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साबरमती के संत

अब तो रह-रह के राजघाट कसमसाने लगा,              

मुझको साबरमती के संत तू याद आने लगा।

गूंथ कर हार भ्रष्टाचार के गुलाबों का,

तेरी तस्वीरों पै बेखौफ डाला जाने लगा।

तेरे चित्रों से छपे कागजों के टुकड़ों पर,

बड़े बड़ों का भी ईमान बेचा जाने लगा।

पहले कातिल बने फिर धनी फिर मसीहा बने,

ऐसे जन सेवकों का राजतिलक होने लगा।

चमचमाते हुए महंगाई के गहनों को पहन,

मेरा भारत महान विश्व में इतराने लगा।

क्या करेगा तू यहां आ के महात्मा गांधी,

तेरे बदले तेरे कातिल को पूजा जाने लगा।

-गीतकार-अनिल भारद्वाज एडवोकेट उच्च न्यायालय ग्वालियर

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