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बाल बहार, (कविता) दिवाली की छुट्टियां

दीपावली त्यौहार का,अनुपम अपना ढंग। 

बच्चे मनाते हैं खुशी से, घरवालों के संग॥ 

घरवालों के संग, मजा तब दुगुना हो जाता। 

होते जब मित्रों संग, फुलझड़ी स्वयं चलाता॥ 

रहा इंतजार महीनों से, अवसर कब आयेगा। 

दिया रावण दहन संदेश, मास अगले आयेगा॥ 

हम दिन गिन रहे थे रोज,माह कार्तिक का आया। 

तब अमावस्या से पूर्व, छुट्टियों का था सुख पाया ॥ 

हुई सफाई खूब घरों की, रंगों से था पुतवाया। 

नहीं कचरे का था वास, स्वर्ग है घरों में आया॥ 

बिजली सजधज बढ़ा रही है, शोभा ऐसे घर की। 

मानों जैसे चंदा मध्य सितारों के,शोभा अंबर की॥ 

झिलमिल दीप जले,’लक्ष्य’ पटाखे फोड़ रहे हैं। 

खाये लड्डू खीलें पकवान,दिवाली मना रहे हैं॥ 

मौलिक रचनाकार- उमाकांत भरद्वाज (सविता) ‘लक्ष्य’, पूर्व शाखा प्रबंधक एवं जिला समन्वयक-म.प्र. ग्रामीण बैंक, भिंड (म.प्र.)

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