर आकर रूपा ने भी अपनी उन सहेलियों
से बात की जो बी.एड.कर रही थीं या कर चुकीं थीं । यामिनी की बातों को सुनकर तो वह डर ही
गयी। उसने तो उसे जमीनी हकीकत से ही परिचित करा दिया,”हम लोगों के यहाँ तो बिजनेस होता है फिर भी इतना पैसा लगाना मुश्किल ही लगता है , फिर तुम बीसों हजार रूपये कहाँ से पाओगी ?बहुत मुश्किल है बी.एड.करना ।”
पर रूपा ने तय कर लिया था कि वह बी.एड.
तो जरूर करेगी । उसने अपनी सहेली के साथ तय किया कि कुछ पैसे हर माह बचाती जायेगी और उन्हीं पैसों से वह बी.एड.कर लेगी ।
अब समस्या आयी की बैंक में अकाउंट कैसे
खुलवाया जाये ? घरवालों से छिपा कर अकाउंट खुलवाना था तो वह अपनी माँ पिताजी व बहनों से भी कुछ नहीं पूछ सकती थी ।वह खुद भी बैंक के काम से परिचित नहीं थी । आखिरकार अपनी एक सहेली के साथ वह बैंक पहुँच गयी । बैंक मैनेजर से बैंक अकाउंट खुलवाने के लिए बात भी कर लिया और फॉर्म भी लेकर वहीं पर पूछ पूछ कर भर दिया । फोटो लगाकर हस्ताक्षर करके बड़े रोब के साथ जमा करने गयी आखिर उसका अकाउंट जो खुल रहा था ।
” सर फॉर्म ले लीजिए ।”
बैंक के अधिकारी ने फार्म देखा और फिर
वापस करते हुए बोले,”स्योरिटी के साइन कहाँ
हैं ?”
वह तब तक स्योरिटी के बारे में भी नहीं जानती थी ।
“अँकल ये स्योरिटी क्या होता है ?”उसने बैंक
के अधिकारी से पूछा ।
“अरे तुम्हारे किसी रिश्तेदार या परिचित का
अकाउंट इस बैंक में हो तो उनका साइन स्योरिटी की जगह करा लो ।” बैंक अधिकारी ने समझाया ।
अब रूपा उदास हो गयी । “अँकल जी मेरा तो कोई परिचित नहीं है जिसका अकाउंट यहाँ हो ।” उसने एक आखिरी कोशिश की पर बैंकअधिकारी को तो फार्म पर स्योरिटी के हस्ताक्षर चाहिए ही थे ।
वह हारकर उदास होकर वापस जाने लगी की तभी एक अपरिचित अँकल जो शायद काफी समय से उसकी बातें सुन रहे थे उन्होंने उसे पास बुलाया और फार्म पर साइन करके खुद ही बैक अधिकारी के पास जाकर जमा कर दिया । फिर उसके सिर पर हाथ रखकर बोले ,”जा बेटी ,हो गयी तेरी स्योरिटी अगले हफ्ते आकर अपनी पासबुक ले जाना ।”
” बहुत बहुत धन्यवाद अँकल जी ।” रूपा बस इतना ही कहा सकी । रूपा की खुशी का तो ठिकाना ही नहीं था । आखिर नहीं होते होते कोई काम जो हो गया था । उसे ऐसा लग रहा था की जैसे ईश्वर स्वयं ही उसकी मदद करने आये हों ।
डॉ.सरला सिंह स्निग्धा
दिल्ली