बागों में कूके कोयल, भौरें विचर रहे हैं।
बागों पे आया यौवन,कविमन खिल गए हैं।
हरियाली से धरा का,सौन्दर्य बढ़ता जाए।
नववर्ष आ गया है , ऋतुराज मुस्कुराए ।
कलियाँ चहकती हैं,खुशियों से चमन गाये।
ख्वाहिशें नई जगी है ,इरादे बदल गये हैं, ।
रेतों के भी परिन्दे , हरियाली में मुस्कुराए।
मंजिलों के नए सपने , अब जन्म ले रहे हैं ।
इरादे बुलंद देखो, मन में खिल रहे हैं ।
छोटे से बड़े तक ,सब मे उल्लास देखो ।
कर्तव्य गढ़ रहे हैं , नवकर्म गढ़ रहे हैं।
सत्कर्म के संकल्प अब,मन में पल रहे हैं।
आकाश तक की मंजिल,पाने को अड़ रहे हैं।
न कर्म ही गलत हो ,मंजिल भी मिलती जाए ।
नैराश्य का बादल ,छँटता सा दिख रहा है ।
नव वर्ष आ गया है ,नव फूल मुस्कुराए ।
न गम न कोई उलझन, हर्षित से फिर रहे हैं ।
उल्लास का सवेरा , नव रंग भर रहा है ।
जीवन का सफर अब ,आसान दिख रहा है ।
डाॅ सरला सिंह “स्निग्धा”
दिल्ली