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मधुबन ही मधुबन हो (श्रंगार गीत)

गूंथ लिया सारा बसंत अपने जूड़े में ,
मौसम कहता है तुम फागुन ही फागुन हो।

होटों से लिपट लिपट मखमली हंसी तेरी,
दूधिया कपोलों का चुंबन ले जाती है।
झील के किनारों को काजल से बांधकर,
पनीली सी पलकों में सांझ उतर आती है।

महावारी पैरों से मेहंदी रचे हाथों तक,
छू छू कर कहे हवा चंदन ही चंदन हो।

गदराये यौवन से मादक सी गंध कोई,
केसर की क्यारी से छन कर ज्यों आई है,
मन के आंगन में ज्यों चहचहा गई चिड़िया,
रुनझुन की धुन तेरी पायल से आई है।

आंखों की चितवन से अधरों की फड़कने तक,
मल्हारें कहती तुम सावन ही सावन हो।

सतरंगी चूनर ने संगमरमरी तन को,
ना जाने कितने पल छू-छू कर देखा है,
ताजे गुलाबों सा खिला-खिला ये चेहरा,
मुझको हर रोज ही अनछुआ लगता है।

कंगन की खन-खन से दिल की हर धड़कन तक,
बासंती ऋतु कहे मधुबन ही मधुबन हो।

गीतकार अनिल भारद्वाज एडवोकेट हाईकोर्ट ग्वालियर मध्यप्रदेश।

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