मुझे कविताएं लिखने का बड़ा शौक था। कविताएं लिखने से ज्यादा सुनाने का शौक था। कविताएं सुनाने से ज्यादा कवि सम्मेलन में जाने का शौक था। कवि सम्मेलन में जाने से ज्यादा तालियां बजवाने का शौक था। और सबसे बड़ी बात भले ही हम साठ बसंत देख चुके थे पर तीस का दिखने का शौक था ।
जब तक हम घर में रहते ऐसा लगता अंग्रेजों ने हमें काला पानी की सजा दी है। जैसे ही कवि सम्मेलन का न्योता आता हम बैसाख में गधा जैसे हरिया जाते।
एक बार कवि सम्मेलन में जाने का न्योता आया हम हर बार की तरह पहुंच गए ब्यूटी पार्लर। जैसे ही हम अंदर गए ब्यूटी पार्लर वाली हर्षाई हमें देख मुस्काई। हमें उसकी कुटिल मुस्कान समझ ना आई।हमने कहा जल्दी से शुरू हो जाओ, हम आंख बंद किए लेटे थे। हमारी आंखों पर ककड़ी के दो गोल टुकड़े रख दिए थे। चेहरे के ऊपर परतों के ऊपर परते चढ़ाई जा रही थी। बालों की सुनहरी रेशमी घुंघराली लटे बनाई जा रही थी। रंगाई पुताई समाप्त होने के बाद जब हमें आईना दिखाया तो हम साठ से तीस के बन चुके थे।
हम तुरंत कवि सम्मेलन में जा पहुंचे ।कवि सम्मेलन में हम कविताएं सुना रहे थे ।सभी कवि गण हमारी तरफ देख मुस्कुरा रहे थे। हमारी फुहड़ता भरी कविताओं पर श्रोता खूब तालियां बजा रहे थे।और हम फूले नहीं समा रहे थे ।हमारा दिल फूलते फूलते गुब्बारे सा फट गया ।और हम चल बसे ।इस पंच तत्व से बने शरीर को छोड़कर ।
तुरंत हमें सूक्ष्म शरीर प्राप्त हो गया। दो भीमकाय काले रंग वाले ,सिर पर सींग धारण किए हुए पहलवान हमें रस्सी से बांधकर ले जाने लगे। हम प्रार्थना कर रहे थे ,हमें छोड़ दो, अभी हमने दुनिया कहां देखी है। लेकिन उन्होंने हमारी एक न सुनी।
बोले तुम्हारा समय समाप्त हो चुका है। तुम्हारी आयु पूर्ण हो चुकी है। घसीटते हुए हमें यमराज की सभा में खड़ा कर दिया। यमराज ने हमें देखा, फिर वही खाते में हमारा नाम ,फिर हमें देखा, फिर वही खाता और भ्रकुटि चढ़ा कर, भारी भरकम आवाज में अरे मूर्खो यह क्या अनर्थ कर दिया तुमने।
मैंने कहा था रामनगर के, रामलीला मैदान, में हो रहे कभी सम्मेलन, से रामादेवी साठ वर्ष को उठा कर लाना। तुम तीस वर्ष की किसी युवती को ले आए । यमदूत बोले महाराज हम रामनगर के रामलीला मैदान से कवि सम्मेलन से रामा देवी को ही उठा कर लाए हैं। वहां इस नाम की दूसरी महिला थी ही नहीं।
यमराज बोले अरे जल्दी इन्हें अपनी जगह पहुंचाओ ।उनके शरीर का दाह संस्कार ना हो जावे। यमदूत हमें घसीटते हुए तुरंत कवि सम्मेलन में छोड़कर भागे ।
और चले किसी दूसरे रामनगर में, रामलीला मैदान में, रमा देवी को ढूंढने।
हमने देखा हमारे परिजन हमें फूलों से सजाकर ले जाने की तैयारी कर रहे थे। हमारी तारीफों के पुल बांधे जा रहे थे।
हमारी आत्मा अपने शरीर में प्रवेश कर गई।
हमारे परिजन खुश हो रहे थे, हमें जिंदा देखकर और हमारी महानता का गुणगान कर रहे थे। हम मन ही मन ब्यूटी पार्लर वाली का आभार कर रहे थे ।जिसने अपनी कला से यमराज को भी धोखा दे दिया ।
तभी घर के पास बने मंदिर की घंटी बज गई और हमारी नींद खुल गई।
हेमलता राजेंद्र शर्मा मनस्विनी,साईंखेड़ा नरसिंहपुर मध्यप्रदेश