भारतीय स्वतंत्रता काल में क्रांतिकारियों का प्रेरणास्रोत -‘वंदे मातरम्’- जो 1937 में भारत का राष्ट्रगीत बन गया, जिसके रचयिता बंग्ला भाषा के प्रख्यात उपन्यासकार एवं कवि बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय के जन्मदिन पर “अंतरराष्ट्रीय साहित्य संगम” (साहित्यिक सांस्कृतिक संस्था) के तत्वावधान में संस्था के अध्यक्ष श्री देवेंद्र नाथ शुक्ल एवं महासचिव डॉ. मुन्ना लाल प्रसाद के संचालन में अपनी कृतज्ञता व्यक्त करने के लिए श्रद्धांजलि स्वरूप गूगल मीट के माध्यम से एक ऑनलाइन अंतरराष्ट्रीय “काव्यांजलि”- का आयोजन किया गया। इसमें मुख्य अतिथि के रूप में अद्यतन के संपादक प्रो. डॉ. ब्रज नंदन किशोर, पूर्व हिन्दी विभागाध्यक्ष, डी.ए.वी. स्नातकोत्तर महाविद्यालय, जयप्रकाश विश्वविद्यालय, छपरा, भारत एवं विशिष्ट अथिति के रूप में प्रो. डॉ. विवेक मणि त्रिपाठी, दक्षिण एशियाई भाषा व संस्कृति विभाग, क्वांगतोंग विदेशी भाषा विश्वविद्यालय चीन, लतिका रानी, सिंगापुर, डॉ. शिखा रस्तोगी, हिन्दी विभागाध्यक्ष, जीआईआईएस, बैंकाक थाइलैंड एवं प्रो. डॉ. प्रवीण मणि त्रिपाठी, केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, श्री रणवीर परिसर, जम्मू उपस्थित थे। सबसे पहले सिंगापुर से विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित डॉ. लतिका रानी द्वारा उद्घाटन गीत प्रस्तुत किया गया। उसके बाद अतिथियों द्वारा देश और साहित्य के क्षेत्र में बंकिमचंद्र के योगदानों पर प्रकाश डाला गया।
इस कवि सम्मेलन में देश-विदेश के कवियों ने अपनी कविताओं के माध्यम समाज की विविध छटाओं के रंग बिखेरे। कार्यक्रम में विदेश के अनेक कवियों के साथ देश के विभिन्न प्रांतों से भी अनेक कवि शामिल थे, जिसमें मुख्य रूप से श्री जय प्रकाश अग्रवाल, नेपाल, स्नेहलता शर्मा, लखनऊ, तनुजा चौहान, नवी मुंबई डॉ. भीखी प्रसाद “वीरेन्द्र”, डॉ. ओमप्रकाश पांडेय, सिलीगुड़ी, स्नेहलता शर्मा, लखनऊ, डॉ. मनोज मिश्रा, हावड़ा, श्री मनोज कुमार वर्मा, अर्चना आर्याणी, सीवान, श्रीमती विद्युत प्रभा चतुर्वेदी ‘मंजु’, देहरादून, श्री रमेश माहेश्वरी “राजहंस”, बिजनौर, डॉ. अलका अरोड़ा, देहरादून, श्रीमती कश्मीरा सिंह, छपरा, श्री बिधुभूषण त्रिवेदी, श्री शारदा प्रसाद दुबे, ‘शरतचंद्र’ थाणे, मुंबई, आनंद उर्वशी, दिल्ली, श्री हरजीत सिंह, लुधियाना, श्रीमती भावना सिंह “भावनार्जुन”, बुलंदशहर, डॉ. विपिन किशोर प्रसाद, प्राचार्य, मेडिकल कॉलज, कानपुर, स्नेह लता शर्मा, लखनऊ
श्री अमर बानियाँ लोहोरो, गांगटोक, श्री महेश ठाकुर “चकोर”, मुजफ्फरपुर, श्रीमती पुतुल मिश्रा, इंद्रजीत कौर, सिलीगुड़ी, एवं प्रो. डॉ. विक्रम साव, नैहाटी, मुख्य रूप से शामिल थे। नेट की असुबिधा के कारण देश के कई महत्वपूर्ण कवि काव्य पाठ से वंचित रह गये। यह पूरा कार्यक्रम गूगल मीट के अलावा यूट्यूब एवं फेसबुक पर लाइव प्रसारित हो रहा था जिससे काफी संख्या में श्रोता जुड़े हुए थे।बंकिमचंद्र के जन्मदिन पर अंतरराष्ट्रीय कवि सम्मेलन”
भारतीय स्वतंत्रता काल में क्रांतिकारियों का प्रेरणास्रोत -‘वंदे मातरम्’- जो 1937 में भारत का राष्ट्रगीत बन गया, जिसके रचयिता बंग्ला भाषा के प्रख्यात उपन्यासकार एवं कवि बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय के जन्मदिन पर “अंतरराष्ट्रीय साहित्य संगम” (साहित्यिक सांस्कृतिक संस्था) के तत्वावधान में संस्था के अध्यक्ष श्री देवेंद्र नाथ शुक्ल एवं महासचिव डॉ. मुन्ना लाल प्रसाद के संचालन में अपनी कृतज्ञता व्यक्त करने के लिए श्रद्धांजलि स्वरूप गूगल मीट के माध्यम से एक ऑनलाइन अंतरराष्ट्रीय “काव्यांजलि”- का आयोजन किया गया। इसमें मुख्य अतिथि के रूप में अद्यतन के संपादक प्रो. डॉ. ब्रज नंदन किशोर, पूर्व हिन्दी विभागाध्यक्ष, डी.ए.वी. स्नातकोत्तर महाविद्यालय, जयप्रकाश विश्वविद्यालय, छपरा, भारत एवं विशिष्ट अथिति के रूप में प्रो. डॉ. विवेक मणि त्रिपाठी, दक्षिण एशियाई भाषा व संस्कृति विभाग, क्वांगतोंग विदेशी भाषा विश्वविद्यालय चीन, लतिका रानी, सिंगापुर, डॉ. शिखा रस्तोगी, हिन्दी विभागाध्यक्ष, जीआईआईएस, बैंकाक थाइलैंड एवं प्रो. डॉ. प्रवीण मणि त्रिपाठी, केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, श्री रणवीर परिसर, जम्मू उपस्थित थे। सबसे पहले सिंगापुर से विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित डॉ. लतिका रानी द्वारा उद्घाटन गीत प्रस्तुत किया गया। उसके बाद अतिथियों द्वारा देश और साहित्य के क्षेत्र में बंकिमचंद्र के योगदानों पर प्रकाश डाला गया।
इस कवि सम्मेलन में देश-विदेश के कवियों ने अपनी कविताओं के माध्यम समाज की विविध छटाओं के रंग बिखेरे। कार्यक्रम में विदेश के अनेक कवियों के साथ देश के विभिन्न प्रांतों से भी अनेक कवि शामिल थे, जिसमें मुख्य रूप से श्री जय प्रकाश अग्रवाल, नेपाल, स्नेहलता शर्मा, लखनऊ, तनुजा चौहान, नवी मुंबई डॉ. भीखी प्रसाद “वीरेन्द्र”, डॉ. ओमप्रकाश पांडेय, सिलीगुड़ी, स्नेहलता शर्मा, लखनऊ, डॉ. मनोज मिश्रा, हावड़ा, श्री मनोज कुमार वर्मा, अर्चना आर्याणी, सीवान, श्रीमती विद्युत प्रभा चतुर्वेदी ‘मंजु’, देहरादून, श्री रमेश माहेश्वरी “राजहंस”, बिजनौर, डॉ. अलका अरोड़ा, देहरादून, श्रीमती कश्मीरा सिंह, छपरा, श्री बिधुभूषण त्रिवेदी, श्री शारदा प्रसाद दुबे, ‘शरतचंद्र’ थाणे, मुंबई, आनंद उर्वशी, दिल्ली, श्री हरजीत सिंह, लुधियाना, श्रीमती भावना सिंह “भावनार्जुन”, बुलंदशहर, डॉ. विपिन किशोर प्रसाद, प्राचार्य, मेडिकल कॉलज, कानपुर, स्नेह लता शर्मा, लखनऊ
श्री अमर बानियाँ लोहोरो, गांगटोक, श्री महेश ठाकुर “चकोर”, मुजफ्फरपुर, श्रीमती पुतुल मिश्रा, इंद्रजीत कौर, सिलीगुड़ी, एवं प्रो. डॉ. विक्रम साव, नैहाटी, मुख्य रूप से शामिल थे। नेट की असुबिधा के कारण देश के कई महत्वपूर्ण कवि काव्य पाठ से वंचित रह गये। यह पूरा कार्यक्रम गूगल मीट के अलावा यूट्यूब एवं फेसबुक पर लाइव प्रसारित हो रहा था जिससे काफी संख्या में श्रोता जुड़े हुए थे।