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व्यंग्य – कैशलेश होकर ये कहां आ गए हम….

मोबाइल आया घड़ी का ज़माना गया, लैपटॉप आया टेलीविजन का जमाना गया, एंड्राइड फोन आया रेडिओ का जमाना गया और अब तो हद ही हो गई ऑनलाइन पैमेंट आया बेचारे पर्स का जमाना गया। अति मॉडर्न दिखने के चक्कर में युवा वर्ग अपने पास कैश नहीं रखता। जो रखते भी हैं उनके पास खुल्ले पैसे मिलना रेगिस्तान में पानी मिलने के समान दुर्लभ होता है। शहरी लोगों को स्कैन करने की आदत पड़ चुकी है इसलिए कैश का भारी भरकम बोझ ढोना उनकी शान के खिलाफ़ है। कभी कभार तो अचानक  उनसे पता पूछ लो तो वहां भी पूछ लेते है कार्ड दू या फोन पे नंबर। एक दिन ट्रेन  से यात्रा करनी पड़ी। दूसरे स्टेशन पर  एक लड़की चढ़ी टीटी आया, कैश था नहीं। डिजिटल पेमेंट हो न सका क्योंकि रास्ते में नेटवर्क नहीं था। टीटी की मजबूरी थी, उसे तो टिकट काटना था । लड़की ट्रेन में  दूसरे लोगों से कैश मांगने लगी। किसी तरह अंत में उसको उधार का  टिकट मिल पाया। इसी तरह एक बार एक बंदा एक पहाड़ी इलाके में मिल गया। उसको अपने परिवार के लिए कुछ खरीदना था। दुकानवाले के पास स्कैन की सुविधा नहीं थी। उसने मुझसे उधार मांगा और फिर ऑनलाइन पेमेंट कर उधार चुकाया।

                    डिजिटल भुगतान की सुविधा है तो इस्तेमाल अच्छा है पर नेटवर्क के आभाव में यह आपको भिखारी बना सकता है । कैशलेस इंडिया का समर्थन  मैं भी करता हूं पर अपने पास कैश और खुल्ले पैसे जरूर रखता हूं। किस जगह कैसी परेशानी पड़ जाय इसका ध्यान रखना चाहिए। अति मॉडर्न बनने के चक्कर में अपने गले में मुसीबतों का पट्टा बांधना समझदारी नहीं है। कहीं नेटवर्क न मिले, फोन खराब हो जाय, उसकी बैटरी काम न करे, बैंक का सर्वर डाउन हो, किसी उपद्रव की वजह से सरकार मोबाइल नेटवर्क बंद करा दे, ऐसी ढेर सारी परेशानियां हो सकती हैं। ऐसे में कहीं फंस गए तो टॉयलेट करने तक के लायक नहीं रहेंगे, खाना पीना तो दूर की बात है। इसलिए डिजिटल महारथी भले ही बनो पर केश भी अपने पास रखो। कैश ही नहीं खुल्ले पैसे भी जरूरी हो जाते हैं। पांच रुपए की चीज कभी कभी जरूरी हो जाती है, ऐसे में पांच सौ का नोट देना पड़े तो इससे बुरी बात क्या हो सकती है।कुछ ऐसे भी प्रकरण हुए हैं जिसमें किसी अज्ञात से किसी दुकानदार ने समान के बदले डिजिटल भुगतान स्वीकार कर लिया। बाद में पता चला कि भुगतान कर्ता का कोई अपराधिक मामला था। साइबर सेल वालों ने कनेक्शन होने की वजह से उस दुकान वाले का खाता फ्रीज करवा दिया जिसका इस मामले से कोई लेना देना नहीं था। वो बेचारा बेकसूर ही फंस गया। अपना खाता खुलवाने के लिए दौड़ भाग करनी पड़ी और चढ़ावा भी देना पड़ा। चाहे तो आप लोग इस बारे में इंटरनेट पर चेक कर सकते हैं। कुल मिलाकर डिजिटल के लाभ हैं पर नुकसान कुछ कम नहीं हैं। सबसे बड़ा खतरा है आज़ादी का जिसे जब चाहे तब छीना जा सकता है।            ___ पंकज कुमार मिश्रा, मिडिया व्यंग्यकार एवं पत्रकार जौनपुर, यूपी

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