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गुरुवर जलते दीप से

दूर तिमिर को जो करें, बांटे सच्चा ज्ञान।

मिट्टी को जीवित करें, गुरुवर वो भगवान।।

जब रिश्ते हैं टूटते, होते विफल विधान।

गुरुवर तब सम्बल बने, होते बड़े महान।।

नानक, गौतम, द्रोण सँग, कौटिल्या, संदीप।

अपने- अपने दौर के, मानवता के दीप।।

चाहत को पर दे यही, स्वप्न करे साकार।

शिक्षक अपने ज्ञान से, जीवन देत निखार।।

शिक्षक तो अनमोल है, इसको कम मत तोल।

सच्ची इसकी साधना, कड़वे इसके बोल।।

गागर में सागर भरें, बिखराये मुस्कान।

सौरभ जिसे गुरू मिले, ईश्वर का वरदान।।

शिक्षा गुरुवर बांटते, जैसे तरुवर छाँव।

तभी कहे हर धाम से, पावन इनके पाँव।।

अंधियारे, अज्ञान को, करे ज्ञान से दूर।

गुरुवर जलते दीप से, शिक्षा इनका नूर।।

–(सत्यवान ‘सौरभ’ के चर्चित दोहा संग्रह ‘तितली है खामोश’ से। )

—  सत्यवान ‘सौरभ’

रिसर्च स्कॉलर, कवि,स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार, आकाशवाणी एवं टीवी पेनालिस्ट,

333, परी वाटिका, कौशल्या भवन, बड़वा (सिवानी) भिवानी, हरियाणा – 127045

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