बेटियों पर बढ़ती दरिंदगी, आखिर समाज को हो क्या गया है ? यह प्रष्न तो अब स्वाभाविक रूप् से सामने आने लगा है । व्यक्ति इतना दरिंदा भी हो सकता है ? समाज के इस घिनौने रूप् की कभी कल्पना भी किसी न की होगी । एक के बाद एक घटनायें घटती जा रही हैं और हम असहाय से केवल अपना दर्द ही बांट पा रहे हैं । पिछले साल मणिपुर में दो महिलाओं को नग्न कर उनके साथ की गई दरिंदगी के समाचार सामने आए थे और अब कलकत्ता से लेकर महाराष्ट्र तक ऐसी घटनायें सामने आ रहीं हैं । महाराष्ट्र के बदलापुर में तो दो छोटी बच्चियों के साथ घिनौनी हरकत की गई और कुछ ही दिनों के बाद रत्नागिरी में एक नर्सिंग छात्रा को बेहाषी भरा पानी पिलाकर ज्यादती की गई । कलकत्ता की घटना से ही अभी कोई उबर नहीं पाया है, फिर ऐसी अन्य घटनायें झकाझोर देने के लिए र्प्याप्त हैं । राजस्थान में भी एक नाबालिग बच्ची के साथ गैंगरेप किया गया । कितना पतन हो चुका है आम व्यक्ति का जिसे बेटियों के दर्द से कोई मतलब नहीं है, जिसे अपने राक्षसीकृत्य पर पछतावा नहीं है । कलकत्ता के गुनाहगार पकड़े तो गए पर उस घटना की पूरी हकीकत खोजने में सीबीआई अभी तक कामयाब नहीं हो पाई है । आरके मेडिकल कालेज की बंद पड़ी दबी परतें खुल रहीं हैं । इतना गडबड झमेला और इतने सालों से, जबाबदारी तो शासन प्रषासन दोनों को लेना ही पड़ेगा । 9 अगस्त जब घटना सामने आई तब से अभी तक निरंतर आन्दोलन भी जारी हैं और धरना प्रदर्षन भी । विपक्ष को ममता सरकार के खिलाफ एक मुद्दा चाहिए था तो मिल गया । उसने इस घटनाक्रम के माध्यम से राज्य सरकार के खिलाफ विरोध के स्वर मुखरित कर दिए हैं । वैसे यह मुद्दा तो उठना ही चाहिए था क्योंकि यह हमारी बेटियों कह सुरक्षा के साथ जुड़ा है । मेडिकल कालेज के छात्र और देष भर के डाक्टरों ने भी अपना आक्रोष व्यक्त किया है । क्यों न करें आखिर बच्चों के भविष्य का सवाल जो है । यदि बटियां उस संस्थान में भी सरुक्षित नहीं हैं जहां वो पढ़ाई कर रहीं हैं या नौकरी कर रहीं हैं तो फिर चिन्ता का बिन्दु तो होगा ही । वे अभिभावक जो अपने बच्चों के भविष्य बनाने के लिए सब कुछ दांव पर लगा देते हैं उन्हें तो चिन्ता होगी ही । चिकित्सकीय पेषा तो समाजसेवा से जुड़ा है, हम चिकित्सक को भगवान का दर्जा देते हैं और उनके साथ ही हैवानियत……ओफ…..वैसे तो हैवानियत किसी के साथ भी हो हमारे लिए तो गुस्से का कारण होगी ही । जो दरिंदे हें वे भी हमारे समाज से ही निकल कर सामने आ रहे हैं । तो हम किस पर भरोसा करें ? ऐसा तो नहीं कहा जा सकता कि समाज भरोसे लायक नहीं बचा……..इस समाज से ही वे लोग भी हैं जो अपना आक्रोष व्यक्त कर ऐसी घटनाओं की निंदा कर रहे हैं । बदलापुर में विषाल जनसमूह ने अपने गुस्से का इजहार किया । जब हमारी रक्षा करने वाली प्रणाली दूषित दिखाई देने लगे तो हमें आन्दोलन तो करना ही पड़ेगा और क्या कर सकते हें हम । बदलापुर का जनमानस भी उद्वोलित हुआ, पष्चिम बंगाल का भी और रत्नागिरी का भी । आरोपी तो पकड़े गए और पकड़े भी जाते रहेगें पर इस वीभत्स मानसिकता पर विराम लगाने के प्रयास किए जाने आवष्यक है । उत्तरप्रदेष में एक व्यक्ति पकड़या जो महिलाओं के साथ घिनौनी हरकत करता था । प्रदेष कोई भी दूषित मानसिकता वाले दुष्ट हर जगह मिल जाते हैं । महारष्ट्र की वो अबोध बालिकायें जो कुछ समझती ही नहीं हैं उनके साथ की गई हैवानियत कोई भी सभ्य समाज कैसे बरदाषत करेगा । विगत कुछ वर्षों में ऐसी कितनी ही घटनायें हमारे सामने आ चुकी हैं, राजस्थान के उदयपुर में एक स्कूली छात्र को उसके ही सहपाठी ने चाकू मार दिया जिससे उसकी मौत हो गई । यह घटना भी चिंतनीय है । अबोध बालकों में हिसांत्मक भावों के आना समाज के बदलते रूप का ही परिणाम है । हमने अमेरिका जैसे देषा में सुना हैं कि वहां के स्कूल के छात्र बंदूक से गोलबारी कर देते हैं पर हमारे देष में ऐसी घटना संभवतः पहली बार ही सामने आई है । घटनाक्रम के बाद उदयपुर में जो हिंसा हुई और लोग आक्रोषित हुए और सारा शहर अस्त-व्यस्त हो गया । अच्छी बात यह है कि समाज अब मूक दर्षक नहीं रहता वह अपनी प्रतिकिया व्यक्त करता ही है । उदयपुर से लेकर भीलवाड़ा तक तनाव बना और जनसमूह ने अपना आक्रोष व्यक्त भी किया । वैसे भी हर बार समाज अपना आक्रोष व्यक्त करता है पर घटनायें थम कहां रहीं हैं । समाज को जागरूक करने के प्रयास किए जाने जरूरी हैं । चंपई सोरेन के साथ बिहार जैसी पटकथा दोहराई जा रही है । नीतिष कुमार ने अपने ऊपर आरोप लगने के बाद जीतनराम मांझी को संभवतः यह सोचकर मुख्यमंत्री बना दिया था कि वो सीधे सच्चे और उनके साथ गहराई से जुड़े नेता हैं । बाद में उन्हें अलग कर नीतिष कुमार फिर मुख्यमंत्री बन गए पर जीतनराम मांझी बुरा मान गए और फिर अलग पार्टी बना ली अब वो उनके समानान्तर एनडीए में साथ बैठकर राजनीति कर रहे हैं । लोकसभा में वे अपनी पार्टी के इकलौते सांसद हैं फिर भी वे केन्द्र में मंत्री हैं । लगभग यही घटनाक्रम झारखंड में दोहराया जा रहा है । हेमंत सोरेन को जेल जाना पड़ा तो उन्होने अपना विकल्प अपने नजदीक के पारिवारिक नेता चंपई सोरेन को अपना उत्ताराधिकारी बना दिया । चंपई सोरेन राष्ट्रीयस्तर पर बहुत बेहतर ढंग से नहीं पहचाने जाते थे । हेमंत सोरेन को विष्वास था कि उनकी अपनी कोई महत्वाकांक्षा नहीं होगी । वे मुख्यमंत्री बन गए, कुछ महिने तक इस पद पर रहे और इंडिया गठबंधन में अपनी सक्रियता भी दिखाते रहे । हमंत सोरेन जब जमानत पर जेल से बाहर आए तो उन्होने उन्हें अलग कर स्वंय मुख्यमंत्री पद की कुर्सी पर दोबारा काबिज हो गए । जाहिर है कि चंपई सोरोन को यह अच्छा नहीं लगा होगा तो अब वे विद्रोह की भूमिका में आ गए ।वे तो फिलहाल भाजपा में जा रहे हैं पर इतना तो तय हो चुका है कि झारखंड की राजनीति में अब यह एक नया नाम जुड़ चुका है जीतनराम मांझी के तरह । वैसे हमंत सोरोन को उन्हें मुख्मंत्री पद से अलग नहीं करना था क्योंकि वे अभी केवल जमानत पर हैं और दूसरे झारखंड में विधानसभा के चुनाव भी होने हैं । चुनाव तक यदि चंपई सोरेन को मुख्यमत्री बनाए रखा जाता तो झारखंड मुक्ति मोर्चा के लिए भी बेहतर होता और हेमंत सोरेन चुनाव की तैयारी कर लेते । पर ऐसा हुआ नहीं, उल्टे उनकी पार्टी को ही झटका लग गया । चंपाई सोरेन बुजुर्ग नेता हैं और अलग झारखंड राज्य बनाने के आन्दोलन में अहम् भूमिका निभा चुके हैं अब तो वे पूर्व मुख्यमंत्री भी हो चुके हैं । उनके जाने से हेमंत सोरेन को कुछ न कुछ नुकसान अवष्य ही होगा भले ही भाजपा को ज्यादा फायदा न हो । भाजपा में कभी बाबूलाल मरांडी बड़ें नेता हुआ करते थे, फिर वे भाजपा से अलग हो गए, वर्षों तक वे अलग ही रहे हांलाकि वे अब फिर भाजपा में आ चुके हैं पर इसके बाद भी वे अपनी पुरानी स्थिति में दिखाई नहीं दे रहे हैं । चंपई सोरेन को भी ऐसा ही महसूस होगा यदि उनके आने से भाजपा को झारखंड में लाभ नहीं मिला तो वे हाषिए में भी जा सकते हैं । देष की राजनीति अभी बदलाव के दौर से गुजरती महसूस हो रही है । लोकसभा के चुनावों में जिस तरह भाजपा का कम सीटें मिलीं उससे विपक्ष के हौसेले तो बुलंद हैं और परिवर्तन का सूचक भी हैं । आने वाले दिनों में कुछ राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं, ये चुनाव परिवर्तन को रेखांकित कर सकते हैं । यदि भाजपा को इन राज्यों में नुकसान हुआ तब तो तय ही हो जाएगा कि अब बदलाव का दौर आ चुका है । हरियाणा और जम्मूकष्मीर में तो चुनाव की प्रक्रिया प्रारंभ हो ही चुकी है बाकी राज्यों में भी शीघ्र हो जाएगी । रूस-यूक्रेन युद्ध अभी चल रहा है किसी को उम्मीद नहीं थी कि यह युद्ध इतना लम्बा चलेगा । नाटो देष और अमेरिका ने इस युद्ध को लम्बा करने में मदद की । परदे के पीछें से अमेरिका ही युद्ध लड़ रहा है । यूक्रेन अब रूस के अंदर घुसकर हमले कर रहा है । प्रधान मंत्री जी मोदीजी ने यूक्रेन की यात्रा भी की । यह इस कारण से महत्वपूर्ण हो गई है कि वे हाल ही में रूस की यात्रा करके आ रहे हैं जाहिर है कि राष्ट्रपति पुतिन से उन्होने इस मसले पर बात तो की ही होगी । इसके बाद वे यूक्रेन गए । भारत ही एक मात्र ऐसा देष विष्वपटल पर दिखाई दे रहा है जो किसी के साथ न रहते हुए तटस्थ की भूमिका में है । रूस तो भारत का स्वाभिवक मित्र है और उसने भारत के साथ मित्रता निभाई भी है । वहीं भारत की विदेष नीति ने इसे विष्वपटल पर गुरू की भूमिका में लाकर खड़ा कर दिया है । यूक्रेन-रूस के युद्ध में क्या हालात होने वाले हैं यह तो कोई बयां नहीं कर सकता पर इतना तय है कि अब युद्ध तेज होकर सिमटने की स्थिति में आने वाला है । भारत ने अपनी भूमिका को भी प्रदर्षित कर दिया है । भारत के प्रधानमंत्री ने न केवल रूस के राष्ट्रपति से बात की वरन अमेरिका के राष्ट्रपति से भी बात की जाहिर है कि भारत युद्ध के खत्म होने की संभावना पर ही काम कर रहा होगा । एक युद्ध इजरायल औ फिलिस्तन के बीच भी चल रहा है । इसमें भी भारत की कूटनीति अलग है । बहरहाल विष्व पटल अभी शांती नहीं है । विषेषज्ञ विष्व युद्ध की संभावना भी व्यक्त कर रहे हैं यदि ऐसा हुआ तो यह मानव जीवन के लिए खतरनाक ही साबित होगा । देष के कई प्रदेषों में बाढ़ के हालात बने हुए हैं जो चिन्तनीय है । प्रकृति अपना रौद्र रूप् दिखा रही है और हम असहाय बने हुए हैं । गुजरात, राजस्थान से लेकर कई राज्यों में बाढ़ के हालात बेकाबू होते दिखाई दे रहे हैं । बाढ़ से अधिकतर गरीब आदमी ही सबसे ज्यादा प्रभावित होता है जो इस बार भी हो रहा है । अभी बरसात का मौसम है तो पानी तो बरसेगा ही । हम कितने सतर्क हैं यह महत्वपूर्ण होगा । दिल्ली के हालात भी कष्टदायक बने हुए हैं । बरसात का पानी को बहने में दिक्कत होती है तो वो सड़कों पर जमा हो जाता है । सघन कालोनियां बन गईं हैं और पानी की निकासी के पर्याप्त साधन उपलब्ध नहीं है तो फिर पानी तो ऐसे ही बहेगा । यह सही है कि बरसात तो कुछ ही दिनों की रहती है पर ये कुछ दिन आम आदमी के बाकी के दिनों को खत्म कर देता है । इस दिषा में ठोस प्रयास नहीं हो पा रहे हें । पूर्व प्रधानमंत्री श्री अटलबिहारी जी बाजपई ने नदियां जोड़ने की योजना बनाई थी पर वह पूरी नहीं हो सकी । यदि नदियां एक दूसरे से जुड़ जाती हैतब हो सकता है कि बाढ़ से कुछ राहत मिल जाए । पर अभी तो इसकी कोई योजना नहीं बन पा रही है ।