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गिरगिट के शर्मिंदा होने का समय

एक चुटकुला इन दिनों चर्चाओं में है ‘‘नीतिष कुमार जी मुख्यमंत्री बनने के लिए मुख्यमंत्री पद से स्तीफा देकर, विधायक दल के नेता बनकर फिर से मुख्यमंत्री बन गए । किसी को एक बार भी मुख्यमंत्री पद नहीं मिलता नीतिष कुमार तो ऐसे ही करते-करते नौ बार मुख्यमंत्री बन गए ।‘‘होहिं वही जो राम रचि राखा’’ अब जब सब कुछ राम मय हो गया है तो बिहार की घटना को भी ऐसी ही चौपाई से विषलेषित करना होगा । कहां तो विपक्ष के नेता अपने आपको एकजुट होने की कसमें खाकर एनडीए को पराजित करने का स्वप्न देख रहे हैं पर होनी को कौन टाल सकता है जिसके भग्य में जो लिखा है होता वह ही है । वे नीतिष बाबू जो अपने कांधे में शाल डालकर देष भर के विपक्ष के नेताओं की शरण में जाकर मोदीजी के खिलाफ सभी को एकजुट करने का प्रयास करते रहे अब वे ही थकहार कर मोदी जी की शरण में आ गए ‘‘षरणं गच्छामि’’ । कई लोगों को नए-नए रिकार्ड बनाने का शौक होता है नीतिष जी को भी ऐसा ही  शौक होगा ऐसा माना जा सकता है । वे अपना शौक पूरा करने के लिए इस तरफ और उस तरफ की असफल यात्राऐं करते रहते हैं । उनके लिए शर्म, झिझक और नैतिकता जैसे उपमा, विषेषणों की कोई आवश्यकता नहीं है । वैसे भी राजनीति मेें अब ऐसे शब्द लुप्त हो चुके हैं ‘‘जिसने खाई शरम, उसके फूटे करम’’ । धत् राजनीति में काहे की शर्म, सत्ता की कुर्सी के लिए गिरगिट बनना होता है । जो जितने तेजी से रंग बदलने में माहिर होता है वह उतने तेजी से कुर्सी को पा लेता है । कई बार तो गिरगिट को भी लगता होगा कि वो तो फिरी में बदनाम है, रंग बदलने में उससे ज्यादा अच्छे लोग राजनीति में है । 73 साल की उम्र के करीब पहंुच रहे नीतिश बाबू सकुर्सी संग बदलते हैं । कुर्सी उनसे चिपकी रहती है और साथ वाला सहारा बदल जाता है । वैषाखी कोई भी रंग की हो उससे कोई फर्क नहीं पड़ता, कुर्सी से गठजोड़ मजबूत होना चाहिए । अब तो फेवीकाल वाले भी नहीं कह सकते कि उनके फेवीकाल से ज्यादा मजबूत कोई और चीज नही है । वे कुर्सी से चिपके-चिपके नौवीं बार शपथ ले चुके हैं । वैसे तो बिहार की दलबदलने वाली उर्जाभूमि में रामविलास पासवान भी अपनी र्कीिर्तध्वजा फहरा चुके हैं पर नीतिष बाबू उनसे चार कदम आगे निकल चुके हैं । वे सारी शर्म हया को ताक पर रखकर गोपनीयता की शपथ लेते हुए मुसकुराते दिखाई दिए । देखने वालों के लिए यह क्षण दुर्लभ और अविस्मरणीय साबित हुआ होगा । निर्लज्जता के सर्वोच्च प्रतिमान को प्रदर्षित करात हुआ उनका चरित्र लोकतंत्र की तार-तार होती कड़ियों का प्रदर्षन मात्र बनकर रह गया है अभी तो यह अंगड़ाई है के भावों के साथ रिकार्ड के बढ़ते आंकड़ों की संभावनाओं को मंद-मंद मुस्कान के साथ आषंकाओं  और कुषंकाओं को जन्म देते हुए वे सत्ता की कुर्सी पर फिर से आसीन हो गए । उन्हें इस बात को ध्यान में रखने के लिए कोई मेहनत भी नहीं करनी कि वे कल तक जिस भाजपा को कोस रहे थे उसे अब नहीं कोसना है बल्कि उसकी तारीफ ही करनी है, कल तक वे जिन तेजस्वी यादव को अपना प्रिय भतीजा कह रहे थे उसे अब बुरा-भला कहना है । वे तो माहिहर हो चुके हैं । वे पुरानी सीडी निकाल लेगें जिसमें तेजस्वी यादव के बुराई वाले भाषण भरे हैं । बार-बार मित्र बदलने से कमसे कम यह सुविधा तो उन्हें मिल ही चुकी है कि उनके पास भाजपा की बुराई करने और भाजपा की तारीफ करने वाले भाषण के पुराने दसतावेज हमेशा उपलब्ध रहते हैं । दो पेटी उनके घर पर होगीं एक में भाजपा की तारीफ और तेजस्वी यादव की बुराई के रिकाड्र होगें और दूसरी में भाजपा की बुराई और अपने प्रिय भतीजे तेजस्वी यादव की तारीफ के दस्तावेज होगें । एक पेटी बंद होती है तो दूसरी पेटी स्वमेव ही खुल जाती है । यह राजनीति की नई तस्वीर है । कभी हरियाणा के भजनलाल को आयाराम और गयाराम के रूप में याद किया जाता था अब बिहार के नीतिष बाबू को यह सम्बोधन दिया जायेगा । वैसे उनको इस स्थितिज तक पहुंचाने में भाजपा और जेडीयू का भी बहुत बड़ा योगदान है । वे भी कुर्सी के लिए झूठी कस्मों पर भरोसा कर उनके साथ जुड़ जाते हैं फिर पछातवा करते हैं ‘‘अब उनके लिए दरवाजे हमेषा के लिए बन्द हो गए हैं’’ पर दरवाजे की चिटकनी इतनी मजबूती से नहीं लगाते कि दरवाजे खुले हीं नहीं । नीतिष बाबू बंद दरवाजे पर दस्तक देते हैं और अंदर से कोई यह भी नहीं पूछता ‘‘कौन’’…वे छट् दरवाजा खोल देते हैं । बंद दरवाजे वाले जानते हैं कि सिवाय नीतिष बाबू के और कोई हो ही नहीं सकता । नीतिष बाबू बेषर्म हंसी के साथ उनके साथ चिपक जाते हैं जिनके साथ ‘‘मर जाऊंगा पर कभी नहीं जाऊंगा’’ कहा होता है । यह ही तो राजनीति है नई सदी की नई राजनीति । 21 वीं सदी के नए मुहावरे और नए चुटकुले अब नीतिा बाबू की शान में बननने लगे हैं । कभी जयप्रकाश नारायण की सम्पूर्ण क्रांति के ध्वजवाहक रहे बहुत सारे नेताओं की कतार में नीतिष बाबू भी रहे हैं । रामविलास पासवान, लालूयादव, शरद यादव जैसे नेता भी इसी सम्पूर्ण क्रांति की उपज रहे हैं । ये नेता भी कहीं न कहीं किसी न किसी रूप में अपनी साख को दांव लगाते रहे हैं पर नीतिष बाबू इन सबमें अग्रणी ही माने जा सकते हैं । नीतिष बाबू के जाने के बाद इंडिया गठबंधन का क्या भविष्य है ? इंडिया गठबंधन बिखरने तो पहले से ही लगा था । दरअसल इस गठंधन में समाहित हर एक राजनीतिक दल को अपने भविष्य की चिन्ता है । कौन कितनी सीटों पर जीत सकता है उससे ज्यादा महत्वपूर्ण उनके लिए यह है कि व कितनी सीटों पर हार सकते हैं ? सभी को अपने हितों के बारे में सोचना है फिर गठबंधन का क्या मतलब । ममता बैनर्जी से लेकर आप पार्टी के नेता तक यह बता चुके हैं कि उन्हें गठबंधन से कोई मतलब नहीं वे तो वो ही करेगें जो उनको उचित लगेगा । इसका मतलब तो साफ है कि गठबंधन को बिखरना ही था तो बिखर चुका । संभवतः नीतिष बाबू भी ऐसी ही संभावनाओं के चलते इससे दूर हो गए । कांग्रेस इस भ्रम में है कि वह देष की अब भी सबसे बड़ी पार्टी है । वह अपने आपको इस घमंड से बसहर नहीं कर पा रही है । महागठबंधन में ज्यादातर क्षेत्रीय पार्टियां ही हैं । ये वे क्षेत्रीय पार्टियां हैं जिनमें से अधिकांष का जन्म कांग्रेस के विरोध के कारण ही हुआ है । भाजपा सहित ज्यादातर राजनीतिक दलों में कांग्रेस से निकले हुए नेताओं की संख्या अधिक हैं । कांग्रेस से निकलकर कुछ नेताओं ने अपनी नई पार्टियां बना लीं और अब वे कांग्रेस के साथ ही गठबंधन करने की मजबूरी में हैं । कांग्रेस को लगता है कि क्षेत्रीय पार्टियों को कम सीटें देकर अपनी सीटें बढ़ऋा ली जायें पर क्षेत्रीय पार्टियां इसके लिए तैयार नहीं हैं । मतलब साफ है कि गठबंधन को तो बिखरना ही था । इधर राहुल गांधी एक बार फिर यात्रा पर निकल गए । उनको भी यह भ्रम हो गया है कि उनकी यात्रा उनके संगठन को मजबूती प्रदान करती है । यह तो सच है कि राहुल गांधी की यात्रा में भीड़ बहुत रहती है । असम सरकार भी इस भी़ड़ को देखकर ही घबरा गई थी शायद तभी तो न केचल उनकी यात्रा में विघ्न डाले गए वरन राहुल गांधी के खिलाफ कई प्रकरण भी दर्ज कर लिए गए । अब यह खत्रा पष्चिम बंगाल में है । महागठबंधन के सदस्य होने के नाते ममता दीदी को उनका समर्थन करना चाहिए था पर वे तो उसके खिलाफ ही खड़ी हो गई । ममता दीदी नाराज हैं । वे भी कांग्रेस से ही निकली हुई नेता है । पष्चिम बंगाल में वामपंथी दलों के अलावा कांग्रेस का भी वजूद रहा है तो इसका तो साफ मतलब है कि ममता की पार्टी ने दोनों दलों को पराजित किया है और दोनो दल उनके साथ प्रतिस्पर्धा रखते हैं त वे कैसे कांग्रेस को अपने ही राज्य में फलने फूलने का मौका दे सकती हैं । अमूमन यही स्थिति बिहार, उत्तरप्रदेष सहित अन्य राज्यों में मानी जा सकती है ऐसे में कांग्रेस को अकेला पड़ना ही था सो वो अकेली पड़ती जा रही है । उनके सामने लोकसभा चुनाव है और यह मानते हुए भी फिलहाल एनडीए गठबंधन को हराना उनके बस की बात नहीं है वे चुनावी माहौल बनाने में लगे हुए हैं । कर्म तो करते ही रहना होगा फल कुछ भी मिले ।बहरहाल बिहार में नीतिष कुमार का पाला बदलना भारत के लोकतंत्र की ऐसी शर्मनाक घटना है जिसे मजाक में भले ही उड़ा दिया जा रहा हो पर यह गणऔर तंत्र की बढ़ती दूरी को साफ समझा रहा है । वैसे तो गणतंत्र दिवस के दिन ही गण और तंत्र के बीच घटित ऐसी घटना सभी को देखनी पड़ी । पर दिल्ली के कर्तव्य पथ पर सारे विष्व ने भारत की बढ़ती हुई जांे ताकत देखी उससे हर एक भारतीय गर्व कर सकता है । रामलला को भव्य मंदिर में विराजित होते देखा, वह भी तो हमारी सालों पुरानी धार्मिक गुलामी से आजादी का ही प्रतीक मानी जा सकती है । सभी भारतवासी इस सम्मोहन में बंधे हुए ही दिल्ली के कर्तव्य पथ पर शान से निकलते स्वदेशी हथियारों की झांकी को देखकर गौरवान्वित होते रहे । कितना सुखद है इस बात का अहसास कर लेना कि भारत अब विष्व की पांचवीं बड़ीर अर्थव्यवस्था से तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था की रेखा के करीब नहुंच चुका है । डीआरडीओं के माध्यम से हमने अपने अस्त्र और शस्त्र बनाकर सारे विष्व को चौंका दिया है । ये वे हथियार है जिनके लिए हमें विश्व के दूसरे देषों के सामने हाथ पसारने होते थे । हम खुद बना रहे हैं, निष्चित ही हमारी तकनीकी के क्षेत्र में बढ़ती उपलब्धी ही है । हमने जब कोरोना काल में वैक्सीन बनाई और विष्व के अनेक देषों को उपलब्ध कराई तब ही यह मान लिया गया कि भारत मेडिकल के क्षेत्र में हुत आगे बढ़ चुका है और इस बार के गणतंत्र दिवस की परेड में शामिल हमारे स्वदेषी हथियारों के प्रदर्षन ने विष्व को हमारी बढ़ती ताकत से भी रूबरू करा दिया है । हमारे देष ने अपने आधारभूत ढांचे में भी विकास किया है  । हमारे देष में अब 15 एम्स हैं जो निकट भविष्य में और बढ़ जायेगें । हमारे देष में 149 एयरपोर्ट हैं जिनकी संख्या भी अब बढ़ना है । हमारे देष में नेषनल हाईवे करीब डेढ़ लाख किलोमीटर हैं जो पहले केवल 90 हजार किलोमीटर ही हुआ करते थे । हम चन्दमा के दक्षिणी ध्रुव में पहुंचने वाले प्रमुख देषो की कतार में शामिल हैं और सूरज के सबसे निकट पहुंचने वाला पहला देष बन चुके हैं । हमने विकास के पथ पर अपने कदम बढ़ा दिए हैं। जी-20 षिखर सम्मेलन का जिस तरह से भव्य ायोजन किया गया और विष्व के जो बड़े राष्ट्राध्यक्ष भारत आए उन्होने भारत के विकास को देखा उसने भारत को विष्व गुरू के रूप् में स्वीकार करना शुरू कर भी दिया है । गणतंत्र का यह त्यौहार विष्व पटल पर अपनी धाक जमाने के लिए र्प्याप्त है ।

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