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हर धड़कन हो आरती वँदन

कविता मल्होत्रा (संरक्षक – स्तंभकार, उत्कर्ष मेल)

मीरा सा अरमान बनें, सब नई उम्मीदों का आसमान बनें

विषपन करके भी सोचें यही, हर साँस का इस्तेमाल कैसे हो

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लगभग दो वर्ष पूरे होने को आए, लॉकडाऊन का शाब्दिक अनुवाद नई सदी को परिभाषित करने लगा है।लेकिन तमाम महकमों की तालाबंदी के बावजूद भी अँतर आत्मा की महक पर कोई पाबंदी नहीं लगी है।जहाँ एक तरफ़ समस्याओं के भँडार हैं वहीं दूसरी तरफ़ समस्त समाधानों की कल्याणकारी योजनाएँ भी प्रचुर मात्रा में उपलब्ध हैं।

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परिंदे खुले अँबर में विचरते, क्यूँ मानव पिंजरों में सोने लगे

ताकि बाहरी शिक्षा पे रोक लगे व हर घर गुरूकुल होने लगे

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महामारी की भीषण परिस्थिति का सामना करते हुए आज समूचा विश्व डर कर अपने-अपने नीड़ बचाने की कोशिश कर रहा है।मानव सभ्यता की रीढ़ को बचाने के लिए यदि समूची मानव जाति अपनी संस्कृति का क़ायदा पढ़ कर अपनी ज़मीन से जुड़ने का प्रयास करे तो समूचा विश्व चिंताग्रस्त न होकर सदैव आनँद धाम का वासी हो सकता है।

केवल एक नज़रिए का ही तो फ़र्क़ है।ईश्वर ने मानव जीवन का उद्देश्य भूलने वाले लोगों का परिचय उनके उद्देश्यों से करवाने के लिए आज प्रकृति के तमाम इशारों को मानवता की दिशा दिखाई है।

कुछ तो बात है नयी सदी के नवीन विषाणु में जो समूचे विश्व को अपनी ग्रस्त में लेकर मानवता का क़ायदा पढ़ने को मजबूर कर रही है।भयातुर मानव जाति मँहगे से मँहगे चिकित्सा संस्थानों और चिकित्सक वर्ग को चढ़ावे चढ़ा कर अपना दामन इस भीषण महामारी की लपटों से बचाने का अथक प्रयास कर रही है। लेकिन प्राकृतिक आपदाएँ तो आती ही रब की रजा़ से हैं। जब प्रकृति के सँतुलन से मनुष्य अपने स्वार्थ के लिए छेड़छाड़ करता है तब प्रकृति भी नाराज़ होकर रौद्र रूप धारण कर लेती है और मनुष्य को उसकी औक़ात दिखाते हुए हदों में रहकर मानव जीवन का उद्देश्य पूरा करने का निर्देश देती है।

प्रकृति की कोई ज़ुबान नहीं होती, केवल इशारे होते हैं जिन्हें अनदेखा करने का परिणाम समूची मानव जाति के सामने है।ताज्जुब तो इस बात पर होता है कि अपने ही कृत्यों का दायित्व उठाने की बजाय मानव एक दूसरे पर दोषारोपण करने लगता है और खुद को सही साबित करने की दौड़ में अपने ही ज़मीर को दाँव पर लगा देता है।

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जब अपने ही सिक्कों में खोट हो तो बाज़ार में चलें कैसे

जब अपनी ही करनी भ्रष्ट हो तो आनंदानुभूति में ढलें कैसे

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दौलत तो जग में सभी कमा लेते हैं लेकिन सम्मान कमाना हर किसी के नसीब में नहीं होता। नसीब कभी बिकाऊ नहीं होता, इसे केवल कर्मयोगी ही कमा सकते हैं।लेकिन दौलत के दम पर महामारी के प्रकोप से बचने की कोशिश करने वाले आज भी चिंताग्रस्त हैं, क्यूँकि महामारी के इस काल में मृत्यु ने वर्ग भेद, उम्र और जात-पात के तमाम फ़लसफ़ों को रद्द कर दिया है।कहीं रोज़गार नहीं रहे तो कहीं परिवार ही नहीं रहे।लेकिन चिंता नामक डाकिनी ने मानव जाति की मानसिकता पर सेंध लगाकर हड़कंप मचा रखा है।

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चिंता ऐसी डाकिनी, काटि करेजा खाए

वैद्य बिचारा क्या करे, कहाँ तक दवा खवाय

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यदि स्वस्थ मानव देह किसी विशेष विषाणु के कारण रोगग्रस्त होती है तो उसकी चिकित्सा संभव है लेकिन यदि मानव सभ्यता अपनी स्वार्थ पूर्ति के लिए दिशा भ्रमित होती है तो कोई वैद्य उसका इलाज नहीं कर सकता।

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आनँदित वो कैसे हो पाए जो खून औरों का पिए

जीना तो उसी का जीना है जो मानव सेवा में जिए

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विषाक्त मानसिकता को बदल कर अनासक्त प्रेम का हुनर सिखाती परिस्थितियाँ आज मानव जाति का दिशा निर्देश कर रहीं हैं।ये अपने आप में एक सुखद संयोग है जो मानव जाति की मानसिकता को रूपांतरित करने में सक्षम है।

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मानव जीवन के उद्देश्यों की पूर्ति के लिए अनासक्त प्रेम का संकल्प ही काफ़ी है।अपनी शेष धड़कनों की आहुति जीवन यज्ञ में डालते हुए, हर चिंताग्रस्त हृदय के लिए, हर कोई नई उम्मीदों के आसमान तक सीधी सीढ़ी लगाने की अर्ज़ी लगाए, तो रब की इनायतें उसे कुबूल ही लेंगी, ऐसा मेरा पुख़्ता विश्वास है।

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नई उम्मीदों का आसमान बनें

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माँग कर नहीं बाँट कर पेट भरें

रब की रज़ा से मिली ताल जैसे हो

दिलों से नहीं रूहों से जोड़ें रिश्ते

नम आँखों से भीगा रूमाल जैसे हो

निरुद्देश्य जीवन कैसे निकल जाने दें

शिशु की नाभि से कटी नाल जैसे हो

ज़िक्र की हद से परे है कर्म ए ताल्लुक़

रूह की तलब पर खुदा दयाल कैसे हो

नई सदी का नया विषाणु क़त्ल पर उतरा

तुम ही कहो कातिल का इस्तक़बाल कैसे हो

ए रब तू ही हर ज़मीर का आसमानी क़तरा बने

माटी की कोरी काया पर हर रूह का जमाल जैसे हो

मिट्टी की देह भले छूट जाए मगर तुझसे नेह कभी न टूटे

हर रूह राधा बने,और हर सोच यशोदा के नंदलाल जैसे हो

ममता कभी किसी लेबल की मोहताज़ नहीं होती

वात्सल्य जिसकी ज़मानत, हर जीवन उस ख़्याल जैसे हो

मीरा सा अरमान बनें, सब नई उम्मीदों का आसमान बनें

विषपन करके भी सोचें यही, हर साँस का इस्तेमाल कैसे हो

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