दिनेश कपूर
Alan Cambell और Johnson, काफी हद तक माउंटबैटन के अबुल फजल थे। हालांकि उतने करीब नहीं थे कि उसके गुसल की भी खबर लिखते। press attaché थे और अपने अंग्रेज आका की मीटिंग्स और appointments की में की गई गुफ्तगू के बारे में नोट्स लिखते और उसे दिखाते। एक तो ये dual लेखक जो ऊपर तस्वीर में सबसे पीछे बैठे हैं, जिन्होंने अपने नोट्स और मिनट्स मिला कर एक किताब लिखी मिशन विद माउंटबैटन. और दूसरे आजादी के बाद हुए dual लेखक Larry Collins aur Dominique La-Pierre. इन दोनों लेखक जोड़ों ने मुझ जैसे इतिहासकार और रंगमंची पर बड़ी कृपा की है। यूंकि इतना तथ्यात्मक विवरण हमें और कौन दे सकता था। इन हजरात का कमाल देखने काबिल है। इन्होंने उन सभी खिलाड़ियों को पोट लिया जिन्होंने आजादी के संघर्ष के मंच पर बेहतरीन और भावपूर्ण रोल अदा किया था। और जो जिंदा थे। ये दोनों सभी से मिले जैसे माउंटबैटन, प्यारेलाल नय्यर, सुशील नय्यर और अनेक राजनीतिज्ञ। सबसे इम्पॉर्टन्ट हैं उनके रिकॉर्डिड बयान उन्ही के मुंह से जिन्होंने गांधीजी की हत्या की थी। और उन्हे अपनी किताब फ्रीडम एट मिड्नाइट में छापा। किताब में जिन्ना का नहीं बल्कि गांधीजी का इतना गुणगान किया कि किताब पाकिस्तान में बैन कर दी गई।
माउंटबैटन के आकर्षण के बारे में कहा जाता था कि वह एक चील को अपनी बातों के जाल में बाँध कर उसके पंजों में जकड़े पक्षी को मुक्त करा सकता था. फिर गांधीजी क्या थे। 4 जून 1947 को उसने गांधीजी को बातों में उलझा कर उन्हे मजबूर कर दिया बटवारे को अपनी मौन स्वीकृति देने के लिए। वैसे भी उस दिन उनका मौन वृत चालू था। पर इन बातों को विस्तार से करेंगे किसी सही प्लेटफॉर्म पर। अभी तो आप एक सच्चा किस्सा सुनिए।
एक बार माउंटबैटन, सरोजिनी नायडू से हल्के मूड में गांधीजी की सादगी और उनके गरीब ढंग से रहने के बारे में बात कर रहा था। आजकल के नेताओं और वकीलों की तरह टॉप के लीडर्स आपसी मतभेद के बावजूद हंसी-ठिठोली करते रहते थे। सरोजिनी जी ने उसे जो बताया उसका हिन्दी अनुवाद यह है कि हजरत माउंटबैटन साब आप और गांधीजी भले ही ये मान लें कि जब गांधीजी कलकत्ता के रेल्वे प्लेटफॉर्म पर किसी suitably crowded थर्ड क्लास डब्बे को ढूंढ रहे होते हैं या जब वे किसी अछूत बस्ती में जा कर रहते हैं तो वे अकेले या बिना सुरक्षा के होते हैं। जो गांधीजी नहीं जानते वह ये है कि उस वक्त उनके आस-पास एक दर्जन सुरक्षाकर्मी अछूतों की पोशाक में चल रहे होते हैं। आप नहीं जानते माइ डिअर लॉर्ड लुईस माउंटबैटन कि उस आदमी को गरीब रखने में कितना पैसा खर्च होता है।
किस्से और भी हैं। बातें और भी हैं अभी तो बस एक चुप सी लगी है। पार्टिशन के इस दौर का किसी ऑडिटोरीअम में मंचन करने का सोचा है। what say?
अभी तो बकोल शहाब जाफरी बस यही कि
अब कहाँ ले के छुपें ‘उर्यां बदन और तन जला
धूप ऐसी है कि साए से भी पैराहन जला – पैराहन मने कुर्ता
एक चिंगारी उड़ी सारा का सारा बन जला
अंत में
तू इधर-उधर की न बात कर
ये बता कि कारवां कैसे लुटा।
कारवां के लुटने की दास्तां भी कहेंगे जल्द ही।