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महाशिवरात्रि महापर्व

विधा:-विधाता छंद

करूँ मैं वंदना शिव की,सभी के हैं शरण दाता। 

सवारी बैल की करते, किसी से द्वेष ना भाता। 

भजें जो प्रेम से उनको, खुशी दें शरण पा जाता। 

मिले वरदान मनचाहा, भजन से इष्ट का नाता॥ 

लिया अवतार पृथ्वी पर, शिवानी भी विवाही हैं। 

त्रयोदश की शुभी तिथि के,रहेंगे गण गवाही हैं। 

मनाते भक्त श्रृद्धा से, रखें उपवास पूजा बल। 

चढा़ते बेल के पत्ते, धतूरा बेर गंगा जल॥ 

बही जलधार गंगा की, भगीरथ की तपस्या से। 

जटाओं में समेटा था, उतारा शंभु ने हिम से। 

नदी गंगा बड़ी पावन, बहे जो पाप को हरने। 

लिया संकल्प कांवर तो, चले जाते वहाँ भरने॥ 

कड़ा संकल्प है कांवर, नियम इसके निराले हैं। 

रखें कंधे चलें पैदल, सहारा जोड़ वाले हैं। 

नहीं खाते बिना व्रत का, निरंतर रात दिन चलते। 

भगाना दूर जो होता, सभी से बोल बम कहते॥ 

भरीं जल काॅंच की शीशीं, तराजू बाॅंस रखवाते।

सजाते भेंट की चीजों, शिवालय में लिये आते। 

नहा धोकर चढ़ाते हैं, सभी जल साथ जो लाते। 

फलाहारों रखे व्रत को, चतुर्दश तिथि निभा पाते॥

नहीं थकते चलें कोसों, यही है शक्ति शिव जी की। 

रहें आश्वस्त वे तन से, न चिंता व्यर्थ क्षण भर की। 

मनोरथ पूर्ण हो जाते, मिटें उलझन सभी मन की। 

सुखों को “लक्ष्य'”पाने से, समस्या दूर जीवन की॥

मौलिक रचनाकार- उमाकांत भरद्वाज “सविता) “लक्ष्य” भिण्ड (म.प्र.)

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