बसंत यानि उल्लास। प्रेम और प्यार का आभास। ज़िन्दगी के लिए अति आवश्यक तत्व। गतिमान रहने के लिए एक आवश्यक बल। बसंत प्रतिवर्ष आता है। बीते वर्षों की कुछ यादें ताजा कर जाता है। फिर से मिठास भर जाता है। जीवन को महका जाता है। हर तरफ बिखरा हुआ रंग। रंग बिरंगे फूल खिले हुए। सुहाता सुहाता सा मौसम। मदमस्त बहती हवा। सर्दी की ऐंठन से निजात पाने की उम्मीद। गर्मी के अभी दूर होने की राहत। बहुत कुछ ऐसा है जो मन को भा जाता है। मस्तिष्क में समा जाता है। खुशी का अहसास करा जाता है।
भागदौड़ भरी जिंदगी में प्रकृति से बहुत दूर हो गए हैं हम। कुछ अच्छा सोचने का भी समय नहीं होता है। लेकिन इस मौसम के आते ही प्रकृति अपनी ओर खींचने लगती है। बरबस मन ललचाने लगता है खुश रहने को। मन में स्वत ही संगीत बजने लगता है। हर तरफ हर ओर बस सुन्दरता ही दिखती है। प्रकृति से प्यार होने लगता है। एक अनकहा, अनदेखा, खूबसूरत खुमार हर समय सवार रहता है। सबसे जी खोलकर बातें करने को जी चाहता है। सारे झगड़े ख़त्म कर देने की इच्छा जाग्रत हो जाती है। मन कल्पना करने लगता है कि दुनिया से सारी बदसूरती दूर हो जाए। प्रेम हर तरफ अपनाया जाने वाला एक उसूल बन जाए। कोई भी दुखी न हो। भूखा न हो। बेरोजगार न हो। मानव जाति बस प्रकृति से प्यार करे। बस एक यही व्यापार करे। जीवन आशा से परिपूर्ण हो जाए। कहीं चिंता नहीं हो। निराशा नहीं हो। बस सुनहरी सुबह हो और गुलाबी शाम हो। न काली रात हो न लम्बी दोपहर हो। सबका मन प्रेम का ही गुलाम हो।
वीना वादिनि मां सरस्वती अपनी वीना से मधुर संगीत बिखेर दें। ज्ञान को विश्व के हर कोने में वितरित कर दें। मूढ़ता को स्वाहा कर दें। आकांक्षा उनके चरणों में शीश झुकाने की हो।
ज्ञान, कला और संगीत से जीवन भर जाने की हो। नफ़रत रास्ता भटक जाए। हर प्राणी के रास्ते से हट जाए। यही प्रार्थना है। पीला, पवित्र वातावरण सदा के लिए ठ हर जाए। जीवन में बसंत ही बसंत हो। अर्चना त्यागी