मैं जानता हूं
मैं जानता हूंँ कि बड़े- बड़े चट्टान हो जाते हैं मिट्टी- धूल। जब मानुष अपनी आलस, अपनी नाकामी को जाता है भूल। मिल जाता है लक्ष्य उसे बन जाता जब है वो कलाम। जब नहीं भीत होता है काँटों से बन जाता है मिसाल का नाम।…
मैं जानता हूंँ कि बड़े- बड़े चट्टान हो जाते हैं मिट्टी- धूल। जब मानुष अपनी आलस, अपनी नाकामी को जाता है भूल। मिल जाता है लक्ष्य उसे बन जाता जब है वो कलाम। जब नहीं भीत होता है काँटों से बन जाता है मिसाल का नाम।…
किस्तूरी आज बहुत चिढी़ हुई थी अपनी पडोसिन कमला से। उसकी सारी पोलपट्टी खोल दी। वो भी बाल्कनी से। मोहल्ले के सब लोगों ने भी सुन लिया होगा। जब से लाकडाउन में थोडी छूट मिली है, सभी अपने घर के बाहर कुर्सी डालकर चुगलियों का दबा पिटारा खोलने लगती हैं। जो उस समय वहाँ नहीं…
ग़ज़ल 1 हम उसे देख कर गए खिल से आँख में ख़्वाब भी हैं झिलमिल से आपका ख़त मुझे मिला लेकिन हाथ मेरे गए थे कुछ छिल से ख़ुद को उसके हवाले करके मैं दोस्ती कर रहा हूँ क़ातिल से मौत क्या रास उनको आएगी ज़िंदगी से फिरे जो ग़ाफ़िल से दर्द उसका वहाँ भी…
सेक्युलर मिश्रित आबादी वाले इस मुहल्ले का माहौल आज बेहद गर्म था । एक समुदाय के कुछ नौजवानोंने यह टिप्पणी कर दी थी कि पूरे देश में कोरोना का संक्रमण एक खास जमात के लोगों के गैरजिम्मेदाराना बर्ताव के कारण फैला है । यह बात दूसरे समुदाय के लोगों को बहुत नागवार गुजरी । देखते…
हाय ! बुढ़ापाजरा जोर की गति से, सब अंग हाल बेहाल ।शिथिल हुआ तन फिर भी, मन की चंचल चाल । ।इंद्रिया सभी थकित हो गई, रहती ममद की चाह ।लाठी लेकर बाहर जावे, तब ही चल पावें राह । बधिर यंत्र कानों में हैं, ऐनक नयनन मॉंहि ।नकली बत्तीसी है मुंह में, असली दन्तावली…
(सोनल सिन्हा फाउंडर – MyBhkFlat) इन दिनों पूरा विश्व कोरोना के संकट से जूझ रहा है। सच तो यह है कि विकसित और विकाशशील दोनों ही तरह के देश इसके शिकार हैं। यह किसी भी देश के लिए हरेक मुद्दे पर एक बहुत बड़ी परेशानी का सबब बन चुका है। आज दुनिया के तमाम अर्थशास्त्री…
अनुराधा प्रकाशन के संपादक श्री मनमोहन शर्मा जी की मैं दिल से सदैव ही अभारी रहूंगी जबसे उनसे जुड़ी हूं उनका व्यवहार हमेशा घर के सदस्यों जैसा ही रहा है, मेरे सुख दुख में वे सदैव ही जुड़े रहें , और अनुराधा प्रकाशन को एक परिवार का रूप से सभी को जोड़े रखा है.. अनेक…
1 क्या खोया ,क्या पाया अतीत के पन्नों को जब पलटा मैंने….तब देखा ,क्या खोया,क्या पाया….धोती-कुर्ता को छोड़,जींस-टाप क्या पहन लिया….चरण स्पर्श को छोड़,हाय-बाय को अपना लिया….दादी-नानी के रिश्तों को भुला दिया,व्हाट्सएप, फेसबुक, ट्विटर को अपना लिया…अतीत के…..अपने ही घर को मकान बना दिया,नयी दुनिया को अपना मुकाम बना लिया,समय को सपनों की दुनिया में…
1 कला प्रेमी उकेरता है – चित्र अपने कैनवास पर कला मर्मज्ञ… तलाशता है झुग्गियों में भूख / अभाव / मज़बूरी वह जानता है- यह उसका सौंदर्य बोध नहीं है लेकिन… बाज़ार का रुख उसे पता है यही भूख, अभाव और मज़बूरी साधन बनेंगी उसकी दो वक्त की रोटी और प्रसिद्धि का उसे यह भी…
तकदीर की लकीरें” कौन आज आया तकदीर का, दरवाजा खटखटाने बता दे मुझे। कैसी है ये दस्तक जिंदगी में, कोई तो बता दे मुझे। तकदीर की लकीरें अजीब है, कौन पढ़ें आज इनको यहाँ। लकीरों में उलझी तक़दीर मेरी, कोई तो बता दे मुझे। कौन है जो मेरी तकदीर के, दरवाजे पर आज है खड़ा।…