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अप्रेल फूल बनाया…… !

अब अप्रेल फूल कोई नहीं बनाता । पहले तो एक दिन निर्धारित कर दिया गया था कि केवल इसी दिन किसी को भी कोई भी अप्रेल फूल बना सकता है । इसी कारण से ही एक अप्रेल को लोग सतर्क हो जाते थे और कोषिष करते थे कि वे अप्रेल फूल न बन पाएं । पर अब केवल एक दिन के समय को विस्तृत् कर दिया गया है अब तो आप सालभर सतर्क रहे आएं तो भी अप्रेल फूल जैसा कुछ तो हो ही जाता है । यही कारण है कि अब आम व्यक्ति को ध्यान में भी नहीं रहता कि एक अप्रेल को ‘अप्रेलफूल’ दिवस होता है । जिसे जब लगे अप्रेल फूल बना दो । चुनाव के आते ही नेता अपनी ही पार्टी के लोगों को अप्रेलफूल बनाने लगते हें । उनकी आत्म एकाएक चिंघांड़ने लगती है कि तू गलत पार्टी में है । वे अपनी पार्टी के लोगों को और अपने को वोट देने वाले मतदाताओं को  अप्रेल फूल बनाकर दूसरी पार्टी में चले जाते हैं । आम जनता को सोषल मीडिया से पता चलता है कि उनके भैयाजी अब उस पार्टी में नहीं रहे जहां रहने के लिए उन्होने उन्हें वोट दिया था । सोषल मीडिया तो अब आई है पहले तो आम मतदाता को तब ही पता चलता था जब भैयाजी दूसरी पार्टी का गमछा गले में डाल कर उनसे पीले वाली पार्टी की बुराई करते हुए वोट मांगने आते थे । मतदाता कुछ देर तक तो हैरान परेषान सा रहा आता था बताओं भैयाजी को कजन का हो गओ बहकी-बहकी बातें करने लगे हैं फिर भैयाजी का मुख्य चमचा उन्हें समझाता था कि भैयाजी अभी तक जिस पार्टी में थे वो पार्टी बेकार थी विकास ही नहीं कर रही थी इसलिए भैयाजी ने आपकी खातिर पार्टी ही बदल ली अब ये नई पार्टी के माध्यम से विकस करेगे । अमा जनता पांच साल तक  विकास की राह देखती रहती है पर विकास कहीं दिखाई नहीं देता वो समझ जाता है कि उसे अप्रेल फूल बना दिया गया है । लोकसभा चुनाव का श्ांखनाद हो चुका है । इतनी जारे से शंखनाद हुआ है कि चारों ओर केवल शोर ही शेर सुनाई दे रहा है । पार्टियां तो सालभर से तैयारी में लगी हुई थीं पर उन पार्टियों के नेता इंतजार कर रहे थे कि कब ये तय हो जाए कि उन्हें टिकिट मिल रही है कि नहीं । मिल गई तो यह पार्टी के जिन्दाबाद के नारे लगायें जायेगें नहीं तो दूसरी पार्टी जो उन्हें टिकिट दे देगी उसके जिन्दाबाद के नारे लगायेंगें । उनके लिए चुनाव लड़ना अमि महत्वपूर्ण होता है । वे समझते हैं और जानते हैं कि उनके चुनाव लड़ने से ही लोकतंत्र जिन्दा रह सकता है सो वे चुनाव लड़ने के लिए किसी भी पार्टी का गमछा अपने गले में डालने के लिए तैयार हो जाते हैं । लोकसभा चुनाव में पार्टी बदलने का सिलसिला इतना गतिषील है कि पार्टियों के बड़े नेता गमछा पहना-पहना कर थक चुके हैं अब उन्होने अपने से दूसरी पंक्ति के नेताओं की डूयटी लगा दी, दूसरी पंक्ति के नेताओं ने थकहार कर तीसरी पंकित् के नेताओं की डयूटी लगा दी ‘‘भैया अब तुम ही इनके गले में गमछा डालो’’ । कभी राषन दुकानों में राषन लेने वालों की लम्बी कतारें हुआ करती थीं ऐसी ही कतारें अब भाजपा के कार्यालय के सामने लगी दिखाई दे रही है । उनके गले में मुस्कुराते हुए गमछा डाला जाता है फिर उन्हें किनारे कर दिया जाता है । अब यह मान लो कि वे इस पार्टी में ऐसे ही किनारे में खड़े रहेगें । उनका पार्टी बदलना केवल पुलिस वाले को धमकाने के ही काम आने वाला है बाकी तो उनका कोई वर्तमान दिखाई दे रहा है और न भूत । समुद्र में मिलने वाली किसी भी नदी का जल अस्तित्वहीन हो जाता है वैसे ही भाजपा जैसी पार्टी में किसी भी पार्टी से जाने वाला नेता अस्तित्वहीन ही दिखाई देता है । इसके बावजूद भी कतार छोटी नहीं हो पा रही है । कांग्रेस बेचारगी का भाव लिए खड़ी है । वो भी कभी समुद्र हुआ करती थी, नदी नाले उसमें आकर मिलते थे और धन्य हो गए के भावों को ग्रहण करते थेपर अब समय बदल गया है कि अब कांग्रेस से निकलने वाले नेताओं का स्थाई पता भाजपा कार्यालय हो चुका है । वैसे ही अब उनके सीधे नाम से डाक नहीं आयेगी उन्हें ‘‘द्वारा‘‘  लिखकर ही डाक मंगवाना पड़ेगी । मकान बदलने से पता की दिक्कत तो होती ही है । बहरहाल चुनाव चल रहे हैं और ठिकिट बंट रहीं हैं । सभी को टिकिट कोई भी पार्टी नहीं दे सकती जिनको टिकिट नहीं मिलेगी वह दूसरे द्वार खटाटायेगा ।  उसे अपने मतदाता से पूछने की जरूरत नहीं है कि हम इस पार्टी से नहीं फलां पार्टी से चुनाव लड़ लें क्या ? मतदाता को तो अप्रेलफल बना दिया जायेगा बेचारा ही होता है मतदाता । तमिलनाडू के एक नेता जो वर्तमान में सांसद है उन्हें टिकिट नहीं मिली तो उन्होने आत्महत्या क ली । यह तो दुखद है हम बच्चों को समझाते हैं कि यदि फेल हो भी गए तो क्या हुआ अगलीबार पास हो जाओगे पर नेताओं को कौन समझाए कि भैया पार्टी ने तुम्हें इतना कुछ तो दिया है फिर इस बार नहीं मिला तो खिन्न क्यों हो रहे हो । मध्यप्रदेष के बढ़े कांग्रेसी नेता है सुरेष पचौरी पार्टी ने उन्हें चार बार राज्यसभा का सदस्य बनाया वो इसलिए कि उनके पास लोकसभा चुनाव लड़ने की ताकत ही नहीं थी, दो बार केन्द्र में मंत्री बनाया पर फिर भी वे कांग्रेस छोडत्रकर भाजपा में शामिल हो गए इसे बोलते हैं एहसान फरामोष होना और मजे की बात यह है कि नई पार्टी का नया गमछा पहनकर पीछे की कतार में बैठा दिए गए । हर नेता को जीवनभर कुछ न कुछ चाहिए ही होता है, यदि एक बार भी कुछ न मिले तो उनकी अंतरात्मा चीत्कार करने लगती है । कांग्रेस से भाजपा में जाने वाले ज्यादातर नेताओं की स्थिति यही है । अ्रपेल फूल बनाने का सिलसिला तो हर पार्टी में चल रहा है । समाजवादी पार्टी ने अपने टिकिट बांटे जिसे टिकिट मिला उसने नया कुरता-पायजामा सिलवा लिया फिर एक दिन उसे पता चला कि उसे तो अप्रेलफूल बना दिया गया है किसी और को उनकी जगह टिकिट दे दी गई है । कांग्रेस की हालत तो और भी खराब है ऐसा बताते हैं कि पार्टी टिकिट हाथों में लिए घूम रही है कि ‘‘भैया आप चुनाव लड़ेगें क्या ?’’ पर कोई तैयार ही नहीं हो रहा है वैसे ऐसी स्थिति किसी एकाध राज्य में ही होगी पर चर्चा तो चर्चा है । लोग कांंग्रेस के नेताओं को फोन लगाकर अप्रेलफूल बना रहे हैं ‘‘बधाई आपको कांग्रेस ने अपना उम्मीदवार बनाया है’’ । चुनाव है और अ्रप्रेल का महिना भी है एक अप्रेल आने के पहले से ही खुमारी चालू हो चुकी है । ममता बनर्जी घायल हो गई अपने ही घर में । पिछले विधानसभा चुनाव के समय उनके पैरों मे ंचोट लग गई थी और वे अपने पैरों पलास्टर बांधे प्रचार करती रहीं । वे विधानसभा का चुनाव जीती भी । इस बार भी वे घायल हो गई  लोगों का माथा ठनका ‘‘अरे इसकी जांच कराओ’’ । उन्हें लगा कि उन्हें अप्रेल फूल बनाया जा रहा है । पर माथे पर तो चोट साफ दिखाई दे रही है बल्ड निकलता भी दिखाई दे रहा है फिर ऐसी शंका क्यो ? गठबंधन से जुड़ी पार्टियां भी एक दूसरे को अप्रेलफूल बना रही हैं । इंडिया गठबंधन के नेता सबसे ज्यादा परेषान हैं उन्हें लगता है कि उन्हें सबसे अिक अप्रेल फूल बनाया जा रहा है । कांग्रेस केवल सोचती है कि फलां लोकसभा सीट से वो अपना उम्मीदवार उतारेगी इसके पहले ही गठबंधन की दूसरी पार्टी वहां अपना उम्मीदवार ही घोषित कर देती है जिसको चुनाव लड़ना है वह अप्रेल फूल बनाये जाने से तिलमिला उठता है । महिने भर से यह खेल चल रहा है । एनडीए गठबंधन में तो अमितषाह जी के दबदबे के कारण कोई अ्रप्रेलफूल नहीं बना पा रहा है बल्कि इस गठबंधन में शामिल दल ही अ्रप्रेल फूल बन रहे हैं ।  गठबंधन में जिसे आना है आ जाओ पर शर्त हमारी होगी और आदेष भी हमारे ही होगें । उन्हें स्वीकार करना ही पड़ता है । दबदबा तो ऐसा ही होना चाहिए । कांग्रेस तो अपने अस्तित्व को बचाने के लिए संघर्ष कर ही रही है वह हर राज्य में अपने गठबंधन के साथियों के सामने झुक रही है, वह कम से कम सीटों पर भी चुनाव लड़ने तैयार हो रही है इसके बाद भी उसे लगता है कि वह अप्रेल फूल बन रही है । अप्रेल फूल का घेरा तो आम आदमी पार्टी पर भी लगा हुआ है । अरविन्द केजरीवाल अप्रेल फूल के षिकार हुए अभी तो वे कस्टेडी में है फिर वे जेल में भी होगें । उनका अप्रेल फूल लम्बा चलने वाला है । इसकी भनक उनको थी । वे बार-बार इसे टालने की कोषिष कर रहे थे पर संकट कभी टलते हैं क्या । मार्च आते-आते अप्रेल फूल बन ही गए । नवम्बर में अप्रेल फूल बनते तो अच्छा नहीं लगता तो वो मार्च के महिने में बने । अब वे कस्टेडी से सरकार चला रहे हैं यह भी अप्रेल फूल बनाने जैसा ही है । उनके मंत्री देर से एक कागज दिखा कर बताते हैं कि मुख्यमंत्री केजरीवाल ने कस्टेडी में रहते हुए भी दिल्लीवासियों की चिन्ता करना नहीं छोड़ा है और वहां से ही आदेष जारी किया है । भाजपा के माथे पर बल पड़ गए भला ईडी की कस्टेडी से कोई कैसे आदेष जारी कर सकता है । भाजपा को लगने लगा कि केजरीवाल या उनकी पार्टी लोगों को अप्रेल फल बना रही है । वैसे भी अरविन्द केजरीवाल के जो पत्र दिल्ली सरकार के मंत्री दिखा रहे हैं वे आदेषनुमा नहीं होते वे तो सुणावनुमा होते हैं । हो सकता है कि केजरीवाल जी ने कुछ खाली कागज छोड़ दिए हो और उनमें वास्ते लिखकर प्रचारित किया जा रहा हो ं । भाजपा को तो कम से कम यही लग रहा है । यह सिलसिला लम्बा चलने वाला है । सुप्रीमकाअर् ने इलेक्ट्रिक बांड के मुद्दे को सार्वजनिक करने का अदेष दे दिया । एसबीआई ने कम से कम दो बार सुप्रीम कोर्ट को अप्रेल फूल बनाने की कोषिष की पर वो कैसे बन सकता है सो अब एसबीआई खुद ही अप्रेल फूल बन गई जिसे वे छिपाना चाहते थे उसे उजागर करना पड़ा । जो उजागर किया गया उसे देखकर तो ऐसा लगा कि आम व्यक्ति के साथ अप्रेल फूल बनाने का सिलसिला लम्बे समय से चल रहा है । राजनीतिक दल कोई भी हों आम जनता को तो वे सालों से अप्रेल फूल बानते आ रहे हैं । अभी तो इन इलेक्ट्रिक बांडों की समीक्षा सामने आयेगी तो हैरानी में मुंह ही खुले रह जायेगें ‘अरे भैया अप्रेल फूल’’ मे तो छोटे-छोटे मजाक किए जाते हैंइतना बड़ा मजाक तो अप्रेल फूल की कैटेगिरी में आता ही नहीं है । धन कैसे बटोरना चाहिए इस पर ऐसे राजनीतिक दल मास्टरी हासिल कर चुके हैं वे तो एकाध किता ही छपवा लें उनके तरीके आम लोगों कें लिए भी बहुत काम आयेगें । आम व्प्यक्ति तो होली का चंदा भी नहीं ले पाता और ले भी लिया तो एक सौ एक से ज्यादा नहीं ले पाता यहां तो करोड़ों रूपओं का चंदा ऐसे ले लिया गया मानो ग्यारह रूप्ए बगैर रसीद के ले लो वाली स्टाइल हो । एक पत्रकार बड़ी-बड़ी कंपनियों से विज्ञापान नहीं ले पाता पर राजनीतिक दल उनसे करोड़ों रूप्ए ले लेते हैं । राजनीतिक दलों के पास एक चाबुक होता है जिसकी कर्कष आवाज ही चिलित कर देती है उोगपतियों को तो उनकी थैली खुल जाती है ‘‘और ले लो…और….सब आपका ही है’’ । ऐसा नहीं करेगें तो किसी दिन उनके घर की तलाषी हो जायेगी और फिर नए सोफा को भी उधेडत्रकर नोटों की गिड्डियां सामने निकाल ली जायेगीं ‘‘तेरा तुढ को अर्पण क्या लागे मेरा’’ के भावों के साथ वे दीवाल में चुनी गई नोटों की गड्डियों में से कुछ गड्डियां निकालकर बैंक चले जाते हैं और बां खरद ले लेते हैं ‘‘ये फलां को…ये उनको…और ये उनका भी जिनका नहीं लगता’’ । उन्हें तो यही मालूम था कि कानून है कि कोई बांड की जानकारी लींक नहीं करेगा तो निर्भीक होकर ब्लेक मनी या व्हाइट मनी का दान करते चलो पर फिर एक दिन सुप्रीम कार्ट का हंटर घूमा तो सारा रहस्य बाहर आ गया अब सब अपने अपने जबाव बनाने में लगे हैं । आम व्यक्ति को तो समझने में वक्त लगेगा पर जिनको समझ में आ गया है वे भी मौन धारण करे हैं । इन सारी परिस्थितियों में केवल आम जनता ही अप्रेल फूल बन रही है और वह निरंतर बनती ही रहेगी ।

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